लॉकडाउन में घरेलू झगड़ा
नाट्य-साहित्य | एकांकी डॉ. भारत खुशालानी15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पर्दे के पीछे से पति-पत्नी के झगड़ने की आवाज़ें आ रही हैं।
पर्दा खुलता है।
पति:
तुम समझ नहीं रही हो। सामान्य लोग हैं हम!
पत्नी:
अच्छा! सामान्य लोग हैं हम?
पति:
वायरस आएगा तो हमको कुछ नहीं होगा।
पत्नी (झल्लाकर):
क्या बोला तुमने? वायरस आएगा तो हमको कुछ नहीं होगा?
पति:
सामान्य वायरस है, आकर चला जाएगा। हमको सामान्य ही रहना है। सामान्यता की विचार प्रणाली अपनानी है।
पत्नी:
क्या बकवास कर रहे हो तुम? तुम्हारे बोलने पर कोई चलेगा तो मर ही जाएगा। तुम तो लोगों की जान ही ले लोगे।
पति:
मैं कौन होता हूँ किसी की जान लेने वाला? मैं कोई नहीं हूँ। मैं कोई भगवान नहीं हूँ कि किसी की जान मेरे हाथ में हो। मेरे बोलने से न किसी की जान जा सकती है, न किसी को जीवनदान मिल सकता है।
पत्नी:
ये सामान्य विचार प्रणाली क्या होती है? जो तुम बकवास कर रहे हो, यह तुम्हारी सामान्य विचार प्रणाली का नतीजा है?
पति:
वायरस आना है तो आ जाएगा। छ: महिनों से तो घर पर ही बैठे हैं न? मार्च से लेकर घर में ही बैठे हैं। अब सब लोग त्रस्त हो चुके हैं। सब बाहर निकलना चाहते हैं। वायरस को आना है तो आने दो। वायरस के साथ लड़ाई लड़नी है। समझी तुम?
पत्नी:
बाहर वायरस का प्रकोप फैला हुआ है। वायरस के कारण घर में नहीं बैठना है? बाहर निकलना है?
पति:
अपने आप को सुरक्षित रखो। सुरक्षा के यत्न करो। झगड़ा मत करो।
पत्नी:
मुझे तो ऑनलाइन पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गई है।
पति:
हाँ, तो?
पत्नी:
क्यों दिया मुझे ऑनलाइन पढ़ाने के लिए?
पति:
क्यों दिया?
पत्नी:
ताकि इन हालातों में मैं बच्चों की घर पर देखभाल भी कर सकूँ।
पति:
अच्छा? वाह भई!
पत्नी:
और तुम अपनी देखभाल कर सको, थोड़ी दूरी बनाकर, थोड़ा अलग रहकर।
पति:
बराबर!
पत्नी:
तुमको तो यह बात पता ही है।
पति:
यह सब तुम्हारे दिमाग़ में है। कोई पति-पत्नी अलग नहीं रह रहे हैं। उनको बच्चे भी हैं।
पत्नी:
तुमको मालूम है कि अलग रहने से मेरा क्या तात्पर्य है।
पति:
रोज़ बाहर निकलते हैं वो लोग। लाइन में भी खड़े रहते हैं।
पत्नी:
कौन-सी लाइन की बात कर रहे तुम? अस्पताल में कौन जा रहा है?
पति:
अस्पताल में नहीं जा रहे हैं वो लोग, बाहर दूसरी जगहों पर जाकर देखो, कैसी लाइन है।
पत्नी:
स्टेशन पर रेलगाड़ी से लोग नीचे उतरते हैं, तो मास्क पहने हुए रहते हैं। उनका ताप लिया जाता है, स्टेशन से बाहर निकलने से पहले। बिना परीक्षण के लोग घूम रहे हैं। तुम जहाँ बाहर जाओगे, सौ-पचास लोग आसपास रहेंगे ही।
पति:
सौ-पचास आसपास रहेंगे तो रहने दो। यही जीवन है। इस जीवन को ऐसे ही जीना है। अब इसकी आदत डाल देनी पड़ेगी।
पत्नी:
आदत क्यों डाल देनी पड़ेगी?
