आत्म-मूल्यांकन
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. कुँवर दिनेश1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
प्रतिभा ने एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में भौतिकी विषय में प्रवक्ता पद के लिए आवेदन किया।
उसने पीएच.डी. कर ली थी और कुछ संस्थानों में अतिथि संकाय में शिक्षण का अनुभव भी अर्जित किया था। साथ में कुछ शोधपत्र भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के चर्चित जर्नलों में प्रकाशित करा लिए थे।
उक्त पद के लिए प्रतिभा को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। उसकी प्रस्तुति से प्रसन्न होकर इंटरव्यू बोर्ड की अध्यक्षता कर रहे कुलपति ने पूछा, “आप वेतन कितना चाहते हो?”
“जी, आपने नियत किया ही होगा इस पद के लिए. . .”
“नहीं, हमारे वेतन सरकारी वेतनमान से अधिक भी होते हैं; यह व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है। हमें तो आउटपुट अच्छी चाहिए, बस. . . कहिए आप स्वयं को कितने वेतन के योग्य मानती हैं?”
प्रतिभा ने थोड़ा झिझक कर, रुक-रुक कर कह दिया, “जी, सरकारी वेतनमान के अनुरूप पचीस हज़ार मिल जाए तो. . .”
“डन. . . कल ही ज्वाइन कर लीजिए।”
महीना पूरा होने पर प्रतिभा वेतन वाले रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर रही थी। उसने देखा उसी पृष्ठ पर उसी के विषय के एक अन्य प्रवक्ता का वेतन तीस हज़ार रुपए अंकित था जबकि उसकी योग्यता उससे कम थी। उसके पास केवल एम.फिल. की डिग्री थी; प्रतिभा पीएच. डी थी।
प्रतिभा अपमानित और कुण्ठित अनुभव कर रही थी। हिम्मत जुटाकर वह कुलपति के पास पहुँच गई। कुलपति ने उससे पूछा, "सब ठीक है प्रोफ़ेसर? किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं है?"
“जी, सब ठीक है. . . लेकिन एक परेशानी है. . .”
“कहो, क्या समस्या है?”
“जी, कल मैं वेतन के रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर रही थी तो मैंने देखा मुझ से कम योग्यता वाले मेरे सहयोगी का वेतन मेरे वेतन से अधिक है। वह केवल एम.फिल. है और मैं पीएच. डी. हूँ. . .”
“अच्छा, तो यह समस्या है. . .,” हँसते हुए कुलपति महोदय ने कहा। “देखो, प्रोफ़ेसर! हमने आपसे पूछा था आप कितना वेतन चाहते हो, जितना आपने माँगा हमने उतना ही दे दिया. . .।”
“लेकिन, सर, मैं बहुत अटपटा महसूस कर रही हूँ. . .”
“देखो, हम तुम्हारी परफ़ॉर्मेंस से संतुष्ट हैं. . . और हम अगले माह से वेतनवृद्धि कर देंगे, तुम्हें पैंतीस हज़ार रुपए देंगे, लेकिन एक बात समझ लो―व्यक्ति को अपनी योग्यता का सही मूल्यांकन करना चाहिए। तुम अपना जितना मूल्य लगाओगे, उतना ही पाओगे।”
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Rajender Verma 2020/06/01 06:01 PM
कुंवर दिनेश जी आपकी लघुकथा विचारणीय बिंदु पर केन्द्रित है . प्रतिभा-संपन्न लोग अक्सर अपना सही मूल्यांकन नहीं कर पाते और फिर जब एवरेज लोग सर पर बैठ जाते हैं तो दिखी होते हैं.