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प्रेम भाव

शब्दों का मोहताज नहीं
अहं का मायाजाल नहीं
काया का जंजाल नहीं
लहरों का उछाल नहीं
नदी सा केवल बहाव है
यह तो बस प्रेम भाव है।
 
अभाव का एहसास नहीं
उम्मीद इसका स्वभाव नहीं
हिसाब-किताब कदापि नहीं
आँकड़ों के पार, दिमाग़ से परे
दिल से लिखी पवित्र किताब है
यह तो बस प्रेम भाव है।
 
साँसों की ये डोर है
जीवन का सिरमौर है
विश्वास की अद्भुत हिलोर है
जिसका ओर न छोर है
सृष्टि का परम भाव है
आत्मा का प्रकाश है
यह तो बस प्रेम भाव है।
 
दिशाओं को अपनी छोड़
धाराओं को अपनी मोड़
समभाव में होकर तिरोहित
स्व-अस्तित्व कर विसर्जित
पहचान करते नई अर्जित 
अनन्यता में इक दूजे की
हो मुदित और हर्षित
जैसे गंगा-सागर का संगम
जीवन का यह तीर्थ है
यह तो बस प्रेम भाव है॥

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