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गुलपुष्प

सादिल अपने मोबाइल के कैमरे से अपने ही घर की अलग-अलग चीज़ों की वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहा था और साथ में कमेंटरी भी उसमें भर रहा था, “यह मेरा कमरा है. . .यह मेरा लैपटॉप. . .यह मेरा पासपोर्ट है. . .यह मेरा छोटा कैमरा है जिससे मैं फ़िल्म शूट करता हूँ शौक़िया तरीक़े पर. . .दरअसल यह मेरा नहीं है, फ़िल्म कंपनी से उधार माँग कर लाया हूँ. . .यह छोटा पौधा है जो मैंने और आशनी ने मिलकर ख़रीदा था जिस दिन हम दोनों ने एक साथ रहना शुरू किया। देखो कुछ ही महीनों में कितना बढ़ गया है और कितना सुंदर लग रहा है।” सादिल और आशनी, दोनों को एक ही फ्लैट में लिव-इन में रहते हुए नौ महीने से अधिक हो गए थे। फिर सादिल ने मोबाइल को आशनी के पैरों पर केन्द्रित किया, “और ये आशनी के जूते जो मैंने उसके लिये खरीदे थे. . .और यह मेरी हाथ की हाथ की बनाई हुई चाय,” उसने चाय के कप को कैमरा के बीचों-बीच लाते हुए कहा। 

आशनी ने स्वाभाविक तौर पर पूछा, “क्या करोगे इन छोटे-छोटे पीसेज का?”

सादिल ने दरवाज़े, खिड़की, कपड़े घड़ी करने की प्रेस, ख़ुद के आईने, आज के अख़बार, हाथ में पहनी घड़ी, लैंडलाइन टेलीफोन, किचन के ओटे, बेडरूम के बिस्तर को वीडियो में लेते हुए कहा, “इनका कोलाज बनाऊँगा, एडिटिंग करूँगा। कम से कम इसमें तो वास्तविकता रहेगी।”

आशनी ने विस्मय से पूछा, “और जिस पिक्चर में तुम अभी एक्टिंग और एडिटिंग दोनों कर रहे हो, उसमें वास्तविकता नहीं है?”

सादिल ने थोड़ी-सी निराशा से कहा, “वह एक ऐसी महिला गुप्तचर की कहानी है जो आतंकवादियों के बीच में घुसकर उनके प्लान को जानना चाहती है।”

आशनी ने कहा, “तो इसमें तो बहुत वास्तविकता होनी चाहिए।”

सादिल ने आपत्ति जतायी, “पूरा समय डायरेक्टर महोदय कैमरे को गुप्तचर की भूमिका अदा करने वाली मुख्य अभिनेत्री पर ही केन्द्रित रखेंगे तो वास्तविकता कहाँ से नज़र आएगी?”

 

कुछ ही देर बाद सादिल सेट पर पहुँच गया। किसी सीन की शूटिंग चल रही थी। सबेरे की सूरज की किरणें अभिनेत्री पर पड़ रही थीं। सफ़ेद रेशमी चादर ओढ़े हुए वह अभिनेत्री उबासी लेते हुए नींद से जाग रही थी। कैमरा धीरे-धीरे उसका चारों तरफ़ से चित्रण कर रहा था। अभिनेत्री ने खिड़की से बाहर उगते हुए सूरज की ओर देखते हुए कहा, “कितना मनमोहक दृश्य है।” अचानक पास की टेबल पर रखा मोबाइल बजा। अभिनेत्री ने उठाया तो दूसरी ओर से आवाज़ आई, “तुम्हें बहुत सारे ख़ुफ़िया काम करने हैं।”

अभिनेत्री ने मोबाइल पर बात करते हुए दरवाज़े से आज का अख़बार उठाया और उसमें अपनी राशि का आज का भविष्य देखने लगी। उसने मोबाइल में उत्तर दिया, “मुझे ख़ुफ़िया कार्य करने में बहुत मज़ा आता है।” यह कहकर अभिनेत्री तैयार होने में लग गयी। पृष्ठभूमि में आधुनिक लय पर गीत बजने लगा। जैसे ही अभिनेत्री नहाने के लिये बाथरूम में गयी, वह चिल्ला उठी, “अरे पानी कितना ठंडा है!”

