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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 115 वीं जयंती के अवसर पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न

 

विश्व हिंदी परिषद ने विज्ञान भवन नई दिल्ली में किया आयोजन

 

विश्व हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 20-21 सितंबर, 2023 को दिल्ली के ‘विज्ञान भवन’ में संपन्न हुआ। इसका आयोजन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 115वीं जयंती के अवसर पर किया गया। जिसमें विभिन्न सत्रों में हिन्दी भाषा, साहित्य, संस्कृति व सत्ता, प्रशासन से जुड़े महत्त्वपूर्ण विद्वतजनों ने दिनकर के राष्ट्रवादी चिंतन और उन की विलक्षण, अतुलित शब्द सामर्थ्य का स्मरण करते हुए उन्हें हिन्दी भाषा, प्रगतिशीलता और मानवता के पक्षधर के रूप में ऋषितुल्य कालजयी कवि बताया। 

गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ने दिनकर की अनेक कालजयी रचनाओं को उद्धृत करते हुए कहा कि “दिनकर जी राष्ट्रवादी चेतना के एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ भी थे। उनकी कविताओं ने न केवल हिंदी भाषा को समृद्ध बनाया है बल्कि हरेक वर्ग और हर पीढ़ी के लिए उनकी कविताएँ, उनका सृजन एक आदर्श हैं।” 

डॉ. विपिन कुमार महासचिव विश्व हिंदी परिषद ने कवि के महान व्यक्तित्व का स्मरण करते हुए कहा कि “परिषद का इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के पीछे हिंदी भाषा व हिंदी सेवियों के मध्य एक मज़बूत पुल खड़ा करना है। सम्मेलन में आलेख प्रकाशन, वाचन, कवि सम्मेलन, सम्मान के अलग-अलग प्रकल्पों के साथ हिंदी भाषा को संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा बनाने के प्रति एक रचनात्मक व वैचारिक वातावरण खड़ा करने का भी परिषद का मूल उद्देश्य है। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होगी साथ ही यह एक विश्व भाषा भी बनेगी।” उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी के साथ हुए एक बहुचर्चित वाक़ये को दोहराते हुए कहा, “जब भी राजनीति लड़खड़ाएगी, तब-तब साहित्यकार उसे सहारा देकर सँभालने में समर्थ हैं।” 

मणिपुर की महामहिम राज्यपाल अनसूइया उइके ने सम्मेलन में कहा कि हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति और सभ्यता की परिचायक है, जो हमारे जीवन मूल्य, संस्कृति संस्कारों की सच्ची संवाहक और संप्रेषण भी है। उन्होंने कहा कि हिंदी एक ऐसी मीठी, मृदुल, वैज्ञानिक भाषा भी है जो हमारे पारंपरिक ज्ञान, सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक प्रगति के बीच का सेतु है और हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में हमारे विशाल देश भारत की एकता का सूत्र भी है। हिंदी को, मिल-जुलकर हमें हर दृष्टि से सर्वत्र सर्वोपरि बनाए रखना चाहिए। उन्होंने हिंदी को सर्वोत्कृष्ठ व सार्वभौमिक भाषा बताते हुए कहा कि हिंदी भाषा की समृद्धि और प्रचार प्रसार के लिए इस तरह के उत्कृष्ट व विराट कार्यक्रम जगह-जगह होने चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे हिंदी भाषा से बहुत अधिक प्रेम है। अंत में मणिपुर की जनता के कुशल भविष्य की कामना की। 

