व्यंग्य का प्रभाव बेहद मारक होता है: अनुभूति की पंचम संवाद शृंखला में बीएल आच्छा ने कहा
अन्य | कार्यक्रम रिपोर्ट डॉ. सुनीता जाजोदिया1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
व्यंग्य का प्रभाव बेहद मारक होता है: अनुभूति की पंचम संवाद शृंखला में बीएल आच्छा ने कहा
व्यंग्य सत्यान्वेषण के लिए होता है इसलिए व्यंग्यकार में साहसिकता का होना परम आवश्यक है। शोषितों के प्रति करुणा होती है व्यंग्य में अतः वह सताने वालों के ख़िलाफ़ और सताए जाने वालों के साथ हमेशा खड़ा होता है। संवेदना को गहरे चुभने वाली बात को व्यंग्य के रूप में लिखता है एक व्यंग्यकार। व्यंग्य का प्रभाव बेहद मारक होता है, यह प्रहार करता है सामाजिक रूढ़ियों पर विसंगतियों और विद्रूपताओं पर और सत्ता की अराजकता पर। व्यंग्य की चोट से समाज सुधार का काम किया कबीर और तुलसी ने। सहानुभूत के दर्द को निडर होकर कहना ही व्यंग्य का सरोकार है। आज़ादी के बाद व्यंग्य का क्षेत्र बदला है। पहले जहाँ अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़ लिखा जाता था फिर वह देश की राजनीति पर लिखा जाने लगा। व्यंग्य एक बौद्धिक प्रहार है।
उन्हें ख़ुशी है कि वे चेन्नई में व्यंग्य और लघुकथा की ज़मीं तैयार करने में सफल हुए हैं। युवा लेखकों की कमी नहीं है आवश्यकता है उन्हें चमकाने की, सामने लाने की। प्रशंसा और पुरस्कार लेखकों के के लिए आगे बढ़ने के लिए होना चाहिए ना कि ख़त्म होने के लिए।
राजस्थान के राजसमंद ज़िले के देवगढ में जन्मे बी.एल. आच्छा जी ने मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर से एम.ए. किया। हिन्दी उच्च शिक्षा विभाग म.प्र. शासन में लगभग चार दशकों तक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत रहकर वे सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में आप स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं। आपकी अनेक आलोचनात्मक पुस्तकें, व्यंग्य संग्रह व संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘मेघदूत का टीए बिल’ हाल ही में आपका प्रकाशित व्यंग्य संग्रह है। अनेक पुरस्कारों से भी आप सम्मानित हैं जिनमें प्रमुख हैं, डॉक्टर देवराज उपाध्याय आलोचना पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर, पं. नंददुलारे वाजपेयी आलोचना पुरस्कार मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल आदि। मुंबई विश्वविद्यालय के बी.ए. द्वितीय वर्ष हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम की पुस्तक व्यंग्य वीथी में आपकी व्यंग्य रचना संकलित है।
श्रीमती प्रेमा आच्छा आपकी धर्मपत्नी है और आदित्य और रोहित सुपुत्र हैं।
इस अवसर पर ‘बसंत बहार’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में गीत-गजल, मुक्तक व हाइकु प्रस्तुत कर फ़ज़ा में वासंती रस घोला सदस्य कवियों ने। मंजू रुस्तगी, शोभा चौरडिया, आकांक्षा बरनवाल, नीलम दीक्षित, सुमन अग्रवाल, सुरेश तांतेड, तेजराज गहलोत, अशोक द्विवेदी, सुनीता जाजोदिया, रमेश गुप्त नीरद आदि कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की।
नीलम दीक्षित ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तत्पश्चात अनुभूति के आरंभिक वर्षों से जुड़े दिवंगत डॉ. चुन्नीलाल शर्मा को सभा ने मौन श्रद्धांजलि दी। महासचिव शोभा चोरड़िया ने आच्छा जी का परिचय प्रस्तुत किया एवं डॉ. मंजू रुस्तगी ने सूत्रधार के रूप में लेखन यात्रा और सृजन प्रक्रिया से जुड़े सवाल कर उनके जीवन व विचारों से अवगत कराया। श्रीमती आकांक्षा बरनवाल ने काव्य गोष्ठी का सफल संचालन किया। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम का समापन हुआ।
अनुभूति की मासिक गोष्ठी और छठवीं संवाद शृंखला
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