डायरेक्टर साहब ने कहा, “कट।” शूटिंग रोक दी गयी। 

डायरेक्टर ने सादिल से कहा, “जितना शूट किया है, उसकी एडिटिंग आज ही कर लेना। कितना बढ़िया चलचित्र होगा यह। क्रांति है। मैंने तुम्हें बताया है क्या, कि इस अभिनेत्री को मैंने ही ढूँढ़ निकाला था? कितनी बढ़िया एक्टिंग करती है। किसी विरोध प्रदर्शन में भीड़ के साथ थी। जिस जोश से यह विरोध कर रही, वह देखने लायक़ था।”

 

 

एडिटिंग करते वक़्त जब, सादिल, अभिनेत्री के सुबह उठने के सीन को कंप्यूटर पर और सुनहरा करने लगा, तो उसे महसूस हुआ कि अभिनेत्री के सबेरे उठने के अंदाज़ में यथार्थ था।

घर पहुँचकर सादिल ने अपने कोलाज बनाने के उपक्रम को जारी रखते हुए मोबाइल से आशनी की वीडियो रिकॉर्डिंग की, फिर अपने चेहरे की ओर कैमरा करके कहा, “आज आशनी ने घर का ढेर सारा काम किया है, इसीलिए शायद वह चिढ़े हुए मूड में है।” 

वैसे तो आशनी एयर-होस्टेस का काम करती थी, लेकिन आजकल कई बार उसकी छुट्टी रहती थी। उसकी और सादिल की मुलाक़ात हवाई-जहाज़ में हुई थी। 

आशनी ने झल्लाते हुए कहा, “तुम तो सेट पर जाकर अपनी शूटिंग करके आ रहे हो, घर का सारा काम मेरे सर पर पड़ा हुआ है।” सादिल ने रिकॉर्डिंग जारी रखी तो आशनी और चिड़ गयी, “मुझे अकेला छोड़ दो।” 

सादिल ने कैमरे को फिर अपनी ओर घुमाया, “कल तक आशनी बहुत ख़ुश थी। कल तो किचन में गाना भी गा रही थी।” सादिल ने अपनी टेबल पर बैठते हुए कैमरा में कहा, “आपसी संबंधों में छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ज़रूरी होता है। इस कोलाज में मैं केवल अपनी ही बातों को नहीं दिखाना चाहता हूँ। यह एक निजी कोलाज होना चाहिए, लेकिन आडंबरपूर्ण नहीं।” सादिल को हमेशा से फ़िल्मों का शौक़ रहा था। उसकी पूरी सोच, हर वस्तु को देखने का नज़रिया, हर रिश्ते को भाँपने का तरीक़ा, सब कुछ एक फ़िल्म की सीन की तरह उसके मस्तिष्क में उतर जाता था। उसकी भी हसरत थी कि एक दिन डायरेक्टर बनकर, अपनी सोच का परदे पर चित्रण कर, लोगों का मन बहला सके। जिन बातों को वह मार्मिक दृष्टि से देखता था, या जिन चीज़ों से उसे ख़ुशी मिलती थी, या दुःख होता था, सादिल चाहता था कि अन्य लोग भी उसके साथ इन्हीं भावनाओं को महसूस करें। 

आशनी ने खीजते हुए पूछा, “अपने आप से ही बात करते रहोगे क्या? तुमको लग रहा है कि कोलाज बनाने से तुम अपने आप को बेहतर रूप से समझ सकोगे। ऐसा नहीं है।”

अगले दिन सबेरे आशनी ने अपना यूनिफ़ॉर्म पहना। आज उसकी ड्यूटी थी। अब वह अच्छे मूड में लग रही थी। सबेरे नाश्ते पर भी जब सादिल ने अपने मोबाइल कैमरा से रिकॉर्डिंग जारी रखी, तो चिढ़ने की बजाये आशनी ने कैमरा में देखकर कहा, “तुम एक जोशीले आदमी हो, हर काम जोश के साथ करते हो। लेकिन लोगों को पूरी तरह से समझने की भावना अभी तुम में नहीं आई है। तुम अपनी ही दुनिया में खोये रहते हो। पता नहीं तुम्हारे दिमाग़ में क्या चलते रहता है।”

सादिल ने बीच में कहा, “ऐसा नहीं है . . .”
आशनी ने उसकी बात काटते हुए कहा, “मुझे बोलने दो। सब सच है। मेरी नज़रों से देखो। तुम ज़िन्दगी की तलाश में हो। ज़िन्दगी तुम्हारे सामने है, लेकिन तुमको उसका अहसास नहीं है। अपने आसपास की हर चीज़ को तुम बारीक़ियों से कैमरे में क़ैद करने की सोचते हो, जैसे कि ऐसा करने से तुमको उन चीज़ों की ज़्यादा समझ हो जायेगी।”

सादिल ने दलील दी, “मैं कैमरे की रिकॉर्डिंग के ज़रिये सच्चाई और वास्तविकता दिखाना चाहता हूँ।”

आशनी ने जवाब दिया, “लेकिन दर्शक तो बोर होकर भाग जायेंगे। अन्य लोगों को इसमें कौन-सी रुचि आएगी?” फिर उसने ग़ौर से सादिल के चेहरे को देखकर कहा, “इसमें ग़ुस्सा होने की क्या बात है?”

