बच्चों के लिए ख़ूबसूरत और उपयोगी बालकृति: मुट्ठी में है लाल गुलाल
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कृति: मुट्ठी में है लाल गुलाल (बाल कविता संग्रह)
कृतिकार: प्रभुदयाल श्रीवास्तव (छिंदवाड़ा, म.प्र.)
प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष: 2023 (प्रथम संस्करण)
पृष्ठ: 214
मूल्य: ₹590/-(सजिल्द)
मेरे हाथ में बहुत ही ख़ूबसूरत बाल कृति ‘मुट्ठी में है लाल गुलाल’ है। इसके सृजनकार छिंदवाड़ा (म.प्र.) के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित बालसाहित्यकार प्रभुदयाल श्रीवास्तव जी हैं। इसी वर्ष कुछ माह पूर्व आपकी 51 बाल कविताओं की पुस्तक ‘अम्मा को अब भी है याद’ प्रकाशित हुई है। वर्ष 2023 में बाल कविताओं की आपकी यह दूसरी पुस्तक ‘मुट्ठी में है लाल गुलाल’ आई है। इस कृति में कुल 214 पृष्ठ हैं। 121 बालगीतों का सृजन हुआ है। इस सजिल्द पुस्तक की सबसे ख़ास बात है कि इसके सभी पृष्ठ प्लास्टिक कोटेड हैं। आवरण रंगीन और मनमोहक है। रवीना प्रकाशन, दिल्ली ने इसे प्रकाशित किया है। मूल्य 590 रुपये है।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव जी कई दशकों से बाल साहित्य में साधनारत है। आपने बालसाहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में सृजन किया है। लगभग 79 वर्ष की आयु होने पर भी आप सतत लेखन कर रहे हैं। बाल साहित्य के साथ ही प्रौढ़ साहित्य में भी आप सृजनरत हैं। देश की लगभग प्रमुख बाल पत्रिकाओं में आपकी अच्छी बाल रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहती हैं। इस संग्रह की कविताएँ बालगीत के रूप में हैं। बाल मन के आप कुशल चितेरे हैं।
जिसकी झलक इस कृति की कविता ‘चूहे क्यों न बिकते’ में दिखाई पड़ती है:
“पूछ रहे बिल्ली के बच्चे,
बैठे एक क़तार में।
चूहे क्यों न बिकते हैं माँ,
मेलों या बाज़ार में।
हम तो घात लगाकर बिल के,
बाहर बैठे रहते हैं।
लेकिन चूहे धता बताकर,
हमें छकाते रहते हैं।
बीत कई रातें जाती हैं,
दिन जाते बेकार में।”
कवि को बच्चों के पसंद की जानकारी बख़ूबी है। बच्चे गर्मी की छुट्टी में अपने गाँव जाना चाहते हैं। कवि दादा-दादी, गाँव, खलिहान की बात कर रिश्तों में मिठास भरना जानते हैं। ‘जितनी जल्दी हो’ कविता में सृजनकार की कल्पना देखिए:
“अब तो लगता गरमी आए,
जितनी जल्दी हो।
शाला की छुट्टी हो जाए,
जितनी जल्दी हो।
दौड़-भागकर पहुँचें गाँव के,
घर के बाहर।
वहीं खड़ी दादी मिल जाएँ,
जितनी जल्दी हो।
कंडे-लकड़ी-चूल्हे वाली,
रोटी अमृत-सी।
उस रोटी पर लगा गाय का,
देशी ताज़ा घी।
काश! मुझे हर दिन मिल जाए,
जितनी जल्दी हो।”
कवि की सृजन क्षमता श्रेष्ठ और अनुपम है। कवि ने नए-नए विषयों पर भी बेहिचक मनमोहक रचना की है। पुरातन, परंपरागत और नवीन विषय, सभी पर सृजन कर कवि ने परिपक्व होने का परिचय दिया है। ‘जेसीबी की बड़ी मशीन’ कविता की सुन्दर पंक्तियाँ:
“कुछ मीठी, कड़वी, नमकीन,
जेसीबी की बड़ी मशीन।
बाँध, सड़क, पुल जहाँ बनाती,
मीठापन आभास कराती।
लोग झूमते हैं मस्ती में,
बजवाती ख़ुशियों की बीन।
जेसीबी की बड़ी मशीन।
काम बहुत तेज़ी से करती,
बड़े-बड़े गड्ढों को भरती।
झटपट समतल कर देती है,
ऊबड़-खाबड़ कड़ी ज़मीन,
जेसीबी की बड़ी मशीन।”
हमारे देश में पशुओं-जानवरों को भी परिवार का हिस्सा मानकर हम व्यवहार करते हैं। यही संस्कार बचपन से ही हम बच्चों को देते हैं। ‘तुलसी चौरा मुस्काता’ कविता में:
“बिल्ली को हम मौसी कहते हैं,
और गाय को हम माता।
यही हमारे संस्कार हैं,
जानवरों तक से नाता।
चिड़ियों को देते है दाना,
