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सच्ची कविता स्वांत: सुखाय की अभिव्यक्ति है, इसमें कोई मायाजाल नहीं होता: अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन

कृष्ण-भाव में होता है केवल तेरा-तेरा, सर्वत्र तेरा, जीवन-मरण, अस्तित्व और परिवर्तन सब तेरा, पुरुषार्थ है बस मेरा। जैन दर्शन विभाग, श्री एस. एस शासुन जैन कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान जैन ने अनुभूति द्वारा आयोजित 'संवाद शृंखला' में भारतीय दर्शन पर प्रकाश डालते हुए यह कहा, “कोई साथ आया नहीं, कोई साथ जाएगा नहीं तो फिर उदास ना होना मेरे मन, ख़ुशी में या ग़म में, संतों ने समझाया है बने रहो शुद्ध स्वभाव में। दर्शन का पहला चरण है आस्था होना अन्यथा यह ज्ञान नहीं प्रपंच है। व्यक्ति स्वातंत्र्य की आत्म प्रतिष्ठा कराए वही समीचीन धर्म है। जो खोजने दर्शन गया वह लौट कर नहीं आया, दीपज्योति बन गया। जो प्रदर्शन करने गया वो अँधियारा मन रह गया। निर्णय ख़ुद का है बनना ज्योति है या अँधियारा,” दर्शन की महत्ता को बताते हुए आप ने आगे कहा। 

हापुड़, उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ. ज्ञान जैन ने अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि आपकी पढ़ाई अँग्रेज़ी माध्यम से हुई थी, पढ़ने का शौक़ था जिज्ञासा जागी तो आपने गीता पढ़ी। विचारों पर मनन करने से सृजन की राह निकल पड़ती है, ऐसा आपका मानना है। आपने गुजराती से हिंदी में आठ पुस्तकें एवं हिंदी से अँग्रेज़ी में तीन पुस्तकों का अनुवाद किया है। जैन ऋषि-मुनियों के प्रवचन, उनके ज्ञान-दर्शन एवं मीमांसाओं की दस पुस्तकें आपके द्वारा संपादित हैं। मासिक पत्रिका ‘खरतर वाणी’ के आप मुख्य संपादक हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रीतिबाला जैन एक कुशल गृहिणी हैं, आशीष एवं रचना आपकी संतान हैं। 

इस अवसर पर ‘दर्शन’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में सुनीता जाजोदिया, शोभा चौरडिया, उदय मेघाणी, महेश नक़्श, रमेश गुप्त नीरद, नीलम दीक्षित एवं ज्ञान जैन ने काव्य पाठ किया। 

अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने स्वागत भाषण दिया एवं इस माह के विशेष कवि डॉ. ज्ञान जैन का अंगवस्त्रम से सम्मान किया। 

महासचिव शोभा चौरडिया ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया एवं डॉ. ज्ञान जैन जी का परिचय प्रस्तुत किया। श्रीमती नीलम सारडा ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया एवं सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल एवं कोषाध्यक्ष श्री विकास सुराना भी उपस्थित थे। 

अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन

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