सादिल ने साँस छोड़ते हुए कहा, “वह बात नहीं है। मैं सेट पर हो रही फ़िल्म की शूटिंग के बारे में सोच रहा हूँ। वह फ़िल्म कहीं नहीं जा रही है। डायरेक्टर को कोई आईडिया नहीं है। लेकिन वो मानने के लिये तैयार नहीं है।”

आशनी ने सादिल के बालों को ठीक किया, फिर अपनी उड़ान पकड़ने के लिये निकल पड़ी। 

 

 

सादिल जब सेट पर पहुँचा, तो डायरेक्टर साहब को फ़िल्म स्टूडियो के मालिकों को समझाते हुए पाया, “प्रेम कहानी बन जायेगी यह।” 

मालिकों की तरफ़ से तीन व्यक्ति बैठते थे। तीनों के चेहरे सूखे हुए थे। डायरेक्टर ने उन्हें समझाने के अंदाज़ में कहा, “जहाँ यह फ़िल्म ख़त्म होगी, वहाँ से अभिनेत्री और उसके प्रेमी की नई कहानी का प्रारम्भ होगा।” 

साठ साल के बूढ़े, टाई-कोट पहने हुए मालिक ने सर खुजाते हुए कहा, “ऐसा समापन तुमको कब सूझा? यह मूल स्क्रिप्ट में तो नहीं है।”

डायरेक्टर ने कहा, “दर्शकों को विश्वास ही नहीं आएगा कि मुख्य अभिनेत्री, क्रांतिकारियों के नेता के साथ मिल जायेगी।”

मालिक ग़ुस्से में भड़क गया, “वो आतंकवादी हैं या क्रांतिकारी? तुम बेवकूफ़ बना रहे हो। पिक्चर का बेतुका समापन कर रहे हो। इसे एक्शन मूवी होना चाहिए, यह प्रेम कहानी नहीं है।”

डायरेक्टर ने समझाने की कोशिश की, “अभी आखिरी सीन की शूटिंग बाक़ी है।”

मालिक और भड़क गया, “बेमतलब की पिक्चर लग रही है।”

डायरेक्टर ने फिर अपनी बात समझाने का प्रयास किया, “दर्शकों की उम्मीदों पर पलटवार कर, मैं उन्हें आश्चर्यचकित करना चाहता हूँ। तोड़फोड़, आगजनी और विस्फोट से कहानी ख़त्म करने की बजाये, मैं प्रेम के दीपक जला कर दर्शकों के दिलों को छूना चाहता हूँ।”

मालिक ने हताशा में कहा, “मेरी कोई भी पिक्चर किसी के दिलों में दीपक जलाकर ख़त्म नहीं हुई है। यह पिक्चर देखने लायक़ नहीं बची है।”

डायरेक्टर ने फिर कहा, “आप समझ नहीं रहे हो . . .”

यह सुनना था कि मालिक का चेहरा ग़ुस्से से और लाल हो गया, “तुम अभी अपना सामान उठाओ और निकल जाओ मेरी पिक्चर से। अब तुम इसके डायरेक्टर नहीं हो।” उसने सभी की ओर देखकर ज़ोर से कहा, “इन डायरेक्टर महोदय को बर्ख़ास्त कर दिया है।” 

डायरेक्टर थोड़ी देर सुन्न खड़ा रहा। फिर अपना सामान लेकर चला गया। 
मालिक ने अपने दूसरे साथी से कहा, “पूरा पैसा बर्बाद हो रहा था इसके कारण। अच्छा हो गया कि इसको अभी निकाल दिया।”

मालिक के साथी ने हामी भरी, “बिलकुल सही किया आपने। वह युवा अभिनेत्री है ना, इसके सर पर चढ़ गयी है।”

मालिक के तीसरे साथी ने कहा, “पहले भी बहुत बार ऐसा देखा है। डायरेक्टर, युवा अभिनेत्री से मोहित हो जाते हैं, और फिर उनकी कठोर निर्णय लेने की क्षमता पर पानी फिर जाता है।”

दूसरे साथी ने कहा, “पूरा कैमरा मुख्य अभिनेत्री के आसपास ही घूम रहा था।”

मालिक ने क्रोध में दोनों से कहा, “पूरी पिक्चर को बकवास कर दिया। फ़िल्म के आख़िर में आतंकवादियों के नेता से महिला गुप्तचर प्रेम में पड़ गयी!”

