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तुम्हारे क़दमों के निशान दूर तक चले लो मैंने बदल ली राह अपनी: मेरी सृजन यात्रा में मोहिनी चोरड़िया से संवाद 

 

चेन्नई की जानी-मानी साहित्यिक संस्था अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी हाल ही श्री अग्रवाल समाज भवन, चेन्नई में आयोजित की गई। सप्तम संवाद शृंखला: मेरी सृजन यात्रा में वरिष्ठ कवयित्री मोहिनी चौरड़ोया जी आमंत्रित थीं। उनका साक्षात्कार नीलम सारडा जी ने लिया। सरस्वती वंदना रीना दास चौधरी द्वारा की गई। मुख्य अतिथि का सम्मान अध्यक्ष रमेश गुप्त नीरद ने अंगवस्त्रम द्वारा किया एवं अतिथि परिचय प्रहलाद जी श्रीमाली ने दिया। ‘इठलाता फागुन’ विषय पर आधारित गोष्ठी में अनुभूति के इन कवि और कवियत्रयों ने काव्य पाठ किया। दिलीप चंचल, प्रहलाद श्रीमाली, सरिता सरगम, अशोक मिमानी, अशोक द्विवेदी, रीना दास चौधरी, गोविंद मूंदड़ा, उषा टिबरेवाल, मिठू मिठास, महेश नक़्श, डॉक्टर ज्ञान जैन और सभागार इठलाते फागुन में डूब गया। काव्य गोष्ठी का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन महासचिव शोभा चोरड़िया द्वारा किया गया। 

साक्षात्कार में वरिष्ठ साहित्यकार मोहिनी चोरडिया जी ने अपने भाव कुछ इस प्रकार व्यक्त किए कि: ‘लाल रंग डारो हरो रंग डारो और डारो रंग केसरिया हम अनुभूति के रसिया‘ अनुभूति से अपने कई दशकों के प्रगाढ़ सम्बन्ध एवं आत्मीयता की चर्चा की और भूरी भूरी प्रशंसा की। अपने साक्षात्कार में सृजन यात्रा में बचपन से ही पुस्तकों के प्रति प्रेम पठन-पाठन की आदत को महत्त्वपूर्ण बताया। आठ नव वर्ष की उम्र से ही सामयिक सभी पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ना, अलग-अलग भाषाओं के साहित्य के पठन को अपने लेखन का आधार बनाया। आपकी दो पुस्तकें आओ प्रकाश की ओर लौट चलें और लौट आइए बहुत प्रसिद्ध हैं। आपने अपने शुरूआती दौर की कुछ रचनाओं का वाचन किया और इन पंक्तियों को पढा: ”तुम्हारे क़दमों के निशान दूर तक चले लो मैंने बदल ली राह अपनी” आपकी रचनाओं में अध्यात्म का भी प्रभाव देखते ही बनता है। आपने कहा अच्छा पाठक अच्छा लेखक एवं अच्छा श्रोता अच्छा वक्ता बन सकता है। 

अनुभूति की मासिक गोष्ठी और सातवीं संवाद शृंखला

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