बेगानापन या अपनापन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. ज़ेबा रशीद20 Feb 2019
चाँद
खिड़की से
झाँक गया
या
कोई राही
भटक कर आ गया
धड़कनें मंद पड़ी थी
वह बढ़ा गया
जब
मैंने दिल का दरवाज़ा
खोल दिया
वह दिल की गहराई
नाप गया
एक नाता जोड़ गया
क्या यही है अपनापन?
समय की
घड़ी देख कर
राही मुँह मोड़ चल दिया
पैरों के निशान
छोड़ गया
अपनी पहचान
मेरी धड़कनों से
जोड़ गया
यादों की दुनिया बसा
गिनती तारों की सिखा
तन्हाई का
तोहफ़ा दे गया
क्या यही तो नहीं
बेगानापन?
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