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समझौता

मटमैले बादलों से आसमान ढका था। चमकती हुई बिजली और बादल की गड़गड़ाहट ने मौसम को खुशगवार बना दिया था। वर्षा थम चुकी थी। चारों सहेलियाँ कॉफी हाउस में बैठी कॉफी पी रही थीं। सामने बैठा पुरुष अपनी पत्नी के साथ बैठ कॉफी पी रहा था और बार-बार उनको देख रहा था। उसे देख सारा का मूड बिगड़ गया।

"वाह क्या ग़लत हरकत है... सुन्दर पत्नी साथ है और जनाब लड़कियों को घूरते फिर रहे है।" सारा ने नाक चढ़ा कर कहा।

"अरे भई सामने जब तीन चार स्मार्ट लड़कियाँ दिख रही हों तो मर्द की निगाहें उठ ही जाती हैं यह प्रकृति का नियम है," रीना ने कहा।

"वाह यह भी कोई बात हुई? अब मानों पति बहुत हेंडसम नहीं है तो किसी पत्नी को किसी पुरुष को यूँ घूरते देखा है? क्या औरत का दिल नहीं कि वो भी किसी को घूरे। सड़क पर इतने पुरुष जो सुन्दर होते हैं उन्हें राह चलते औरतें तो नहीं घूरतीं," सारा ने कहा।

"अरे भई यह तो नब्बे परसेंट मर्दों की आदत होती है कि औरतों और लड़कियों को ताकते फिरते हैं," रीना ने दलील दी।

"और इतने केस हो रहे हैं इनकी आदतों के पीछे। पुरुष अपनी इस आदत से बाज़ क्यों नहीं आते। कोई तो इनको सुधारे...," सारा ने इस तरह कहा तो सबको हँसी आ गई।

"इसमें कसूर हम लड़कियों का भी है। क्यों इतनी बन-सँवर कर निकलती है। सड़कों पर जिन्स, पहनकर अपना प्रदर्शन करती हैं," मीना ने कहा।

"घूँघट में हो या बुर्के में, मर्द अपनी आँखों में किस तरह एक्सरे मशीन फिट करके राह चलती लड़कियों को देखता फिरता है। लड़कियाँ कुछ भी पहनें, क्या मर्द का फ़र्ज़ नहीं कि अपनी निगाहें नीची करके चले," सारा बोली।

"हाँ भई, यह बात तो है और रीता तुम क्यों बिना कारण उनका फेवर ले रही हो?"

"तुम्हारा मतलब है सामने बैठा वह पुरुष अपनी पत्नी के साथ होते हुए भी हमें देख रहा है तो बदमाश हो गया। जबकि उसकी पत्नी हम चारों से अधिक सुन्दर है।"

"यही तो मैं कह रही हूँ। उसे अपनी पत्नी से संतोष नहीं, इतनी सुन्दर पत्नी साथ है, वो जब दूसरी लड़की को ताके तो पत्नी को कैसा लगेगा?"

"केवल घूरने से ही कपटी तो नहीं कहलायेगा।"

"क्यों नहीं, मैं तो कहूँगी वह महा बईमान है। कहने को तो पत्नी को साथ लाया, पत्नी को कॉफी पीलाने के बहाने, साथ बैठकर लड़कियों को ताकता रह सके," सारा ने क्रोध से कहा।

"तू इतना नाराज़ क्यों हो रही है? बस थोड़ी देर घूर कर देखता रहा..."

"मेरी निगाह में तो यह छल ही है, बेबफ़ाई है। उसकी सराहती निगाहें अपनी पत्नी के लिए होनी चाहिएँ ग़ैर औरतों के लिए नहीं," सारा ने अपनी बात कही।

"ओह...सारा भगवान ना करे तुम्हें कहीं ऐसा पति मिल गया तो जाने तुम क्या करोगी। क्योंकि अधिक चांस तो यही है कि हर पुरुष में यह आदत होती है," कविता ने कहा।

"भगवान ना करे मुझे ऐसा पति मिले। मिल भी गया तो मैं यह आदत सहन नहीं करने वाली।"