स्वामी चिदानन्द महाराज ने कहा कि “जब हम अपना जीवन जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पित कर दें, तभी हम हिंदी प्रेमी कहला सकते हैं। जिस भाषा ने भारत के लगभग सभी राज्यों और क्षेत्रों को जोड़ने का अनुपम कार्य किया है। अब समय आ गया है कि सभी भारतवासी हिन्दी के विराट अस्तित्व को जानें और उसे किसी भी प्रकार के भाषायी विवादों में न घसीटें। हिंदी के प्रसार का प्रमुख कारण हिंदी साहित्य, ग्रंथ, हिंदी सिनेमा, टेलीविज़न तथा हमारी विविधता में एकता की संस्कृति का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसका प्रयोग पढ़ने, लिखने और संवाद हेतु किया जाता है व हिंदी अपनेपन और आत्मीयता युक्त संवाद की सबसे उत्तम भाषा है।” स्वामी जी ने कहा कि हिंदी को भारत की आधिकारिक रूप से भाषा के साथ तकनीकी भाषा के रूप में स्वीकार करना नितांत आवश्यक है ही, परन्तु भारतवासियों को पहले हिंदी को हृदय से स्वीकारने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने शब्दों में हिंदी के प्रति असीम प्रेम और गर्व की भावना रखते हुए आज के परिवेश में हिंदी के वैश्विक स्तर प्रसार सभी के कार्यों को सराहा। 

मीडियाकर्मी सुधीर चौधरी ने बतौर अतिथि अपने वक्तव्य में कहा कि “राष्ट्रभाषा हिंदी की गरिमा और संरक्षण को बनाए रखने के लिए विश्व हिंदी परिषद जैसी लोक मंगल व सर्व कल्याण कारी संस्थाएँ समर्थ और सक्रिय रूप से जो कार्य कर रही हैं। विश्व भर में आज हिंदी प्रथम स्थान बनने की ओर अग्रसर है।” हम अपने घर परिवारों में अधिक से अधिक हिंदी का प्रयोग करें। आज के समय में ट्विटर, इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, व्हाट्सएप टेलीग्राम, यूट्यूब और तमाम सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म पर हिन्दी का बढ़–चढ़ कर प्रचार करने पर ज़ोर दिया। 
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र और धर्म के दर्शन और संस्कृत व्याकरण के विशेषज्ञ प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार ने संसद भवन में दिनकर की विराट मूर्ति की स्थापना की भी बात कही। राष्ट्रकवि दिनकर जी के सुपौत्र, पत्रकार एवं लेखक अरविंद सिंह पटना ने अपने दादा की पावन स्मृतियों को जीवन्त किया व उनकी कुछ कविताओं का वाचन भी किया। उनकी सुपौत्री श्रीमती पद्मा सिंह जी भी उपस्थित रहीं। 

ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी, नागालैंड के कुलाधिपति प्रोफ़ेसर प्रियरंजन त्रिवेदी, त्रिनिदाद व टबेगो के उच्चायुक्त, डॉ. रॉजर गोपॉल फीजी के उच्च आयोग के सलाहकार निलेश रोनिल कुमार व मॉरीशस के उच्च आयुक्त हयामंडोयल डिलम एवं सूरीनाम के उच्चायुक्त अरुणकुमार हरदीन ने अपने-अपने विद्वतापूर्ण उद्बोधन में हिंदी की बढ़ती जा रही लोकप्रियता व महिमा को स्वीकारते हुए मूल रूप से यही कहा कि एक उच्च भारतीय भाषा के रूप में हिंदी अब एक वैश्विक भाषा बन चुकी है, जिसे किसी भी भाषा से ख़तरा नहीं है। 

मुख्य अतिथि सिक्किम के राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण कुमार आचार्य ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के योगदान हेतु बधाई देते हुए कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर एक ऐसे कवि थे जो मानव मात्र के दुःख-दर्द और पीड़ा को शिद्दत से महसूस करते थे, जिनके लिए राष्ट्र सिर्फ़ सर्वोपरि था। जिनकी कालजयी हुंकार भरती हुई ओजस्वी कविताएँ एक साधारण किसान, एक श्रमिक से लेकर किसी स्कॉलर छात्र तक के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रही हैं। राज्यपाल ने कहा कि आज समय आ गया है कि जन-जन में राष्ट्रवादी चिंतन के ऐसे शिरोमणी कवि के उच्च विचारों को पहुँचाया जाए, ताकि वैश्विक पटल पर हिंदी का सूरज प्रदीप्त बना रहे। 

संघ के प्रचारक व राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के सलाहकार इन्द्रेश कुमार ने कहा कि हिंदी साहचर्य सौहार्द, भातृत्व भाव से भरी भाषा है और इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने से पहले हमें अपने परिवारों में स्थायी रूप से अपनाना होगा। उन्होंने कहा स्वयं को कभी किसी भाषा की निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भाषा, शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की पहचान भी है यह संस्कृति, जीवन शैली अभिव्यक्ति भी है और हम किस भाषा में बोली बोलेंगे यह ईश्वर प्रदत्त है। अतः ईश्वर की देन को कभी हीन नहीं मानना चाहिए। हमें स्वभाषा स्वदेश पर भी स्वाभिमान होना चाहिए। उन्होंने कहा “देश प्रेम प्रथम देश प्रेम सतत्” जीवन का सार तत्त्व है। दिनकर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश का सौभाग्य है की वसुधैव कुटुंबकम की भावना के स्त्रोत ओजस्वी और राष्ट्रवादी कविताओं को लिखने वाले दिनकर जी एक अमरजोत है जिनकी ज्योति हमेशा हमारे हृदय में रहेगी। उन्होंने कहा कि आज जहाँ हमारी संस्कृति में पश्चिम प्रभाव आता जा रहा है जो चिंतनीय विषय है। 

स्वामी विवेक चैतन्य महाराज ने कहा कि “चंद लोगों द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेज़ी को ख़ूब प्रचारित किया गया मैकाले के मानस पुत्रों द्वारा, अतः हम सभी भारत वसियों को हिन्दी को विश्व पटल पर ले जाने के लिए एकजुट होकर अग्रसर होना चाहिए।” 

केंद्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने अपने जीवन अनुभवों को बताते हुए दिनकर की ऊर्जावान कविताओं का उदाहरण देते हुए अपने चिंतनशील भाषण में कहा कि हमें वर्तमान में हिंदी को सहेजने और सँभालने की ज़रूरत है। उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महिला आरक्षण बिल को पारित करने के सम्बन्ध में बधाई देते हुए सभी महिलाओं से कहा कि आपको उन कुछ कविताओं को भूलना होगा जिनमें से महिला के दोयम दर्जे पर होने की महक आती है। 

विशिष्ट अतिथि साध्वी भगवती सरस्वती ने बताया की अक़्सर लोग उनसे हिन्दी में बात करने पर अंग्रेज़ी में प्रतिक्रिया देते हैं, तो कैसे अंग्रेज़ी के प्रति लोगों को शुरू से अग्रसर रखा गया। हम सभी भारतवासियों को हिन्दी को विश्व पटल पर ले जाने के लिए एकजुट होकर अग्रसर होना चाहिए। जबकि मैं अमेरिका से जब भारत में आई तब से लोगों से बातचीत करते-करते मैंने मेहनत से हिंदी सीखी है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की महक उन्हें यहाँ तक खींच लाई है। काम के प्रति अपनी निष्ठा और रचनाधर्मिता की बदौलत परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद सरस्वती के निर्देशन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मूर्त रूप देने का अवसर मिला। साध्वी भगवती ने बताया कि दुनिया भर के क़रीब 200 से ज़्यादा देश योग दिवस में उनके निर्देशन में प्रतिभाग करते हैं जो दुनिया भर के सबसे बड़े आयोजनों में शुमार होता है। उन्होंने कहा मैं एक है हिंदी भाषा प्रदेश की निवासी हूँ, फिर भी पर्यावरण और योग के क्षेत्र में वैश्विक प्रयासों के चलते ही उन्हें ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस का महासचिव बनाया गया है। उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति की कई विशेष बातें हैं। मुझे भी हिंदी और हिंदुस्तान से प्यार है। 

—डॉ. नन्दकिशोर साह
ईमेल: nandkishorsah59@gmail.com
मोबाईल: 09934797610

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