कौआ भी रोटी पाता।
प्यासों को पानी देने में,
हमको मज़ा बहुत आता।”
आजकल बच्चों के लिए माता-पिता और दादा-दादी के पास समय नहीं है। आधुनिकता का संजाल रिश्तों पर भारी है। कवि बच्चों की मनोदशा को ‘दादी को समझाओ जरा’ में रचते हैं:
“मुझे कहानी अच्छी लगती,
कविता मुझको बहुत सुहाती।
पर मम्मी की बात छोड़िए,
दादी भी कुछ नहीं सुनातीं।
मुझको क्या अच्छा लगता है,
मम्मी कहाँ ध्यान देती हैं।
सुबह शाम जब भी फ़ुरसत हो,
टीवी से चिपकी रहती हैं।”
पहले बच्चे खिलौने संग खेल कर ख़ुश होते थे। आए दिन मम्मी-पापा और बड़ों से ज़िद करके खिलौने खरीदवाते थे। पर जब से मोबाइल का पदार्पण हुआ है। बच्चे खिलौने छोड़कर मोबाइल में ही गेम खेल रहे हैं और कार्टून में ही वो मगन हैं। खिलौनों की इस दशा को कवि ने कविता ‘सब नतमस्तक’ में किस सुंदर तरीक़े से सृजित किया है:
“सभी खिलौने भूखे प्यासे,
और कुपोषित हैं।
मोबाइल के पद अर्पण से,
सारे शोषित हैं।
अलमारी में सभी बंद हैं,
दम सा घुटता है।
भालू अपने बच्चे के संग,
रोता रहता है।
किसी युद्ध के अपराधी ये,
सारे घोषित हैं।
घोड़े को चूहे ने कुतरा,
पूँछ हो गई गोल।
बदल दिया है तिलचट्टों ने,
कुत्तों का भूगोल।
बिगड़ गए हैं हुलिए सबके,
अस्सी प्रतिशत हैं।”
बच्चों को बचपन से ही पेड़-पौधों का महत्त्व बताना चाहिए। कवि ने केवल बच्चों के लिए मनोरंजक सृजन नहीं किया है बल्कि कितनी ज्ञानवर्धक और रुचिकर रचना लिखी है। इसे कविता ‘पेड़ सदा शिक्षा देते हैं’ में देखिए:
“जीव जंतुओं की ही भाँति,
वृक्षों में जीवन होता है।
कटने पर डाली रोती है,
छटने पर पत्ता रोता है।
जैसे हमें घाव होने पर,
लहू फूटकर बाहर आता।
वैसे ही कटने छटने पर,
पेड़ों को दुख दर्द सताता।
इतना दुख इस पर भी उनमें,
भाव समर्पण का होता है।
पर सेवा होती है कैसी,
हम वृक्षों से सीख न लेते।
हमसे कभी न कुछ माँगा है,
वृक्ष सदा देते ही देते।
सेवा, त्याग, तपस्या, हर क्षण,
पेड़ सदा शिक्षा देता है।”
शहरी परिवेश में रह रहे बच्चे आजकल फ़ास्टफ़ूड और कोल्डड्रिंक के दीवाने है। कवि चाहता है गर्मी की छुट्टी में बच्चे गाँव की संस्कृति, संस्कार और खान-पान के बारे में जानें। बड़े शहरों-महानगरो में रहते हुए बच्चे अपने गाँव का नाम तक नहीं जानते। मोबाइल गेम की बजाए बच्चे कौन सा खेल खेलें। कविता ‘हम बच्चे जिंदाबाद’ में लिखते हैं:
“खेल कूद खाने-पीने को,
अब हम हैं आज़ाद।
हम बच्चे जिंदाबाद।
पन्ना आम का, कच्ची कैरी,
और पुदीना चटनी।
गन्ने का रस पीकर देते,
लू को रोज़ पटकनी।
तन-मन को ठंडा कर देता,
सत्तू का भी स्वाद।
दिन भर धमा चौकड़ी,
हाथी घोड़े वाले खेल।
इंजन, डिब्बा, गार्ड, मुसाफ़िर,
छुक-छुक करती रेल।
कैरम में जो जीता, करता,
ख़ुशियों से सिंहनाद।”
कवि का हृदय गाँव में बसता है। कवि बच्चों को गाँव से, वहाँ की चीज़ों से, पुराने खेलों से जोड़ना चाहते हैं। उन्हें पता है कि आजकल गाँव हो या शहर हो बच्चे वीडियो गेम में रमे रहते हैं। खेलना-कूदना बमुश्किल होता है। जबकि हम लोग बचपन में गिल्ली डंडा, आइस पाइस, कबड्डी, कंचा गोली, गिप्पी, लँगड़ी टंगड़ी, कुश्ती, आँख-मिचौली, छुपम-छुपाई आदि ख़ूब खेलते थे और हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ रहते थे। आजकल बच्चे उक्त खेलों का नाम ही नहीं जानते हैं। मोबाइल गेम में ही आनंदित हैं और यही कारण हैं कि छोटे-छोटे बच्चों को बचपन से ही मोटे-मोटे चश्मे लग रहे हैं। कविता ‘खेल पुराने कैसे थे’ में कवि कहता है:
“दादाजी मुझको बतलाओ,
खेल पुराने कैसे थे।
क्या होता था गिल्ली डंडा,
क्या होती थी आँख मिचौली?