मालिक के साथी ने कहा, “इस डायरेक्टर को एक्शन पिक्चर बनाने के लिये पैसे दिए थे। यह डायरेक्टर तो फ़िल्म इंडस्ट्री में हमारा उपहास उड़ाने पर तुला है।” 

मालिक ने उससे पूछा, “तुम्हारी नज़रों में कोई है जो पिक्चर को सँभाल सके?”

मालिक के साथी ने सादिल की ओर इशारा करके कहा, “सादिल इसको सँभाल लेगा। इस पिक्चर में वह छुटपुट रोल भी कर रहा है, और साथ में एडिटिंग पर भी ध्यान दे रहा है। उसको अच्छी समझ है। उसके घरेलू कोलाज मैं देखता हूँ। मुझे पसंद आते हैं। मुझे लगता है कि सादिल एक अच्छे डायरेक्टर की भूमिका निभा सकता है।” 

इसके साथ ही सादिल के जीवन की काया पलट गयी। सादिल ने तत्परता के साथ डायरेक्टरशिप अपने हाथ में ले ली। 

 

 

घर पहुँचकर घर में आशनी को न पाकर सादिल ने राहत अनुभव की। उसने अपने मोबाइल के कैमरे में वीडियो रिकॉर्डिंग जारी रखी, “सब कुछ बदलता हुआ महसूस हो रहा है। अब किसी से कोई कैमरा उधार लेने की ज़रूरत नहीं है। मेरी गाड़ी पटरी पर आ रही है। अब सब साफ़ हो रहा है। मुझे अपने लिये कुछ समय निकालना पड़ेगा ताकि मैं आगे की बातें सोच सकूँ।” 

रात को जब आशनी वापिस आयी, तो उसने मुस्कुराते हुए सादिल से कहा, “आज बहुत मिस किया मैंने तुम्हें।”
लेकिन आशनी की मुस्कराहट तुरंत ही ग़ायब हो गयी जब सादिल का मोबाइल बजा और सादिल ने कहा, “इसी समय? ठीक है, मैं आता हूँ।”

इससे पहले की सादिल कुछ कहता, आशनी ने कहा, “तुम उनसे कह दो कि कल जाओगे।”

सादिल ने कहा, “नहीं। मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ। सेट तैयार कर दिया है। कल तक शूटिंग को नहीं रोक सकते हैं।”

आशनी ने निराशा में कहा, “लेकिन मैं अभी-अभी वापिस आई हूँ। और तुम अचानक इसी वक़्त मुझे छोड़कर जा रहे हो?” उसने रुककर कहा, “मैं अच्छा सा खाना तैयार करती हूँ।”

सादिल ने मना करते हुए कहा, “नहीं। मुझे जाना ही पड़ेगा।” सादिल अपने काम के लिये घर से निकल पड़ा। आशनी बुत बनकर दरवाज़े की तरफ़ देखती रह गयी। 

 

 

फ़िल्म सेट पर सरकारी तंत्र की आपातकालीन बैठक हो रही थी। सादिल कैमरे के पीछे था। बैठक के चारों ओर कैमरा घूम रहा था। सीन में, बैठक की अध्यक्षता करने वाले किरदार ने कहा, “इस आपातकालीन बैठक को बुलाने का मक़सद है कि ख़ुफ़िया रिपोर्ट से हमें ज्ञात हुआ है कि युवा आतंकवादियों के एक दल ने मेरुआ के जंगल में अपना गुप्त अड्डा स्थापित कर लिया है। इस दल के मुखिया का नाम दिलागाज़ है। उसका अनुसरण करने वाले, हथियारों में निपुण हैं। उनके अड्डे पर लोगों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। हमें पूरा विशवास है कि यह प्रशिक्षण उन्हें आगामी आतंकी हमले की तैयारी के लिये दिया जा रहा है। ये ख़तरनाक अराजकतावादी, हमारे लिये बेहद चिंता का विषय हैं। सबसे ज़्यादा कष्टप्रद बात तो यह है कि इस आतंकी दल के पास एक ऐसा ख़तरनाक विदेशी हथियार है, जो सैकड़ों लोगों की जान एक साथ ले सकता है। इस हथियार को हमें क़ाबू में करना है। साथ ही आतंकी हमले की जानकारी भी प्राप्त करनी है। इसीलिए हमारे पास एक ही उपाय है। हमें गुलपुष्प को गुप्तचर बनाकर भेजना होगा, ताकि वह इस आतंकी दल में घुसपैठ कर सके और उनके राज़ जान सके।”