"यानी तुम्हारा पति चाहे तुम्हें बेपनाह मोहब्बत करने वाला हो और यह आदत हुई तो तुम उसके साथ दो दिन भी नहीं रहोगी क्यों?" रीना ने पूछा।

"हाँ..., बिलकुल मैं तो साफ शब्दों में दो टूक बात करूँगी..... मुझे चाहते हो तो केवल मेरे बन कर रहो।" सारा ने कहा, "उसकी निगाहें केवल मेरे लिए ही होंगी। ...लड़की साड़ी पहने या जीन्स, मर्द को अपनी नीयत अच्छी रखनी चाहिए। जैसे हम औरतें हैं। हम कभी राह चलते पुरुष को नहीं घूरतीं चाहे वह पेंट पहने या धोती। सुन्दर तो पुरुष भी होते हैं। अगर सच में मर्द यह आदत छोड़ दे तो...?"
"हाँ भई हम लड़कियाँ किसी सुन्दर, स्मार्ट लड़के को देख भी लें तो बुरे ख्याल दिल में नहीं आते।
इसी तरह पुरुष को भी मज़बूत उच्च विचारों के बनना चाहिए। यह रोज़-रोज़ के हादसे हो रहे हैं वे होने बन्द हो जायेंगे।"

"अगर सच में मर्द यह आदत छोड़ दे.....तो ना उनके दिल में बुरे विचार आएँ और ना ही हादसे होंगे।"

सारा को सदा से ही इस बात की सख्त चिढ़ थी कि अपनी पत्नी के साथ होते हुए भी मर्द लड़कियों को घूरते रहते हैं। सब लड़कियाँ इस बात पर चर्चा करतीं हैं पर गम्भीरता से नहीं लेतीं। लेकिन सारा के दिल में यह बात लग जाती और वह सोचती ऐसा नहीं होना चाहिए।

दिन भर की रौनक के बाद रात को सड़क के किनारे खड़ी बत्तियाँ पलकें खोले राहगीरों को तक रही थीं। वह घर लौटते सोच रही थी कहीं सच मुझे ऐसा पति मिला तो? नारी पुरुष को सच्चे रूप मे मित्र समझती है और पुरुष इस मित्रता को ऊपरी तौर पर स्वीकार करता है। प्रशंसा को पर्दा मानकर उसके पीछे खड़ा होकर पुरुष नारी को कामुक निगाहों से देखता है।

 

उसके लिए रिश्ता आया। माँ ने खुशी से कहा, "सारा इतना अच्छा रिश्ता भाग्य से आया है।" पूरा परिवार ख़ुश था। उसकी शादी कर दी गई।

वह जो कहावत है ना जिस बात का डर हो वो ज़रूर होती है। ऐसा ही सारा के साथ हुआ। यूँ जो प्रकाश एक अच्छा, बेहद प्रेम करने वाला समझदार पति था। लेकिन उसकी आदत थी हर किसी से बहुत ख़ुश होकर बात करता। किसी सुन्दर लड़की को देखता, बेझिझक उसकी तारीफ़ सारा के सामने कर देता।

उसकी सहेलियाँ आती तो दिल खोलकर हँसी-मज़ाक करता। यह देख सारा अंगारों पर लोटती रहती। वह दिल ही दिल जलती रहती। प्रकाश उसको बहुत चाहता था। अच्छी नौकरी थी। उसकी हर फरमाईश पूरी करता। माँ की नसीहतों का असर भी ऐसा था कि बेटी पति का घर ही अब तेरा घर है। सबसे अच्छा व्यवहार रखना छोटी बहनों के रिश्ते भी अब तेरा व्यवहार देख कर ही आयेंगे। वह मन ही मन नाराज़ होती पर चुप रहती। पति खुले मिजाज़ का था। वह कभी किसी से बात करने पर कोई रोक टोक नहीं लगाता। कोई शक नहीं करता। यूँ तो वह मुहब्बत करने वाला पति साबित हुआ। लेकिन औरतों की कम्पनी उसे बहुत अच्छी लगती। वह पड़ोसन हो या रिश्तेदार सबसे खुल कर बात करता। उनकी आवभगत में बिछ जाता। उसकी ज़िन्दादिली, उसकी दिलचस्प बातें सबको मोह लेती।

जब वह पति के साथ बाहर जाती या घर में कोई मेहमान महिला आती उसको हँसी-मज़ाक करते देख पति की अच्छाइयाँ कहीं नज़र नहीं आतीं। घर से बाहर सारा साथ होती पर वह सारा के साथ होते हुए भी दूसरी औरतों को देखता। तब वह दुःख और दर्द में डूब जाती। काश! प्रकाश इस नेचर का नहीं होता। वह कुछ कहने से डरती कि बात का बतंगड़ ना बन जाए। वह घर में कलेश भी नहीं चाहती थी।

माँ का कहना कि कभी कोई ऐसी बात ना करना जो हम लोगों को सर झुकाना पड़े। तुम अच्छी बहू साबित होना। माँ शादी के समय यह बातें उसके कान में डालती रही थी और यह बातें, नसीहतें उसके होंठों पर ताला लगा कर उसे चुप रखतीं। किसी भी फंक्शन में साथ जाते, वह उसके साथ होते हुए भी दूसरी औरतों में अधिक दिलचस्पी लेता, ऐसा देखकर वह अपने लहू-लुहान होते दिल को सँभालने की कोशिश में बेहाल हो जाती। लेकिन होंठों पर मुस्कान सजा कर पति की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती। वह जानती है नहीं तो वह बिदक जाएगा। चार-पाँच महीने हो गए उसकी शादी को वह अपने माता-पिता के मान का सोच कर हँसी ख़ुशी निर्वाह करने की कोशिश में अन्दर ही अन्दर घुटकर ज़िंदगी गुज़ार रही थी।

उस दिन इतवार था। शाम के समय सारा प्रकाश के साथ बाज़ार आई थी। इस समय सड़क का रंग कुछ और ही था। दुकानदारों की गर्मजोशियाँ और खरीददारों की भीड़ थी। कारें, स्कूटर,रिक्शा और गाड़ियों का शोर था। कुछ लोग बाज़ार में केवल घूमने आते है। कालेज के लड़कों के झुंड होते हैं जो रेस्तरां में बैठ कर या फुट-पाथ पर खड़े होकर औरतों और लड़कियों को ताकते हैं। फिकराकसी करके अपना दिल बहलाते हैं। ऐसे लोगों को खरीददारी से कोई सरोकार नहीं होता। उनके कारण बाज़ार में भीड़ की रौनक बढ़ जाती है। भीड़ के कारण रास्ते तंग हो जाते हैं। सारा के मोबाइल की घंटी बजने लगी।

"हेलो कैसी हो शादी के बाद तुम हमें भूल गई क्या? कभी मिलती ही नहीं हो," सरीन की आवाज़ सुनकर उसे बहुत ख़ुशी हुई।

"नहीं मैं बहुत याद करती हूँ," सारा ने जवाब दिया।

"क्या तुम्हारी सहेली का फोन है भई, पहले मैं बात करूँगा," उसके हाथ से फोन लेते हुए प्रकाश ने कहा।

"आप लोग बेझिझक हमारे घर आओ, देखो सारा अपनी सहेलियों को निराश मत करो। घर आने की दावत दो," कहते हुए उसके पति ने उसके हाथ में वापस फोन दे कर कहा।

"वाह हमारे जीजी जी आप तो बहुत अच्छे हैं," फोन हाथ में लिया उधर से सरीन की चहकती आवाज़ आई।

"हाँ हमारे घर आना ना...," उसने बुझे दिल से कहा। दूसरे दिन वह घर आई तो प्रकाश ने खूब आवभगत की। उससे हँसी-मज़ाक की। वह पास बैठी अन्दर ही अन्दर बेचैन रही।

एक दिन माल में उसका क्लास फेलो अजीत मिल गया। प्रकाश को जानकर ख़ुशी हुई कि यह सारा के साथ पढ़ा है।

"हाय सारा," अजीत ने दूर से आवाज़ लगाई।

"सारा लगता है तुम्हारी पहचान का कोई है।"

"हम साथ पढ़ते थे," प्रकाश को जानकर ख़ुशी हुई कि यह सारा के साथ पढ़ा है। सारा को लगा इस प्रकार आवाज़ लगाने से प्रकाश को बुरा लगेगा। लेकिन प्रकाश ने तो ख़ुश होकर कहा -

"इन्हें बुलाओ भई मैं भी तो मिलूँ। इनके साथ कॉफी पीते हैं...कालेज की कुछ यादें ताज़ी करो.......बैठो मैं आता हूँ," वह कॉफी लेने चला गया। कॉफी पीते खूब हँसी-मज़ाक करते प्रकाश को बातें करते देख उसे अच्छा लगा।

एक दिन उसकी कालेज में साथ पढ़ी दो सहेलियाँ रीना के साथ किसी शादी में मिल गईं। प्रकाश उन्हें देख कर बहुत ख़ुश हुआ। उन्हें घर आने का निमंत्रण दे दिया। दूसरे दिन वे सब आ गईं। सारा को उन्हें देख कोई ख़ुशी नहीं हुई। क्योंकि प्रकाश घर में मौजूद था। एक मिनट के लिए भी वह उनके पास से नहीं हटा। वह अन्दर ही अन्दर खौलती रही। प्रकाश के उसके प्रति प्रेम का गहरा एहसास लहरा रहा था। उसे लगता उसके जीवन में बहार आ गई है। उसके चारों ओर आकाश से गुलाब झर रहे हैं। लेकिन जब भी वह बाहर जा कर आती प्रकाश की आदत उसे परेशानी में डाल देती। वह पूर्वत मौन दूर आकाश में चाँद को भटकते निहारा करती।

"आज हमने सोचा तुझसे मिला जाए," नीलम और रीना ने सहेलियों के साथ अन्दर आते हुए कहा।

प्रकाश आफिस गया है। वह दिल खोल कर उनके साथ बातें कर रही थी। वरना वह उसे बोलने का मौका ही नहीं देता और ख़ुद खूब बातें करता। इन पर भी उसी का जादू सर चढ़कर बोलता, मुझसे नहीं उसी से बातें करने में लगी रहतीं।

"मेरी शादी की मूवी देखो," वह ख़ुश होकर बोली।

"हे भगवान तेरा पति स्मार्ट है पर इस शादी के सूट में कितना सुन्दर लग रहा है," रीना व सहेलियों ने कई बार कहा। उसको सुन कर ख़ुशी हुई। उसने प्रकाश को फोन किया कि कुछ नाश्ता चपरासी के साथ भेज दो। मेरी सहेलियाँ आई हैं।

अचानक प्रकाश ने अन्दर आते हुए सुन लिया ख़ुश होकर बोला, "वाह मेरी तारीफ़ की जा रही है। लो जी मैं हाज़िर हो गया। मैं भी आपसे मिलने आ गया। नहीं तो सारा के नाराज़ होने का डर रहता," वह उनसे बातें करने बैठ गया। कमरा उनके ठहाकों से गूँजने लगा।

इन लोगों की बातें सुनकर वह अन्दर ही अन्दर उदास हो गई। वह सब से नज़रें चुरा रही थी। इस समय उसे लगा सबकी आँखों में एक व्यंग्य है कि अब कैसे सहन कर रही हो? पुरुषों के प्रति उसके रिर्माक याद आ रहे थे।

"नाश्ता लगाओ... मैं गर्म-गर्म समोसे लाया हूँ।"

उस समय सब बड़े खुले दिल से प्रकाश की प्रशंसा कर रही थीं तो सारा ईर्ष्या की आग में जल रही थी, उसे लगा उसके होंठ सूख गए हैं। इस समय अगर उसे पानी नहीं मिला तो वह तड़पती मर जायेगी। वह पानी का गिलास उठा बेसबरी से पीने लगी। रीना ने देखा उसके चेहरे का रंग बदल गया है।

"बहुत सुन्दर कपल है तुम दोनों का," नीलम ने कहा।

कितनी लकी हो तुम्हारा पति तुम्हें कितना चाहता है... हमारा कितने खुले दिल से स्वागत किया हमें बहुत अच्छा लगा," दूसरी सहेली ने कहा।

"अरे सारा अपनी सहेलियों का परिचय कराओ कभी कहीं मिल गईं तो मुझे पहचानेगी नहीं....मैं पहचान लूँगा...क्यों ठीक है ना," उसने मुस्कराते हुए कहा।

"यह मेरी सबसे प्यारी सहेली है रीना है...," उसने अन्दर के आवेग को दबा कर कहा।

"हाँ यह तो मैं देख रहा हूँ भई यह बहुत प्यारी है," उसकी ओर देखते हुए प्रकाश ने सराहती हुई नज़र डाली। सारा ने सोचा कितनी ख़राब क़िस्मत है मेरी। मुझे कैसा पति मिला है। पति की बातें, उसकी मुस्कान सारा के दिल में खंजर की तरह चुभ रही थी। रीना कुछ सोच रही थी। वह उसके दिल की हालत से परिचित थी।

"आपका बहुत अच्छा स्वभाव है जीजा जी। परन्तु अपनी पत्नी के सामने किसी और लड़की की तारीफ़ नहीं करनी चाहिए," रीना ने मुस्कराते हुए कहा।

"पत्नी के सामने किसी की तारीफ़ क्यों ना करें। पत्नी पास है इसका मतलब यह तो नहीं कि पति अन्धा गूँगा हो जाए। सुन्दर को सुन्दर ही कहा जाता है ना....फिर मैंने तो इनकी सहेली की तारीफ़ की है। यह ख़ुश ही तो होगी। क्यों सारा मैं ठीक कह रहा हूँ ना," उसने सारा की ओर शरारत भरी नज़रों से देखा।

उसे मजबूरन मुस्कराना पड़ा। उसे लगा रीना गहरी नज़रों से सारा की तरफ देख कर कुछ याद दिला रही है। उसका दिल चाहा ज़मीन फट जाए और उसमें समा जाए। कितनी परेशानी में गुज़र रही थी इस समय वह। वाकई इन्सान को कभी बड़े बोल नहीं बोलने चाहिएँ। समय के हाथों वे बोल तमाचा बन कर मुँह पर लगते ही हैं। सहन करने की आखिरी हद तक वह चुप रही।

"नाश्ता लगा दो सारा," प्रकाश बोला।

सारा बुझे दिल से नाश्ता लगाने रसोई में गई। रीना उसके पीछे रसोई में गई।

यह सब देख कर मेरे दिल पर क्या बीतती है। आखिर मैं भी तो एक स्त्री हूँ - इनकी धर्म पत्नी हूँ। मेरे दिल के अन्दर दूसरी स्त्री के प्रति ईष्या का होना स्वाभाविक है। वह मन ही मन सोच रही थी। सहेलियाँ प्रकाश से बातें कर रही थीं।

थोड़ी देर बाद प्रकाश रसोई में आते हुए बोला, "मेरी कोई हेल्प की आवश्यकता है?"

"नहीं.."

"वाह बहुत ख़ुशबू आ रही है। तुमने कुछ बनाया है।"

"पकौड़े.."

तो मेरे दोस्त कहते हैं तुम्हारी बीबी क्या खिलाती है जो तुम्हारे मुँह पर चमक छा रही है। मैं भी उन्हें बताता हूँ मेरी पत्नी के हाथ का कमाल है। खूब प्रेम से खाना बनाती है।"

"अच्छा बस रहने दीजिए झूठी तारीफ़," सारा ने कुछ नाराज़गी से कहा।

उसे अनमनी देख कर रीना ने कहा, "जाईए जीजा जी हमें हमारी सखी के साथ समय बीताने दो... इसके पीछे-पीछे लगे रहते हैं।"

"आपका हुक्म ...जाता हूँ," शरारत से सारा को देखा, "तो मैं जाऊँ... तुम्हारी सहेली मुझ से जल रही है।"

रीना ने हँसते हुए कहा, "जाइए ना।" वह मुस्कराता हुआ बाहर निकल गया।

रीना ने सारा से कहा, "सारा तुम कितनी लकी हो कि तुम्हें इतना खुले दिल का पति मिला है। मैंने देखा है तुम्हें बहुत चाहता है।"

"तुम मेरे विचारों को जानती हो.... क्या मैंने ऐसा पति चाहा था," सारा ने रुआँसी हो कर कहा।

"मैं जानती हूँ। लेकिन मेरी एक बात पर विचार करो तुम्हें कभी किसी बात का शिकायत का मौका दिया। वह तुम्हें दिल जान से चाहता है। इस चाहत के कारण वह तुम्हें अपना दोस्त समझता है और अच्छी, बुरी सब बात तुमसे शेयर कर लेता है। क्या मैं गलत कह रही हूँ? तुम अपनी आदत से समझौता कर लो, नहीं तो इतने अच्छे पति को अपने से दूर कर दोगी," रीना ने कई तरीकों से समझाया।

"हाँ मुझे बहुत चाहते हैं। मेरी हर बात को मानते हैं।"

उसे सोचने का मौका दे रीना बाहर चली गई।

जब एक संदेह दिल के अन्दर बैठ जाता है तो उसे निकालना असम्भव हो जाता है। विशेषकर एक स्त्री का संदेह जो अपने पति को लेकर करती है। यही कारण था कि वह वास्तविकता से अनभिज्ञ मन ही मन ईर्ष्या की आग में जलती चली जाती। वह खड़ी सोचती रही।

"अरे इससे तो अच्छा होता मैं बाज़ार से कुछ ले आता। सच पहले मुझे ख़्याल नहीं आया कि तुम सारा समय तुम रसोई में गुज़ार दोगी तो अपनी सहेलियों के साथ बैठ नहीं पाओगी," कहते हुए थेाड़ी देर बाद फिर प्रकाश हँसता मुस्कराता रसोई में आया।

पति को पास खड़ा देख कर उसकी आँखों के अंधकार में एक ज्योति चमकी मेरा सुख और शांति मुझ पर ही निर्भर है। पति की आँखों में ख़ुशी देखी, अपने लिए प्रेम से लबालब उसकी आँखों में देखती रह गई। उसे वापस जाते देखती खड़ी रह गई।

उसने मन में स्वयं से कहा, "ओह प्रकाश काश तुम ऐसे नहीं होते.... काश मैं इतनी भावुक नहीं होती।" उसने अपने दिल की आवाज़ सुनी। मन ही मन अपने आप को धिक्कारा। अपनी स्थति सम्भाली, आँचल से आँखें पोंछी और मुस्करा दी। रीना की बातें सब सच लगी। वास्तव में मैं स्वयं ग़लती कर रही हूँ। पति अपनी हर बात मुझे कहता है फिर मुझे भी मित्रता का व्यवहार रखना चाहिए। यह शक क्यों ?

परिस्थिति देख कर उसने किसी प्रकार स्वयं को सम्भाल लिया। उसने सोचा परिस्थिति से मेल करना ही पड़ता है।

"अब मैं अपने पति के ख़िलाफ़ कोई ऐसी बात नहीं करूँगी। आप जैसे भी हैं आपके नेचर से मुझे समझौता करना ही है। पति हैं आप मेरे...जब आप मुझे इतना चाहते हैं तो क्या मैं नहीं...? वरना शायद मैं आपको ही नहीं स्वयं को भी खो दूँगी। मेरा आदर्श जीवन केवल मेरा ही नहीं, माता-पिता, बहनें, ससुराल वालों सबका सर ऊँचा कर सकता है। अपने सफल विवाहित राह में ग़लत सोच आनी ही नहीं चाहिए।"

"अरे भई अब आ भी जाओ," प्रकाश की शोख आवाज़ उसके कानों में गूँजी।

उसने जल्दी से मुँह धोया जैसे पूरी गलत सोच को धो डाला। उसके अन्दर एक नई सारा पैदा हो गई। आत्मविश्वास से भरपूर सारा। एक दृढ़ संकल्प किया। पति की हर अदा मुझे पसन्द है। रीना ने आज उसमें एक विश्वास जागृत कर दिया। पति-पत्नी के सहज रिश्ते के अक़्स को खूबसूरत अन्दाज़ से, ईमानदारी के साथ सहेजने, सँवारने की सोच भर दी।

"अब कभी गलत सोच को कोई स्थान नहीं," सारा के दिल से आवाज़ निकली।

होंठों पर मुस्कराहट सजाकर नाश्ता लगाने लगी।

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