कंचे गोली पिट्ठू क्या थे,
क्या थे हँसी ठिठोली?
छुपन छुपाई गड़ा गेंद में,
लगते कितने पैसे थे?
गपई समुद्दर लँगड़ी टंगड़ी,
नाम सुने थे मैंने।
खेली, लँगड़ी, मुझे पड़ गए,
पर लेने के देने।
टाँग टूटने से बच पाए,
बस हम जैसे तैसे थे।”
होली बच्चों का प्रिय त्योहार है। जी-भर रंग-गुलाल खेलना उन्हें पसंद है। बच्चों का पिचकारी में रंग भर दूसरे पर फेंकना, रंग लगाना, गुझिया और मनपसंद पकवान खाना उन्हें सुहाता है। बच्चों के मन की गहरी पकड़ कवि को है। इस संग्रह का शीर्षक नाम ‘मुट्ठी में है लाल गुलाल’ में सुंदर और मनोरंजक कविता:
“नोमू का मुँह पुता लाल से,
सोमू का पीली गुलाब से।
कुर्ता भीगा राम रतन का,
रम्मी के हैं गीले बाल।
मुट्ठी में है लाल गुलाल।
सल्लू पीला रंग ले आया,
कल्लू ने भी हरा उड़ाया।
रंग लगाया इक दूजे को,
लड़े भिड़े थे परकी साल।
मुट्ठी में है लाल गुलाल।
कुछ के हाथों में पिचकारी,
गुब्बारों की मारामारी।
रंग-बिरंगे सबके कपड़े,
रंग-रंगीले सबके भाल,
मुट्ठी में है लाल गुलाल।”
बच्चों को पक्षी जानवर बहुत अच्छे लगते हैं। कोयल, गौरैया, बुलबुल, तोता, ख़रगोश, चूहा, बंदर, कुत्ता, बिल्ली आदि बच्चों को प्रिय हैं। तोता के माध्यम से कवि ‘तोता कहता नमस्कार जी’ रचना में बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने को प्रेरित करते हैं। इस अनुपम रचना की कुछ पंक्तियाँ:
“सुबह-सुबह जल्दी से उठकर,
तोता कहता नमस्कार जी
छोड़ो आलस, बिस्तर त्यागो।
जागो रजनी, दीपक जागो।
सोने में अब नहीं सारजी।
तोता कहता नमस्कार जी।
दिनभर खेल पढ़ाई करना।
नियमित अनुशासन में रहना।
सबसे अच्छा हो व्यवहार जी।
तोता कहता नमस्कार जी।
ख़ूब पढ़ो, अफ़सर बन जाओ।
श्रम करना, धन ख़ूब कमाओ।
इज़्ज़त बँगला मिले कार जी।
तोता कहता नमस्कार जी।”
कवि मनोरंजन, ज्ञान के साथ-साथ देशप्रेम की बात ‘एक देश है एक वतन है’ में करता है। वह चाहता है कि बच्चों में देशभक्ति का भी जज़्बा ख़ूब हो।
“मिले हाथ से हाथ तो मिलकर,
दृढ़ ताक़त बन जाते।
बड़े-बड़े दुश्मन तक इसके,
आगे ठहर न पाते।
रहना होगा हमें देश में,
हिंदुस्तानी बनकर।
एक देश है, एक वतन है,
कहो सभी से तनकर।”
बच्चों का मनोविज्ञान कवि ख़ूब समझता है। बच्चे परीक्षा से घबराते हैं। कविता ‘किससे मन की बात करें’ में बच्चों के मन की बात:
“किससे मन की बात करें,
यह पूछ रहे हम बच्चे।
सिर पर खड़ी परीक्षा है सब,
पढ़ो-पढ़ो चिल्लाते।
अंक तुम्हें सौ प्रतिशत लाना,
हमको है धमकाते।
डाँट रहे सब ऐसे जैसे,
हम हों चोर उचक्के।”
प्राइवेट स्कूलों में आजकल छोटी कक्षा में ढेर सारी पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल रहती हैं। बच्चों की पीठ दुखने लगती है। कवि ने बच्चों की पीड़ा-व्यथा को कविता ‘इतनी ढेर किताबें’ में सुंदर तरीक़े से व्यक्त किया है:
“किसको अपने ज़ख़्म दिखाऊँ,
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ।
इतनी ढेर किताबें लेकर,
अब मैं शाला कैसे जाऊँ।
बीस किताबें ठूँस-ठूँस कर,
मैंने बस्ते में भर दी हैं।
बाज़ू वाली बनी जेब में,
पेन, पेंसिलें भी धर दीं हैं।
किन्तु कापियाँ सारी बाक़ी,
उनको अब मैं कहाँ समाऊँ।
इतना कठिन पाठ्यक्रम जबरन,
हम बच्चों पर क्यों थोपा है।
नन्हे से छोटे गमले में,
बरगद का तरुवर रोपा है।
अपना दर्द बताना है अब,
किसकी दर पर बोलो, आऊँ?”
