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भारत को स्वतंत्र करवाएँगे

अँग्रेज़ भगाओ अँग्रेज़ भगाओ
गूँज उठा ये नारा
हर जगह
हर स्थान
हर शहर में
चाहे हो वाराणसी
हैदराबाद
दिल्ली
या रांची
सब जगह
भारत माता का ही गुणगान
 
पतरातू में भी
गूँज उठा ये नारा
सारे लोग
क्रांति में हुए शामिल
पर बच्चे नहीं हो पाए शामिल
कहते हम बहुत छोटे हैं
हम क्या कर सकते हैं? 
 
तब मिठाई वाले को सूझी एक बात
बुलाया तब बच्चों को
और कर दिया ऐलान
“जो अँग्रेज़ भगाएगा, 
लकठो लेकर जाएगा“
 
सब बच्चों ने बनाई टोली
उसे टोली में था एक बच्चा
बना वह सब का नेता
थे नहीं वह और कोई
थे वह मेरे नानाजी
 
फिर आया वह दिन
जिस दिन लॉर्ड जॉन निकले सवारी पर
पतरातु की घाटी में कर रहे
घुड़सवारी वह
कभी इधर जाना होता कभी उधर
अंत में पहुँचे पतरातू में
उनका आगमन हुआ नहीं फूलों से
पर हुआ नारों से। 
“लॉर्ड जॉन हाय हाय
 ब्रिटिश सरकार हाय हाय!”
 
पर लॉर्ड हुआ नहीं ग़ुस्सा
वह तो पड़ा हँस
बच्चे भी हँसने लगे
लॉर्ड अपने राह पर चल दिया
बच्चे अपनी राह पर
भागे वह मिठाई की दुकान तक
“काका काका! अँग्रेज़ को भगा दिया हमने“
 
काका की ख़ुशी सातवें आसमान पर
जैसा किया था उन्होंने वादा
था उनका अच्छा इरादा
दे दिया सबको एक लकठो
चाहे वो राम श्याम या हो मिट्ठू
 
पर जाने अनजाने में काका ने कर दी ऐसी फ़ौज तैयार
जो आगे चलकर
आगे बढ़कर
अँग्रेज़ को भगाएँगे
वह भारत को स्वतंत्र करवाएँगे

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