क़ानून का राज
काव्य साहित्य | कविता लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
   
क़ानून का ही राज हो, 
समता का समाज हो।
ठीक  काम काज हो,
न कोई भी नाराज़ हो।
सब  कोई  फूले फलें,
न हो कोई शिकवे गिले।
न कहीं पर उन्माद हो,
अनर्गल न प्रलाप हो।।
क़ानून सबको न्याय दे,
कोई न भी परेशान हो।
देखें न ही अमीर गरीब,
क़ानून में सब समान हों।।
क़ानून पूरे  पूरे  देश में,
सबका ही  ख़्याल करे।
धर्म जाति के आधार पर,
क़ानून न  पक्षपात करे।।
अलग अलग क्षेत्र का,
विशेष न ही क़ानून हो।
अलग अलग प्रदेश का,
न  अलग संविधान हो।
लोक कल्याणकारी बने,
क़ानून सर्व हितकारी हो।
क़ानून न ही लचीला  हो,
न ही बहुत ख़र्चीला हो।।
करते  सभी लोग पालन,
क़ानून का होता सम्मान है।
लागू जहाँ ऐसा  संविधान,
वह  देश बहुत महान है।।
क़ानून  के  तराजू में  ही,
दोनों  ही पलड़े  सम  हो।
न हो  कोई भी ऊँच नीच,
सब को सम अधिकार हो।
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