बैठक के एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “वह अपनी मनमानी बहुत चलाती है।”

एक और व्यक्ति ने कहा, “और उसको हैंडल करना भी आसान नहीं है।”

किसी और ने कहा, “वह आदेशों का ठीक ढंग से पालन नहीं करती है।” 

किसी ने कहा, “और उसके नाज़-नख़रे भी बहुत हैं। इस मिशन के लिये भी देखना वह कैसे-कैसे कपड़ों की माँग करेगी।”

अध्यक्ष ने कहा, “मुझे मालूम है कितनी खिझाऊ है वह। लेकिन हमें उसकी ज़रूरत है।”

विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग वाले ने बड़ी स्क्रीन चालू की। उसपर मुख्य अभिनेत्री दिखाई देने लगी। बैठक के अध्यक्ष ने टीवी पर मुख्य अभिनेत्री को संबोधित करते हुए कहा, “हम लोगों की आज अपॉइंटमेंट थी।” 

मुख्य अभिनेत्री ने पूछा, “क्या बात है?”

अध्यक्ष ने बताया, “तुम्हें आतंकी दल को भेदकर उनके नेता से आतंकी हमले की जानकारी लेनी है और उस हथियार को अपने कब्ज़े में करना है जिससे एक ही समय में सैकड़ों लोगों की जान ली जा सकती है। आतंकी दल के नेता की तस्वीर तुम्हारे मोबाइल पर भेज दी है।”

अभिनेत्री ने मोबाइल पर युवा आतंकी की तस्वीर देखी, “दिखने में तो यह हट्टा-कट्टा, जवान और ख़ूबसूरत नज़र आ रहा है। फिर ऐसा काम करने की उसे क्या ज़रूरत पड़ गयी?” 

अध्यक्ष ने उसकी बात को नज़रंदाज़ कर पूछा, “गुलपुष्प, तुम इस मिशन पर जाने के लिये तैयार हो?”
अभिनेत्री ने सोचा, “ह्म्म्म . . . ”

अध्यक्ष ने चेतावनी दी, “यह बड़ा ख़तरनाक मिशन है। ज़रा-सी असावधानी से इसमें तुम्हारी जान भी जा सकती है।”

गुलपुष्प ने तीखे नयनों से कैमरा की ओर देखा, “तब तो मुझे यह बिलकुल स्वीकार है।”

सादिल ने कैमरामैन को दो पलों के लिये गुलपुष्प की कँटीली आँखों पर ही कैमरा रखने के लिये कहा। 

अध्यक्ष ने फिर कहा, “बहुत अच्छे। तुम्हें आदिवासी स्त्री के रूप में जाना होगा। आदिवासियों की वेशभूषा में। उनके चाल-चलन, उनकी भाषा का प्रशिक्षण तुम्हें दिया जाएगा।” 

सादिल ने कहा, “कट।” शूटिंग रुक गयी। 

सादिल ने सबसे कहा, “अब हमें गुलपुष्प की पृष्ठभूमि बनानी है, और आतंकी दल को गुलपुष्प कैसे ढूँढ़ निकालेगी, इसका चित्रण करना है।” 

थोड़ी देर बाद गुलपुष्प का किरदार निभाने वाली मुख्य अभिनेत्री सादिल के पास आयी, “तो आप हैं नए डायरेक्टर!”

सादिल ने मुस्कुराकर कहा, “गुलपुष्प का किरदार अचानक स्क्रिप्ट में आ रहा है। उसकी पृष्ठभूमि बनाना आवश्यक है। इसीलिए आपके दो-चार सीन और शूट किये जायेंगे।”

अभिनेत्री ख़ुश हो गयी, “पहली ही मुलाक़ात में आपने ख़ुश कर दिया।”

सादिल का मन प्रसन्न हो गया, “मैं सेट बनवा दूँगा।”

अभिनेत्री ने कहा, “मेरे गले में थोड़ी-सी खराश है। थोड़ी-सी सर्दी जैसा महसूस कर रही हूँ।”

सादिल ने उसे आश्वासन दिया, “सब ठीक है। मैं गर्म चाय मँगवा दूँ?”

