देवलोक में कोरोना
कथा साहित्य | लघुकथा प्रेम एस. गुर्जर1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
शाम के समय एक ऋषिवर पृथ्वीलोक के ऊपर से गुज़र रहे थे। आसमान साफ़ था, प्रदूषण और एयर ट्रैफ़िक का नामोनिशान नहीं था। ये बदलाव देख उनका हृदय गदगद हो रहा था। तभी उनकी नज़र धरती पर पड़ी। सारे शहर सुनसान थे। मैट्रो सिटी की वे सड़कें जो ट्रैफ़िक से खचाखच भरी रहती थी वे भी इस समय निर्जन थीं। इंसान नाम का कोई प्राणी बाहर दिखाई नहीं दे रहा था। इंसानों को छोड़कर सब यथावत चल रहा था। पशु-पक्षी अपनी लय में थे। कोकिल आज भी सुमधुर स्वर में गुनगना रही थी। गौरेया के बच्चे खुली सड़क पर खेल रहे थे।
उनको आश्चर्य हुआ कि आख़िर बात क्या है? तक़रीबन तीन महीने पहले पृथ्वी भ्रमण पर निकले थे तब में और अभी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क दिखाई दे रहा है। पहले लोगों के अलावा कुछ दिखता न था। मोटर-गाड़ियाँ, भोंपू, धुँआ, ट्रैफ़िक जाम के अलावा कुछ नहीं था जो वे आब्ज़र्व करते। इंसानों द्वारा आपस में की जानेवाली माथाफोड़ी और मगज़मारी के आगे कोकिल का स्वर भी दब हुआ रहता था। आज सब उल्टा है। महाऋषि से रहा नहीं गया। चिंतित स्वर में उन्होंने तत्काल सूचना एवं प्रसारण मंत्री नारद जी का आह्वान किया।
"नारायण...नारायण" के स्वर के साथ नारद जी प्रकट हुए और ऋषिवर को प्रणाम किया।
"सदा सुखी रहो देवऋषि!" उन्होंने दायाँ हाथ ऊपर उठाते हुए आशीर्वाद दिया।
"कैसे याद किया प्रभु इस गण को।"
"नारद जी ये पृथ्वीलोक में क्या चल रहा है। कोई इंसान दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?"
"आपको नहीं मालूम प्रभु?" नारद जी ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं ! आपने बताया नहीं तो हमें कैसे मालूम होगा।"
"क्षमा करना प्रभु! मैंने सारी सूचना अपने फ़ेसबुक पेज पर डाली थी। ट्वीटर पर हर एक घंटे में ट्वीट करता रहता हूँ। इंस्टा पर लेटेस्ट फोटो भी अपलोड कर रहा हूँ।" उसके बाद नारदजी ने उनके चेहरे की तरफ़ देखते हुए पूछा, "क्या आप मुझे फ़ॉलो नहीं करते प्रभु।"
"नहीं ऐसी बात नहीं है। मेरा जियो का रिचार्ज ख़त्म हो गया था। सोचा कुछ दिन ध्यान में लगा दूँ बाद में रिचार्ज करवाऊँगा।" महाऋषि ने स्पष्ट करते हुए कहा, "आख़िर बात क्या हो गई जो लोग घरों में क़ैद हो गए।"
"कुछ नहीं प्रभु! एक कोरोना नाम के वायरस ने पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया।"
"अच्छा..." कुछ देर शांत भाव से सोचने के बाद ऋषिवर बोले, "इस विपत्ति की घड़ी में देवताओं को इंसानों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।"
"क्षमा करना प्रभु! सारे देवता इस समय पृथ्वी पर ही मौजूद हैं," नारद जी ने कंधे उचकाते हुए कहा।
"मुझे तो दिखाई नहीं दे रहे," पृथ्वी पर चारों तरफ़ देखते हुए बोले।
"इंसान तो ठीक; किंतु आप भी प्रभु..." नारद जी ने रहस्यमय अंदाज़ देखा।
"क्या मतलब?"
"आपको तो विदित है कि पृथ्वीलोक पर जाने के लिए प्रोटोकॉल बना हुआ है जिसके तहत कोई देवता अपने मूल स्वरूप में पृथ्वी पर नहीं जा सकता। इस वक़्त सारे देवता डॉक्टर्स के रूप में, पुलिस के रूप में, सफ़ाई कर्मी और दानदाता के रूप में पृथ्वी पर लोगों की मदद कर रहे हैं। ग़रीबों को खाना खिला रहे हैं। बीमारों की चिकित्सा कर रहे हैं। लगता है आप भी इंसानों की तरह पहचानने में चूक गए प्रभु... नारायण... नारायण... !"
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Rajender Verma 2020/05/03 07:45 AM
सृजन कई बार अपने आओ को प्रश्नों के खूंटे से ही बांध लेता है . जबकि संकट के समय में ऐसी सकारात्मकता की अधिक जरूरत होती है . साधुवाद ! नमन