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अनुभूति की आठवीं 'संवाद शृंखला' में बोले डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल: ‘हिंदी ना उर्दू, हिंदुस्तानी भाषा का शायर हूँ मैं’

अनुभूति की आठवीं 'संवाद शृंखला' में बोले डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल: ‘हिंदी ना उर्दू, हिंदुस्तानी भाषा का शायर हूँ मैं’ 

 

“शेरो-शायरी की तरफ़ मुख़ातिब नहीं हुआ जाता है, यह तो बस प्रभु की देन होती है। बचपन में बुख़ार में कराहते हुए पहली बार हरियाणवी में कविता लिखी। फिर कॉलेज की मैग्ज़ीन में पहली कविता छपी। काव्य लेखन का सफ़र हिंदी से शुरू हुआ पर जब बाद में उर्दू सीखी तो ग़ज़ल में रुझान बढ़ता गया। ग़ज़ल, नज़्म, कविताएँ आदि लिखी हैं मैंने और पिछले कुछ साल से आलेख भी अब लिखने लगा हूँ। समस्त शिक्षा भिवानी में हुई और उसके बाद व्यवसाय के सिलसिले में सन्‌ 1978 से चेन्नई आया और यहीं का होकर रह गया।” 

साहित्य, कला और संस्कृति की एकात्म संस्था ‘अनुभूति’ द्वारा आयोजित मेरी सृजन यात्रा के अंतर्गत संवाद शृंखला में डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल ने सूत्रधार डॉ. सुनीता जाजोदिया से संवाद के दौरान यह कहा। उन्होंने यह भी कहा कि कविताएँ दो तरह की होती हैं एक दिल से लिखी जाती हैं और एक दिमाग़ से। माँ सरस्वती की कृपा से मैंने दिल से लिखा है और जब भी मेरे अंदर से शेर उपजते, चाहे दिन हो या रात, मैं उन्हें जैसा भी काग़ज़ मिले उस पर लिख दिया करता था। कविता लिखने का फ़न दादा जी से विरासत में मिला। बड़े भाई साहब डॉ. महेश ‘नक़्श’ मेरे गुरु थे जो मेरी कविताओं को सुधारा करते थे। बाद में उनके गुरु मेरे भी गुरु बन गए। नई पीढ़ी को संदेश देते हुए आपने कहा कि गुरु अवश्य बनाना चाहिए और जो भी लिखें दिल से लिखें, बिंदास लिखें। 

आपकी कृति ‘लम्हों का दरिया’ 3636अशआर वाली सबसे लंबी ग़ज़ल है। 

मुझको महसूस करके देख (उर्दू और हिंदी संस्करण) लम्हों का दरिया, पलकों पर उतर आओ, एक सफ़र और (स्वर्गीय धर्मपत्नी रेखा अग्रवाल पर स्मृति ग्रंथ) आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी ने वर्ष 2016में आपको हिंदी सेवा के लिए सम्मानित किया था। 

आप साहित्य संगम और बज़्म ए अदब संस्थाओं के संस्थापक हैं। 

आपने अपनी ग़ज़लें भी सुनाईं, यथा:

कमरा खोला तो आँख भर आईं, 
ये जो ख़ुश्बू है, जिस्म था पहले। 
 
वो सच्चा असल में है दोस्त तेरा 
जो तुझको आईना दिखा रहा है। 
 
फ़रिश्ता उसको कहना है मुनासिब 
जो ग़म ले के मुहब्बत बाँटता है। 
 
कभी इस ज़िन्दगी में ये करिश्मा क्यूँ नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ, ज़िंदा क्यूँ नहीं होता 
 
आगे निकल गए सभी चूहों की दौड़ में 
ये सिरफिरों की दौड़ है, मैं दौड़ता नहीं
 
फ़सादों में मरे हैं कितने बच्चे 
कहाँ मज़हबपरस्तों को पता है

 इस अवसर पर ‘तपता सूरज’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में अनुभूति के कवियों ने अपनी रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इन कवियों के नाम हैं: गौतम चंद बोहरा, बी.एल. आच्छा, नीलम सारडा, तेजराज गहलोत, शकुंतला करनानी, सुनीता जाजोदिया, संतोष बिसानी, आकांक्षा बरनवाल, रेखा राय और उषा टिबडेवाल। 

उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल ने डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल का अंगवस्त्रम से सम्मान किया। अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने स्वागत भाषण दिया। महासचिव शोभा चौरडिया ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सरिता वाघमार ने काव्य गोष्ठी का सफल संचालन किया। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया के धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। 

अनुभूति की आठवीं 'संवाद शृंखला'

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