अभिनेत्री ने हामी भरी। कुछ पलों में दो कप चाय आ गयी। दोनों साथ पीने के लिये बैठ गए। 

सादिल ने अपना मोबाइल निकाला, “मैं कोलाज भी बना रहा हूँ। आप इस कैमरे में थोड़ा कुछ कह दीजिये।” 

अभिनेत्री ने मोबाइल के कैमरा में देखकर कहा, “भगवान सबकी इच्छाओं की पूर्ति करे। जिस प्रकार सादिल ने मेरे लिये गुलपुष्प का रोल बढ़ा दिया है, वैसे ही सादिल की उम्र को भी बड़ा कर दे।”

सादिल हँस दिया, “मुझे पूरा विशवास है कि तुम्हारा यह कथन सत्य हो जाएगा।” 

अभिनेत्री ने कहा, “अब मुझे बैकग्राउंड वॉइस रिकॉर्डिंग के लिये जाना है।”

 

 

अगले दिन सुबह सादिल ने फ़्रेश होकर वापिस अपना मोबाइल निकाला। आशनी लैपटॉप पर अपना काम कर रही थी। उसने सादिल को मोबाइल से वीडियो रिकॉर्डिंग करते देखा तो तंग होकर पूछा, “इतनी सुबह-सुबह भी रिकॉर्डिंग कर रहे हो कोलाज के लिये?”

सादिल ने मजबूरी जताई, “न चाहते हुए भी यह काम करना ही है।”

आशनी ने पूछा, “ऐसी कौन-सी मजबूरी है?”

सादिल ने कहा, “यही तरीक़ा है आईने में झाँककर देखने का। अपना वास्तविक रूप देखने का।” 

आशनी ने बताया, “मेरी माँ का फोन आया था। वो यहाँ आना चाहती है।” 

सादिल को अटपटा लगा, “यहाँ, हमारे घर में? तुमने उन्हें बता दिया है क्या कि हम दोनों साथ में रहते हैं?”

आशनी ने कहा, “हाँ! उसे पता है!”

सादिल ने हैरानी से पूछा, “यह बात तो तुमने मुझे बताई ही नहीं!”

आशनी बोली, “तुम भी तो बहुत बातें मुझे नहीं बताते हो!”

थोड़ी देर चुप्पी रही। सादिल बात को बढ़ाना नहीं चाहता था। उसने फिर मोबाइल रिकॉर्डिंग शुरू की। 

आशनी ने बीच में ही पूछा, “वह अभिनेत्री कैसी है? गुलपुष्प का किरदार निभाने वाली।”

सादिल ने कहा, “मुझे तो वह अच्छी लगी। बराबर सुनती है। जैसा कहो, करती है।” सादिल ने मोबाइल को थोड़ी दूरी पर रखा ताकि दूर का शॉट ले सके। 

इससे पहले कि सादिल रिकॉर्डिंग शुरू करता, आशनी ने अचानक ही पूछा, “तुम अब भी मुझसे प्रेम करते हो?”

सादिल ने पूछा, “अचानक ऐसा प्रश्न क्यों कर रही हो तुम? तुम्हें पता है।”

आशनी जवाब चाहती थी, “फिर भी?”

सादिल मुस्कुराया, “मैं समझ गया। तुम चाहती हो कि कैमरा में यह बात कहूँ मैं, है न?”

आशनी भी मुस्कुरायी, “तुम बोल क्यों नहीं सक रहे हो यह सीधी सी बात?”

सादिल आशनी को ताकता रह गया। 

आशनी ने पीछा नहीं छोड़ा, “मैं तुम्हारे घर का सारा काम कर रही हूँ। साथ में एयर-होस्टेस की नौकरी भी। तुम्हारी शर्ट के बटन भी सीकर दे रही हूँ।”

सादिल ने कहा, “हाँ, करता हूँ, बस?” सादिल ने रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। 

आशनी बोली, “यह सब मोबाइल रिकॉर्डिंग करके तुम ज़िन्दगी में क्या हासिल कर लोगे?”

सादिल ने पूछा, “क्या मतलब?”

आशनी ने भी पूछा, “तुम ज़िन्दगी से क्या उम्मीद रखते हो? क्या इच्छा है तुम्हारी?”

सादिल ने कुछ सोचा, फिर मुस्कुराते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि भगवान सबकी इच्छाओं की पूर्ति करे। तुम्हारी उम्र को बड़ा कर दे।” सादिल को लगा कि उसके इस जवाब से आशनी ख़ुश हो जायेगी। 

इसका उल्टा परिणाम हुआ। आशनी भड़क गयी, “गुलपुष्प भी यही कहेगी, है न?”

सादिल चकित हो गया, “क्या कह रही हो तुम?”

आशनी ने झुँझलाते हुए कहा, “मुझे लगा कि इस कोलाज में तुम सच्चाई दिखाना चाहते हो। अब झूठ क्यों बोल रहे हो?”

