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पुलिसिया हेलीकाप्टर

कल दफ़्तर से घर की तरफ़ चला तो हाईवे पर एकाएक मेरी कार के ऊपर ऊपर हेलीकाप्टर उड़ता नज़र आने लगा। पुलिस वालों का था। आकस्मिक सहायता एवं क़ानून व्यवस्था बनाये रखने रखने के लिए अक्सर ही हाईवे पर उड़ता रहता है।

मैं भी अपने बचपन की आदत का गुलाम। कुछ आदतें बचपन की ऐसी होती हैं, जो आपके स्वभाव का हिस्सा बन जाती हैं। चाहे जितनी कोशिश करो, छूटती ही नहीं। उन्हीं में से मेरी एक आदत है कि जब भी हवाई जहाज़ या हेलीकाप्टर की आवाज़ सुनाई देती है मैं बरबस ही आकाश में ताकने लगता हूँ और उसे उड़ता हुआ देखकर ख़ुश होता हूँ। अब तो अक्सर बच्चे (बड़े हो गये हैं न!) और पत्नी कहते हैं कि ये क्या आदत है। कितनी शर्मिंदगी होती है सब के बीच में.. इसे बदलो।

हमने बताया भी कि यह तो तुम लोग ’इम्प्रूव्ड वर्जन’ देख रहे हो हमारी आदत का वरना तो तुम लोग मुँह दिखाने के क़ाबिल न रहते। पहले तो हर हवाई जहाज़ को देखकर हम टाटा भी किया करते थे। अब कम से कम टाटा नहीं करते, इतना ही ग़नीमत समझो। इससे ज़्दाया हम नहीं बदल सकते। वो भी चुप हो जाते हैं कि कहीं ज़्यादा बोला और ये पुरानी आदत पर वापस चले गये, तब तो ग़ज़ब ही हो जायेगा।

बस, हेलीकाप्टर का ज़िक्र आया और वो भी पुलिस वालों का तो आदतानुसार भारत का विचार हमेशा की तरह दिमाग़ में कौंधा कि अगर वहाँ हर शहर की पुलिस को एक एक हेलीकाप्टर दे दिया जाये तो क्या सीन बनेगा। दिया तो आकस्मिक सहायता के लिये ही जायेगा और जब आप एमरजेन्सी में फोन करेंगे तो देखिये कैसे कैसे जबाब आ सकते हैं:

"हाँ सर, हेलीकाप्टर तैयार है। आप आ जाईये। यहाँ पर मुनीम से फार्म लेकर भर कर जमा कर दिजिये। हम उसे साहब की स्वीकृति के लिए भेज देंगे। स्वीकृति मिलते ही हेलीकाप्टर रवाना हो जायेगा।"

अब आप थाने पहुँचे तो पता लगा कि फार्म भर के साथ में दो फोटो, एक फोटो आई डी, एड्रेस प्रूफ और नोटराइज़्ड शपथ पत्र कि यह हेलीकाप्टर मात्र आक्समिक दुर्घटना से निपटने के माँगा जा रहा है तथा इसका किसी भी प्रकार से व्यक्तिगत उपयोग नहीं होगा आदि लगाना होगा। आयकर का पेन नम्बर देना अनिवार्य है एवं एक मात्र पाँच हज़ार रुपये का ड्राफ्ट सिक्यूरिटी डिपाज़िट।

फ़ॉर्म इन सारे काग़ज़ों के साथ जमा करने के बाद इसकी फ़ाईल बनाई जायेगी तथा एक इन्सपेक्टर दुर्घटना स्थल पर जाकर अपनी रिपोर्ट बनायेगा कि दुर्घटना में वाकई एमर्जेन्सी है तथा उससे बिना हेलीकाप्टर के मदद के नहीं निपटा जा सकता वरना देर हो सकती है। संभव हुआ तो दुर्घटना की तस्वीरें भी साथ लगाई जायेंगी और फिर इन्सपेक्टर के अनुमोदन के साथ फ़ाईल साहब के समक्ष प्रस्तुत की जायेगी। उनका निर्णय ही अन्तिम और मान्य होगा।

जब तक सारे काग़ज़ तैयार होकर तीन चार दिन में साहब के समक्ष प्रस्तुत करने का समय आया, साहब हफ़्ते भर की छुट्टी पर गाँव चले गये।

मगर एमर्जेन्सी को यूँ ही अनदेखा नहीं किया जायेगा। साहब के वापस आते ही सातों पेन्डिंग हेलीकाप्टर केस पहले निपटाये जायेंगे फिर अन्य कोई कार्य सबजेक्ट टू अगर मंत्री जी का दौरा न हो तो।

आख़िर पुलिस आपकी मित्र है और आपकी साहयता के लिए है। वो नहीं ख़्याल करेगी तो कौन करेगा।

और भी कई सीन ख़्याल आ रहे हैं कि ऐसा भी जबाब मिल सकता है। उनको विस्तार न देते हुए सिर्फ़ बिन्दुवार देता हूँ। विस्तार करने में तो आप सब सक्षम हैं ही। ख़ैर आपकी सक्षमताओं को तो क्या कहना, आप तो बिना बिन्दु के भी विस्तार दे जायें (एक सच्चे भारतीय होने का प्रमाण):

  • साहब लंच पर हेलीकाप्टर से गये हैं। लौट आयें तब भेजते हैं।
  • मंत्री जी को लेकर उनकी ससुराल गया है।
  • साहब के घर शादी है। वहीं ड्यूटी लगी है।
  • मैंडम को लेकर बाजार गया है।
  • साहब के रिश्तेदार को अस्पताल लेक गया है।
  • साहब के बच्चों को स्कूल पहुँचाने गया है।
  • साहब के बच्चों को घुमाने निकला है।
  • पायलट अभी चाय पीने गया है।
  • पायलट छुट्टी पर है।
  • स्टार्ट ही नहीं हो रहा है। मिस्त्री को बुलवाया है, ठीक होते ही बताते हैं।
  • हेलीकाप्टर पार्टी की रैली पर फूल बरसाने गया है
  • अभी अभी पायलट बिना बताये कहीं ले कर चला गया। राजाराम सिपाही साईकिल से खोजने निकला है।
  • कल से निकला है, अभी लौटा नहीं है।
  • पायलट हड़ताल पर है।

---आपको और कुछ सूझता हो, तो जोड़िये।

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