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श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक: अनुभूति की चतुर्थ ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. दिलीप धींग

‘मेघदूत का टी. ए. बिल’ का लोकार्पण 

 

‘अनुभूति’ साहित्यिक संस्था द्वारा आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी के प्रथम सत्र में व्यंग्यकार श्री बी.एल. आच्छा के व्यंग्य संग्रह “मेघदूत का टी.ए. बिल” का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। पुस्तक की प्रथम प्रति विशिष्ट अतिथि श्री अभय श्रीश्रीमाल को भेंट की गई। आपने अपने उद्बबोधन में कहा कि व्यंग्य जीवन का मार्गदर्शन करता है, जो सामाजिक जीवन में अवांछित है उस पर मार करता है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित समाजसेवी एवं उद्योगपति श्री सुगालचंद जी जैन ने कहा कि शिक्षा और साहित्य जीवन और समाज के प्रतिबिंब हैं। श्री उदय मेघानी ने पुस्तक में से एक व्यंग्य रचना का पाठ किया। संग्रह की समीक्षा करते हुए डॉ. मंजू रुस्तगी ने कहा कि इस व्यंग्य संग्रह में समकालीन जीवन के साथ विषयों की विविधता है। व्यंंग्य शैली के प्रयोग बहुत व्यंजक हैं। 

अनुभूति के अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने विसंगतियों पर व्यंग्य की मार को रेखांकित किया। श्रीमती अरुणा मुणोत ने अतिथियों का परिचय दिया। व्यंग्यकार श्री बी.एल. आच्छा ने कहा कि जिन बातों को लेकर सामाजिक रूप से पीड़ा होती है, उन पर प्रहार व्यंग्यकर्म की सृजन प्रक्रिया है। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन श्री गोविन्द मूंदड़ा ने किया। आयोजन के लिए कृतज्ञता प्रदर्शन श्री रोहित आच्छा ने किया। 

“किशोरावस्था के आरंभिक वर्षों में मुक्तक एवं कविता की रचनाओं के द्वारा लेखन जगत में प्रवेश किया। मेरी स्मृति शेष माताजी ही मेरी प्रेरणा स्रोत और मार्गदर्शक रहीं। उन्हीं की प्रेरणा से सभाओं में मैंने बोलना शुरू किया और प्राकृत का अध्ययन भी किया। जीवन की पीड़ा और चुनौतियों से सृजन जन्मता है और अच्छे एवं मौलिक सृजन के लिए श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक है। कविता आदमी के कष्ट हर सकती है बशर्ते आदमी अच्छी कविता से आत्मीय रिश्ता जोड़े।” दूसरे सत्र में संवाद शृंखला में सृजन-यात्रा पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने ये कहा। आपने यह भी कहा कि शान्ति, सेहत और पर्यावरण की रक्षा के लिए शाकाहार ज़रूरी है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श की तरह मूक प्राणियों पर भी विमर्श होना चाहिए। बंबोरा में जन्मे डॉ. धींग ने विधि में स्नातक की उपाधि हासिल की और प्राकृत में स्नातकोत्तर की। ‘जैन आगमों में आर्थिक चिंतन’ पर आपने पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। आप की अनेक रचनाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ पुरस्कृत व चर्चित भी हुई हैं। जैन पाठ्यक्रमों में भी आपकी रचनाएँ शामिल हैं। उदयपुर एवं चेन्नई आकाशवाणी से आपकी कविताओं एवं वार्ताओं का भी प्रसारण होता रहता है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों से आपने अनेक व्याख्यान दिए हैं। आपके द्वारा लिखित एवं संपादित सत्तर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप अहिंसा के प्रेमी एवं कार्यकर्ता हैं। शाकाहार के क्षेत्र में आपका उल्लेखनीय योगदान है। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हैं डॉ. धींग, जिनमें प्रमुख हैं: आचार्य स्मृति सम्मान अवार्ड, अणुव्रत लेखक पुरस्कार, कुंदकुंद ज्ञानपीठ पुरस्कार, जीतो सेवा अवार्ड, जिनवाणी लेखक पुरस्कार आदि। अंतरराष्ट्रीय प्राकृत शोध केंद्र के निदेशक पद पर लंबी सेवा देने के उपरांत वर्तमान में आप शासुन जैन कॉलेज में जैन विद्या विभाग के शोध प्रमुख के रूप में सेवारत हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सीमा धींग एक कुशल गृहिणी हैं। पुत्र प्रणत की साहित्य में विशेष रुचि है। इस मौक़े पर अपनी रचनाओं का भी आपने काव्यपाठ किया और अंत में राजस्थानी गीत ‘आवजो ओ मंगरा वाळा म्हारा गाँव में, आम आमली लीमड़ा री छाँव में’ सुनाकर आपने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

इस अवसर पर ‘अहिंसा’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में रीना चौधरी, दिलीप चंचल, शकुंतला करनानी, के.के. कांकाणी, तेजराज गहलोत, अशोक द्विवेदी और अरुणा मुनोथ ने काव्य पाठ किया। 

अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने डॉ. दिलीप धींग जी का अंगवस्त्रम से सम्मान किया। अरुणा मुनोथ ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। श्रीमती पमिता खींचा ने काव्य गोष्ठी एवं संवाद शृंखला का सफल संचालन किया। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। 

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