सादिल ने कहा, “झूठ कहाँ बोल रहा हूँ!”

आशनी तुनक गई, “अच्छा?”

सादिल घबरा गया, “बेतुकी बात कर रही हो तुम!”

आशनी ग़ुस्से में थी, “उस गुलपुष्प अभिनेत्री ने भी यही कहा, है ना? ठीक उसी का जवाब तुमने दोहरा दिया!”

सादिल हैरतंगेज़ था, “तुम मेरा मोबाइल चेक कर रही हो!”

आशनी, “तुम्हारे कोलाज देख रही हूँ। इसमें क्या ग़लत है? मैं भी तो देखूँ कि तुम्हारा सत्यता भरा जीवन, बाहर कैसा है।” 

सादिल ने समझाने के लहजे में कहा, “देखो . . .”

आशनी ने उसे बात पूरी करने का मौक़ा नहीं दिया, “गुलपुष्प के साथ गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो तुम!” 

सादिल ने रोष में कहा, “क्या मूर्खतापूर्ण उल्टा-सीधा बोल रही हो!”

आशनी ने कुढ़ कर कहा, “तुम्हारा विश्वास करना मुश्किल है! मेरी तो समझ के बाहर है!” आशनी पैर पटकती हुई बेडरूम में चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया। 

थोड़ी ही देर में सादिल का मोबाइल बजा, और वह शूटिंग पर निकल पड़ा। 

 

 

सेट पर दिनभर गुलपुष्प की पृष्ठभूमि बनाने का काम होता रहा। 

रात को आठ बजे सादिल वापिस घर पहुँचा। घर पहुँचते ही उसने आशनी से कहा, “जल्दी से तैयार हो जाओ। फ़िल्म स्टूडियो के मालिक ने पार्टी रखी है, उसी में जाना है।”

थोड़ी ही देर में दोनों पार्टी में पहुँच गए। आशनी का चेहरा उखड़ा-उखड़ा ही रहा। 

पार्टी में जानी-मानी बड़ी हस्तियाँ थीं। मौज-मस्ती चलती रही। लोगों ने भरपूर आनंद लिया। पार्टी में किसी बड़े डायरेक्टर ने सादिल को बताया, “आजकल हाइपर कैमरा आ रहे हैं। लेज़र से शूट करते हैं। डिजिटल फोटो खींचने की बजाये, प्रकाश को क़ैद करते हैं, ताकि पूरे सीन का तीन-आयामी चित्रण हो सके।” सादिल ने इस नई तकनीक को नोट कर लिया। 

पार्टी में कुछ जाने-माने प्रोड्यूसर थे, जिन्हें कुछ युवतियों ने घेर रखा था। उनकी अगली पिक्चर में हीरोइन का रोल लेने के चक्कर में थी ये युवतियाँ। कुछ गंभीर फ़िल्म निर्देशक आपस में चर्चा कर रहे थे। गीतकार और संगीतकार भी दिख रहे थे। 

सादिल की पिक्चर के मालिक से उसका मित्र कह रहा था, “सादिल बहुत प्रतिभाशाली है। उसका स्वभाव भी अच्छा है। मैंने पहले भी उसके साथ काम किया है। दूसरी यूनिट पर जब वो काम करता था, तो काफ़ी दिल लगाकर करता था। मुझे तो लगता है कि इस फ़िल्म में उसको ही आतंकी गिरोह के नेता की भूमिका भी निभानी चाहिए। एक्टर-डायरेक्टर दोनों।”

अन्य कलाकारों के भविष्य भी पार्टी में सज रहे थे। सादिल ने यहाँ-वहाँ देखा। आशनी किसी हिप्पी से दिखने वाले युवक से बात कर रही थी, जो कह रहा था, “. . . अपना रिसोर्ट बंगलो है।”

सादिल ने उसे टोका, “आशनी, एक सेकंड, मैं किसी से मिलाना चाहता हूँ तुम्हें।”

आशनी ने बोरियत भरी निगाहों से सादिल से नज़रें मिलाई और बेबाक कहा, “तुम देख नहीं रहे हो मैं किसी से बात कर रही हूँ। कितना अशिष्ट व्यवहार होगा अगर मैं बीच वार्तालाप में ही चली जाऊँ। कुछ समय दो मुझे।” 

फिर उसने हिप्पी से दिखने वाले युवक की ओर मुड़कर कहा, “तुम रिसोर्ट बंगलो के बारे में क्या कह रहे थे?”

हिप्पी युवक ने कहा, “वहाँ एक ऐसे थिएटर का आयोजन करूँगा जिसकी सब तरफ़ चर्चा हो। कवि सम्मलेन भी हो। गीतकारों को भी मौक़ा मिले।” 

सादिल मायूस होकर वहाँ से चल दिया। 

हिप्पी युवक ने आशनी से अपनी बात जारी रखी, “मुझे विशवास है कि तुमको यह जगह बहुत पसंद आएगी।” 

सादिल उस ओर चला जहाँ कुछ महिलायें किसी बेहद प्रसिद्ध अभिनेता के अस्पताल में भर्ती हो जाने की चर्चा कर रही थी, “बेचारा।” सादिल भी उनके साथ मिलकर प्रसिद्ध अभिनेता के प्रति सहानुभूति जताना चाहता था, लेकिन किसी से बात करने की उसकी इच्छा नहीं हुई। महिलायें आपस में बतिया रहीं थीं, “उसके साथ काम करने में कितना आनंद आता है। कितना जीवन-भरा व्यक्तित्व है उसका।” उसकी संगिनी ने कहा, “एक बार हम सभी को प्राइवेट जेट में बिठाकर सफ़ारी पर ले गया था।” सादिल ने आज तक प्राइवेट जेट अन्दर से तो क्या, बाहर से तक नहीं देखा था। 

अचानक उसकी नज़र आतंकी गिरोह के नेता का रोल करने वाले अभिनेता पर पड़ी। गुलपुष्प उसके साथ थी। दोनों बहुत हिलमिल कर बात कर रहे थे। सादिल ने ग़ौर किया– गुलपुष्प, आतंकी अभिनेता का हाथ थामे हुए थी! एक ही क्षण में उसका दिल डूब गया! 

सादिल उन दोनों को घूर रहा था, और आशनी सादिल को क़रीब से निहार रही थी। उन दोनों को साथ देख सादिल जिस प्रकार की प्रतिक्रिया कर रहा था, उससे आशनी को ताज्जुब हुआ। 

वहाँ से जाने के लिये जैसे ही सादिल पलटा, वैसे ही आशनी की निगाहें उससे टकरा गयी। आशनी ने आँखें झुका लीं, मानों उसने सादिल के अन्दर चल रहे तूफ़ान को देखा ही नहीं। 

पार्टी के बाद दोनों घर वापिस आ गए। रातभर सादिल यही सोचता रहा कि लोग मित्रता में भी तो हाथ पकड़ लेते हैं एक-दूसरे का, फिर यह तो पार्टी थी। इसका कुछ मतलब नहीं है। रात को सपने में उसे कई बार गुलपुष्प नज़र आई, कभी विस्फोट के बीच, कभी फूलों के बीच, कभी प्रस्थान करती हुई रेलगाड़ी से विदाई देते हुए। 

 

 

अगले दिन, सादिल ने होश सँभाला और जी-जान से निर्देशन के काम में जुट गया। अपनी फ़िल्म को प्रेम कहानी का एंगल न देकर, पूरी तरह से एक्शन फ़िल्म बनाने लगा। किसी भी प्रकार से उसने स्क्रीन पर गुलपुष्प और आतंकी नेता के बीच प्यार को आगे बढ़ने का मौक़ा ही नहीं दिया। उसने गुलपुष्प को महिला गुप्तचर के किरदार में पुरज़ोर बाँध रखा, और किसी भी प्रकार से उसे कामुक प्रस्तुत नहीं किया। गुलपुष्प को सादिल ने आदिवासी कपड़े भी ठीक ढंग से पूरे ही पहनाये। पिक्चर के अंत में सरकारी तंत्र और आतंकी दल के बीच जंगल में ही जमकर लड़ाई हुई। बारूद फूटे और विस्फोट हुए। एक्शन पिक्चर बनकर तैयार हो गयी। मालिक ख़ुश हो गया। 
जिस दिन पिक्चर बनकर तैयार हो गयी, उस दिन चैन की साँस लेकर सादिल घर आया। घर पहुँचते ही उसे सूना-सूना महसूस हुआ। उसने यहाँ-वहाँ ताका। आशनी के कपड़े अलमारी में नहीं थे। आशनी का साजो-सामान भी नहीं था। उसकी एक भी जूतियाँ नहीं थी। आशनी घर छोड़कर जा चुकी थी! 

सादिल सोफ़े पर दिल थामकर बैठ गया। सारा घर उसकी आँखों के आगे घूमने लगा। अपनी आँखें बंद कर, सादिल, अंतर्मन की गहराई में डूब गया। 

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