स्कूल में दिन भर पढ़ने के बाद जब छुट्टी का समय होता है। बच्चे स्कूल की घंटी बजने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। कविता ‘छुट्टी की घंटी’ में बच्चों की मनोदशा को किस तरह बच्चा बनकर कवि सलोनी अनुपम कविता सृजित करता है:
“कूद-कूदकर, उछल-उछलकर,
होता है मस्ती का मन।
जब बजती छुट्टी की घंटी,
टन-टन-टन-टन, टन-टन-टन।
पाँच पीरियड तक तो तबीयत,
हरी-भरी-सी रहती है।
पर छठवाँ आते ही मन में,
उलटी गिनती चलती है।
दस से होकर शुरू पहुँचती,
ताक धिनाधिन, थ्री टू वन,
जब बजती छुट्टी की घंटी . . .!”
इसी पुस्तक में कवि ने बच्चों के लिए लगभग हर विषय पर कविताएँ सृजित की हैं। सभी कविताएँ बालगीतों के रूप में हैं। जहाँ रचनाओं में मनोरंजन हैं, वहीं ज्ञान है, विज्ञान है, शिक्षा है, संस्कार है, इतिहास है, शहर के साथ गाँव के मनोरम दृश्य भी हैं। ‘यह सबको समझाती नदियाँ’ में बच्चों नदी के बारे में, ‘पानी बहुत बचा है कम’ में पानी के महत्त्व, पानी की बर्बादी और भविष्य में पानी की उपयोगिता के बारे में जानकारी अच्छी कविता के माध्यम से दी गई है। ऐसे ही ‘पैदल चलो’ में स्वास्थ्य, ‘पेड़ नीम का’ में नीम हमारे जीवन के लिए क्यों उपयोगी है, ‘बेटे की सीख’ कविता में मतदान के महत्त्व के बारे में, ‘कड़े परिश्रम का फल मीठा’ में परिश्रम के बारे में बताया गया है। इस कृति की एक अनुपम और ज्ञानवर्धक कविता ‘इसी देश में’ है। इस बड़ी कविता में कृष्ण, राम, भीष्म, भागीरथ, माँ गंगा, दानी कर्ण, विदुर, वेदव्यास, वीर शिवाजी, छत्रसाल, दुर्गा, सावित्री, कौशल्या, ध्रुव, प्रहलाद, महावीर गौतम, गाँधी आदि के बारे में गीत के माध्यम से जानकारी दी गई है।
अन्य सभी कविताएँ भी रुचिकर मनोरंजक और ज्ञानपरक हैं। सभी कविताएँ लयबद्ध हैं, गेय हैं और वाचन में अच्छी लगती हैं। शब्दों में सरलता है जिससे बच्चे आसानी से पढ़ कर याद कर लेंगे। किसी भी रचना में उपदेश देने का प्रयास नहीं है। संग्रह में अधिक रचनाओं के बावजूद कहीं से उबाऊपन नहीं है। वर्तनी की त्रुटियाँ नहीं है और छपाई भी उत्कृष्ट है। फॉन्ट भी सही है बच्चे आसानी से पढ़ लेंगे। पृष्ठ अधिक और प्लास्टिक कोटेड होने के कारण पुस्तक का मूल्य अधिक हो गया है। पर यह पुस्तक श्रेष्ठ और संग्रहणीय कृति होने के कारण इसे अवश्य क्रय करना चाहिए। कह सकते हैं कि लगभग सभी कविताएँ बच्चों के लिए के लिए उपयोगी, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक हैं।
इस कृति का बाल साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा ऐसा मुझे विश्वास है। इस श्रेष्ठ और अनुपम बाल संग्रह के सृजन के लिए प्रभुदयाल श्रीवास्तव जी को अनेकानेक बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ।
समीक्षक: लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर
ज़िला-बस्ती 272124 (उ.प्र.)
मोबाइल: 7355309428
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