चौराहा
कथा साहित्य | लघुकथा सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'23 May 2017
पुरानी दिल्ली का सबसे खूबसूरत बाज़ार चाँदनी चौक है। जहाँ सदा मेला लगा रहता है। सड़क के दोंनों ओर फुटपाथ पर दुकानें सजी हुई हैं। रंगबिरंगे खिलौने। भालू, बंदर, गाय, बत्तख और न जाने कैसे कैसे खिलौने थे जिन्हें देखकर किसका मन न ललचाए। एक दुकान पर कुछ लड़कियाँ चूड़ियाँ खरीद रहीं थी। 10 वर्षीय रीना दूर से खड़ी चूड़ियों की दुकान की ओर देख रही थी। फिर कुछ सोचकर दुकान पर आई और दुकानदार से पूछा‚ “ये हरी-हरी चूड़ियाँ कैसे दीं?”
“24 रुपए दर्जन।”
“2 चूड़ियाँ देना।” दुकानदार ने उसे 2 चूड़ियाँ दीं। वह एक-एक चूड़ी दोनों हाथों में पहनकर बहुत खुश हुई। फिर उसे ध्यान आया कि उसके पास तो पैसे भी नहीं हैं। घर में पैसे नहीं हैं यह बात वह बहुत अच्छी तरह जानती थी। पिता बीमार रहते थे। माँ लोगों के घर बरतन साफ करती थी। जैसे-तैसे घर का खर्च चल रहा था। रीना पिता की देखभाल व घर का चूल्हा-चौका करती। उसने भी कुछ काम करके पैसे कमाने की सोची। फिर वह काम माँगने इधर-उधर जाने लगी। पर सब उसे बच्ची कहकर भगा देते। तभी उसके मन में विचार आया कि वह चौराहे पर जाकर अपने लिए कोई काम देखे। अकसर उसके सोनू भैया वहाँ अखबार बेचते तो राधा गजक बेचती। यह सब देखकर रीना ने सोचा कि वह भी कुछ काम करेगी। कभी-कभी रीना सोचती वह भीख माँगेगी पर लोग क्या कहेंगे। वह यह भी सोचती कि भीख माँगना अच्छी बात नहीं है। चोरी करना भी पाप है। पर नाटक तो किया ही जा सकता है। उसने कुछ सोचकर अपना एक हाथ फ्राक में छिपा लिया और भीख माँगने लगी।
“बाबूजी पैसे दे दो 1 नहीं तो 2 दे दो।” -- ऐसे कभी उसे पैसे मिलते कभी दुत्कार। एक बार रीना चौराहे पर भीख माँग रही थी। लाल बत्ती हुई तो एक तिपहिया आकर रुका। रीना ने उससे पैसे माँगे। तिपहिए में बैठे आदमी ने उससे पूछा, --
“बिटिया तुम भीख क्यों माँग रही हो? तुम्हारी क्या मजबूरी है?”
“मुझे 2 हरी चूड़ियाँ खरीदनी हैं अंकलजी। मैं आपसे भीख नहीं माँग रही बल्कि अपना अभिनय दिखा रही हूँ।”
“पर तुम्हारा तो एक ही हाथ है फिर 2 चूड़ियाँ क्या करोगी? “
“नहीं अंकलजी‚ मेरा हाथ टूटा नहीं है। मैं तो अपाहिज होने का नाटक कर रही हूँ।” कहते हुए उसने फ्राक से हाथ बाहर निकाल लिया।
“तुम एक दिन महान अभिनेत्री बनोगी‚” कहते हुए उस व्यक्ति ने रीना के हाथ में बीस रुपए थमा दिए।
“पर अंकल इतने पैसे।” बत्ती हरी हो चुकी थी। अंकलजी का तिपहिया जा चुका था। लाल से हरी व संतरी होती बत्तियों को बदलते देख रीना सोच रही थी कि क्या वह कभी बड़ी अभिनेत्री बन सकेगी।
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