इस बार वसंत तुम ऐसे आना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुनीता जाजोदिया15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
रिश्तों की सर्द ज़मीं पर
कुनकुनी धूप बनकर उतरना
तकरारों से बँटे घरों में
खुला झोंका बनकर बहना
अनबोले कोनों की सीलन में
नेह का ताप बनकर पिघलना
इस बार वसंत तुम ऐसे आना।
धर्म की सांप्रदायिक दुकानों पर
इंसानियत का ग्राहक बनकर आना
चीरहरण के चौराहों पर
सखा बनकर चीर बढ़ाना
दुराचारों के दलदल में
शक्ति-कमल बनकर खिलना
इस बार वसंत तुम ऐसे आना।
छूकर केवल इस बार न जाना
श्याम रंग में ऐसे भिगो देना
समाधि में लीन हो जाऊँ
भवसागर से तर जाऊँ
इस बार वसंत तुम ऐसे आना
परम वसंत मेरा बन जाना!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
कहानी
कार्यक्रम रिपोर्ट
- अनुभूति की आठवीं 'संवाद शृंखला' में बोले डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल: ‘हिंदी ना उर्दू, हिंदुस्तानी भाषा का शायर हूँ मैं’
- अनुभूति की ‘गीत माधुरी’ में बही प्रेमगीतों की रसधार
- डब्लूसीसी में उत्कर्ष '23 के अंतर्गत हिंदी गद्य लेखन कार्यशाला एवं अंतर्महाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं का आयोजन
- डब्लूसीसी में डॉ. सुनीता जाजोदिया का प्रथम काव्य संग्रह: ‘ज़िन्दगी का कोलाज’ का लोकार्पण
- तुम्हारे क़दमों के निशान दूर तक चले लो मैंने बदल ली राह अपनी: मेरी सृजन यात्रा में मोहिनी चोरड़िया से संवाद
- मैं केवल एक किरदार हूँ, क़लम में स्याही वो भरता है: अनुभूति की पंचम ‘संवाद शृंखला’ में बोले रमेश गुप्त नीरद
- व्यंग्य का प्रभाव बेहद मारक होता है: अनुभूति की पंचम संवाद शृंखला में बीएल आच्छा ने कहा
- श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक: अनुभूति की चतुर्थ ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. दिलीप धींग
- श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक: अनुभूति की तृतीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. दिलीप धींग
- सच्ची कविता स्वांत: सुखाय की अभिव्यक्ति है, इसमें कोई मायाजाल नहीं होता: अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन
- सृजन यात्रा में अब तक नहीं पाई संतुष्टि: अनुभूति की प्रथम 'संवाद शृंखला' में बोले प्रहलाद श्रीमाली
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं