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यादगार दिवस

एक गोरा-नारा गबरू जवान मज़दूर हाथ जोड़ अपने मालिक से मुखातिब होते बोला - "मालिक, आज मज़दूर दिवस है। आज के दिन ही मैं कुछ ज़्यादा मुखरित हो पाता हूँ। बाक़ी दिनों तो मेरी घिघ्घी बन्ध जाती है। आठ-दस महीनों से सोच रहा था कि आपसे मन की बात करूँ। पर हिम्मत न जुटा सका। पी.एम.-.सी.एम. होता तो रेडिओ द्वारा अपने मन की बात कह भी देता। पर छोटा आदमी हूँ। मज़दूर हूँ। मुझे तो रूबरू ही बोलना होगा। एक फ़रियाद है आपसे।"

"हाँ, हाँ… बोलो, क्या बात है? क्या मदद करूँ तुम्हारी? आज तो तुम्हारा ही दिन है भई। तुम्हारी बात तो आज रखनी ही होगी। क्या एडवांस चाहिए? या किसी से कुछ कहना है?" मालिक बोला।

"नहीं मालिक। ना एडवांस चाहिए। ना ही किसी से कुछ कहना है। बस, मुझे ही आपसे कुछ कहना है," मज़दूर बोला।

"तो बोलो… क्या बात है?"

"मालिक, मैं आपकी बेटी से बेइंतहा मुहब्बत करता हूँ। और वो भी मुझे बेहद प्यार करती है। हम एक-दूजे के बिना रह नहीं सकते। मैं चाहता हूँ कि आज मज़दूर दिवस है, तो आप अपनी बेटी का हाथ एक मज़दूर को सौंप इस दिवस को हमेशा के लिए यादगार बना दीजिये…। मैं एक जोड़े कपड़ों में ही आपकी बेटी को वरमाला डाल ले जाऊँगा। मुझे और कुछ नहीं चाहिए," मज़दूर एक साँस में नम्रतापूर्वक गिड़गिड़ा गया।

उसे डर था कि ये बातें सुनते ही मालिक बौखलाकर उसे धकिया देगा। पर ऐसा नहीं हुआ। मालिक ने बहुत ही सब्र से सामान्य लहज़े में उससे कहा -

"वो तो ठीक है बरख़ुरदार। पर मुझे बेटी के दिल की बात भी तो जानने दो कि वो क्या चाहती है? दरअसल मैंने उसके लिए अपनी बिरादरी का एक सुन्दर और धनवान लड़का ढूँढ रखा है। और इत्तेफ़ाक़ से वो आज मेरे घर मौजूद है। मैं दोनों को बुलाता हूँ। फिर बेटी से पूछता हूँ कि किससे शादी करना चाहेगी। तुम्हारी ओर इशारा करेगी तो तुम माला डाल देना अन्यथा दूसरा तो है ही। तो बुलाऊँ उन्हें?"

"हाँ मालिक। ज़रूर बुलाइए और बेटी से एक बार नहीं, दस बार पूछ लीजिये। वह कभी इंकार नहीं करेगी," मज़दूर ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।

मालिक के बुलावे पर दोनों आ गये। उसकी बेटी और घर में ठहरा बिरादरी वाला धनवान नौजवान।

मालिक ने अपनी बेटी को उन दोनों से थोड़ी दूर ले जाकर उसके कान में कुछ खुसुर-फुसुर की। बेटी के चेहरे का रंग एकाएक ही उड़-सा गया। दो मिनट में ही फैसला हो गया। वह आई और बिरादरी के नौजवान के गले में उसने वरमाला डाल दी। मज़दूर हक्का-बक्का रह गया। उसे काटो तो खून नहीं। वह लड़की की बेवफ़ाई से आहत हो उसे ग़ुस्से से घूरा तो वह सहमकर धनवान नौजवान का हाथ थाम तुरंत ही वहाँ से बाहर खिसक गयी।

मालिक ने मज़दूर से कहा- " लो भई। तुम्हारी इच्छा के अनुरूप हमने आज के दिवस को यादगार बना दिया। अब "मज़दूर दिवस ज़िंदाबाद" के नारे लगाते तुम भी निकल लो। मुझे भी एक कार्यक्रम में जाना है।"

"ठीक है मालिक। बेटी ने तो उड़ाया ही, आप भी इस ग़रीब के प्यार का मज़ाक उड़ा लो। पर कृपा कर इतना तो बता दो कि बेटी के कान में ऐसा क्या कह दिया कि वह मिनटों में ख़फ़ा और बेवफ़ा दोनों हो गई।"

"जानना चाहते हो? तो सुनो। मैंने बस इतना ही कहा कि इनके घर शौचालय नहीं है। "ओडी स्पॉट" (खुले में शौच के स्थल) जाओगी तो वहाँ स्वच्छता दूतों की टोली "बैठते" ही सीटी बजाएगी। बस इतने से ही उसके दिमाग़ की सीटी बज गई और उसने फैसला ले लिया।"

"पर मालिक। मेरे घर तो शौचालय है। आपने ऐसा फ़रेब क्यों किया? क्या हक़ बनता है आपको इस तरह दो प्यार भरे दिलों को यूँ तोड़ने का। हमें अलग करने का? थोड़ा तो सोचते कि प्यार-मुहब्बत कुदरत की दी हुई कितनी अनमोल चीज़ है।"

मालिक ने बात काटते कहा – "अब ये सब तुम अपने शौचालय में बैठकर सोचो यार। मैंने जो सोचा वो हो गया। वैसे तुम्हारा आधा काम तो मैंने ईमानदारी से ही किया। मज़दूर दिवस को यादगार जो बना दिया। आज के दिन को अब तुम शायद ही कभी भूलोगे। चलता हूँ, यूनियन वाले मुझे लेने आ गए।"

बाहर "मज़दूर दिवस ज़िंदाबाद"। "मज़दूर एकता अमर रहे" के नारे लग रहे थे। हज़ारों की भीड़ वाली रैली सामने से गुज़री तो वह बड़े बेमन से उसमें घुस गया। एकता के नारे अब भी लग रहे थे। पर वह निपट अकेला था।

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