अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

रूपसिंह चन्देल के उपन्यास ’गलियारे’ पर इला प्रसाद

पुस्तक - गलियारे (उपन्यास) - ले. रूपसिंह चन्देल
प्रकाशक - भावना प्रकाशन, 
109-A, पटपड़गंज, दिल्ली-११० ०९१
पृष्ठ संख्या - २६४
मूल्य - ५००/-

सतत सृजनशील वरिष्ठ उपन्यासकार रूप सिंह चंदेल का नवीनतम उपन्यास “गलियारे” प्रशासन जगत के गलियारों में भटक रही अंधी मह्त्वाकांक्षा की कथा है। अपनी रोचकता में यह लेखक द्वारा लिखित अन्य उपन्यासों से कहीं आगे है और मैं इसे लेखक की रचनायात्रा का अग्रिम पड़ाव मानती हूँ।

इस रोचकता की वज़ह इसका कथ्य है। महत्वाकांक्षी किन्तु अत्यधिक सम्वेदनशील मन के स्वामी, सुधांशु के उच्च आदर्शों एवं सहज प्रेम की दुखद परिणति इस उपन्यास का मूल कथ्य तो है किन्तु उस कथा को कहने लिये लेखक ने सरकार के उच्चतम प्रशासनिक विभागों – आई ए एस अधिकारियों की दुनिया को चुना है। यह समाज के उच्च और निम्न वर्ग से आये पदाधिकारियों के माध्यम से कार्यालय के अन्दर ही चल रहे वर्ग-संघर्ष की कथा भी है। पूरी कहानी वस्तुत: दो पात्रों– प्रीति और सुधांशु की प्रेम कहानी से आरम्भ होती है। सुधांशु प्रतिभाशाली, किन्तु ग्रामीण परिवेश से आया उच्च नैतिक मूल्यों वाला, महत्वाकांक्षी युवक है जो आई ए एस बनने की आकांक्षा लिये बनारस से आकर दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लेता है। अपने प्रयत्नों में वह सफ़ल होता है क्योंकि आई ए एस की परीक्षा लिखित होती है, वह प्रतिभा की परीक्षा है। उसकी असली परीक्षा तब शुरू होती है, जब वह उच्च पदस्थ आई ए एस अधिकारी की सुन्दर, कम प्रतिभाशाली किन्तु अत्यन्त व्यावहारिक, चालाक एवं सत्ता जगत के दाँव-पेंच समझने वाली महानगर दिल्ली में पली–बढ़ी, सहपाठिनी प्रीति से विवाह कर लेता है। वह भी कालान्तर में आई ए एस हो जाती है किन्तु उनके बीच का अन्तर- समाज के उच्च और निम्न वर्ग का अन्तर है। महानगरीय भौतिकतावादी परिवेश एवं ग्रामीण परिवेश का अन्तर है। यह भिन्नता उन्हें जुड़ने नहीं देती। उसकी प्रीत–कथा नायिका प्रीति- समाज के जिस उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखती है उसके जीवन का मूल मंत्र अवसरवादिता एवं घोर मह्त्वाकांक्षा के अतिरिक्त कुछ हो भी नहीं सकता। इस वर्ग के लिये प्रेम भी एक पायदान ही है जिस पर चढ़ कर सफ़लता के अगले सोपान तक पहुँचा जा सकता है।

किस्सागोई शैली में लिखा गया, घटना-संकुल, ढेर सारे पात्रों के माध्यम से अपनी कथा कहता हुआ यह उपन्यास कहीं भी उबाऊ नहीं प्रतीत होता। पाठक पर आदि से अन्त तक अपनी मज़बूत पकड़ बनाये रखने में समर्थ यह उपन्यास मात्र प्रेमकथा न होकर सरकारी तंत्र की दुरव्यवस्था, उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार, शोषण, कदम-कदम पर चल रही राजनीति, वर्ग-संघर्ष एवं परिवेशगत विसंगतियों की कथा है। मानव-मन की गूढ़ गुत्थियों को पाठक के सामने लाता, अपने समय एवं समाज से जुड़े प्रश्नों से सीधा सम्वाद करता, अतंत: कथानायक की दुखद मृत्यु पर समाप्त होता यह उपन्यास पाठक को गहरे पीड़ा-बोध और वर्तमान व्यवस्था पर आक्रोश से से भर देता है।

जीवन में दिन-प्रतिदिन, निरंतर ह्रास की ओर अग्रसर नैतिक मूल्यों का क्षरण अंतत: हमारे समाज को घोर भौतिकतावाद की शिक्षा दे रहा है जिसके ख़तरों को पहचान पश्चिम अपनी सोच बदलने की ओर अग्रसर है। फ़र्क इतना है कि यह बदलाव यहाँ के टूटे हुये समाज और वैज्ञनिक उपलब्धियों का नतीजा है जबकि भारत में आरम्भ से जीवन के प्रति एक समग्रतावादी दृष्टिकोण रहा है जो अब पश्चिम से आयातित भौतिकतावादी सोच को सही और सर्वस्व मान बैठा है। रूप सिंह चन्देल जैसे लेखक की लेखनी समाज को आईना दिखाने का दायित्व लिये कुछ अलग-सी दिखती है।

फ़िलहाल यह उपन्यास आपके सामने है और मैं पाठक और पुस्तक के बीच की बाधा नहीं बनना चाहती। आप इसे पढ़ें, अपने विचार बनायें और अपने समय और समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों स्तरों पर हुए नैतिक पतन के प्रति जागरूक हों, सूई की नोंक भर भी अच्छाई को बचाये रखने के लिये प्रयत्नशील हों तो मेरे विचार से लेखक का श्रम सार्थक हो जायेगा।

इला प्रसाद
ह्यूस्टन, टेक्सास, अमेरिका।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कविता

पुस्तक चर्चा

कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं