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आज़ादी की सोंधी ख़ुश्बू . . . 

पिंजड़ों से मुक्त चहके हर बेटी
सड़कों पर भयमुक्त विचरे नारी
कन्या-भ्रूण मिटे न कोई कोख माँ की
संतानों पर हो न कोई बूढ़ी माँ भारी

आज़ादी की सोंधी ख़ुश्बू से तब
महकेगी और मेरे देश की माटी। 

पैरों में ज़मीन और सबके सर छत हो
तन पर वस्त्र और शिक्षा का अस्त्र हो 
लूटखसोट और हो न कोई छीनाझपटी 
समानता हो सदा संसाधन-बँटवारे में

आज़ादी की सोंधी ख़ुश्बू से तब
महकेगी और मेरे देश की माटी। 

जनता हो लोकतंत्र की सजग शक्ति
हो न वो केवल वोट बैंक की गोटी
रात-दिन करे जनता की सेवा नेताजी
करे न कभी घपले की काली कमाई

आज़ादी की सोंधी ख़ुश्बू से तब
महकेगी और मेरे देश की माटी। 

सिर्फ़ अधिकारों का ही जश्न ना हो
कर्त्तव्यों की भी हो उतनी ही ज़िम्मेदारी
संविधान-सम्मान औ' पालन नीतियों से
राष्ट्र-विकास में हो सबकी भागीदारी

आज़ादी की सोंधी ख़ुश्बू से तब
महकेगी और मेरे देश की माटी। 

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