पति:
लोग हवाई जहाज़ में भी यात्रा करते हैं। हवाई दुर्घटनाएँ भी होती हैं। उससे भी कम लोग मरे हैं अब तक इस वायरस से।
पत्नी:
लेकिन हमको तो अपनी रक्षा करनी चाहिए।
पति:
हम लोग हवाई जहाज़ या रेलगाड़ी में सफ़र नहीं करते हैं क्या? उनकी भी तो दुर्घटनाओं में कितने लोगों की जाने जाती हैं।
पत्नी:
लेकिन तुम अपनी रक्षा क्यों नहीं कर रहे हो?
पति (बात अनसुनी करके):
कार में तो लोग जा रहे हैं। कितनी सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं। कितने लोग सड़क दुर्घटना में मर जाते हैं।
पत्नी:
कौन सी बेतुकी बात कर रहे हो?
पति:
बेतुकी नहीं है, सही बात है। यह वायरस भी कार और हवाई जहाज़ में सफ़र करने जैसा ही है। बाहर निकलने पर इसमें भी वैसा ही ख़तरा है। इसलिए हमको अपना काम करते रहना है। डॉक्टर लोग वायरस के शिकार रोगियों का इलाज कर रहे हैं, वह उनका कार्य है। रोज़ मौत से जूझ रहे हैं वे लोग।
पत्नी:
डॉक्टरों की बात कहाँ बीच में ला रहे हो तुम?
पति:
हमारा भी कार्य उनकी ही तरह है। जैसे वो जाकर सेवा कर रहे हैं, वैसे ही हमें भी बच्चों की सेवा करना है। हमें भी उनको जाकर पढ़ाना है।
पत्नी:
हाँ तो तुम जाकर पढ़ाओ उन्हें। कौन रोक रहा है? लेकिन अपने परिवार की सुरक्षा का ध्यान रखो।
पति:
डॉक्टर लोग भी वायरस के रोगियों को देखने के बाद घर आते हैं। उनके भी बच्चे हैं। कोई अलग नहीं रह रहा है। अस्पताल में भी वायरस घूम रहा है। अन्य लोग भी अस्पताल में जा रहे हैं।
पत्नी:
दो-दो सेट ग्लब्स, एन-95 मास्क, मोटे सुरक्षा सूट, घुटनों तक लम्बे जूते पहनते हैं वे लोग। डॉक्टर संजीव और उसकी बीवी ने अपने लड़के को बाहर भेज दिया है, दूसरी जगह रहने के लिए।
पति:
लेकिन पति-पत्नी तो रह रहे हैं ना। रह रहे हैं कि नहीं?
पत्नी:
लेकिन मुझे नहीं रहना है।
पति:
रहने की बात नहीं है। फ़ालतू नाटक कर रही हो तुम।
पत्नी:
फ़ालतू? फ़ालतू नाटक? मैं दोनों बच्चों, तुषिका और दग्मेश, को लेकर चली जाऊँगी।
पति:
बेकार का नाटक मत करो तुम।
पत्नी:
अगर तुम अपने अतिथि वाले कमरे में अलग रहने के लिए तैयार नहीं हो, तो मैं बच्चों को लेकर चली जाऊँगी।
पति:
हम सबको साथ में ही रहना है।
पत्नी:
नहीं रहेंगे।
पति:
तुम बच्चों को यह सिखाना चाहती हो कि पापा बीमार हुए तो घर से चले जाना है? या माँ बीमार हुई तो अलग चले जाना है? मुझे बच्चों को यह शिक्षा नहीं देनी है।
पत्नी:
संगीत शिक्षिका का भी फोन आया था। मैंने उसे भी आने के लिए मना कर दिया। बात ग़लत शिक्षा की नहीं है।
पति:
पूरी दुनिया मुझसे अलग हो जाए, लेकिन मेरे बच्चे मुझसे अलग नहीं होने चाहिएँ। यही शिक्षा मुझे दोनों बच्चों को भी देनी है। समझी तुम? कल अगर तुमको वायरस का संक्रमण हो गया, तो मैं नहीं चाहता हूँ कि बच्चे इधर-उधर जाकर रहें।
पत्नी:
गंगा मौसी के जो पहचान वाला हथियाणा परिवार था, जिनकी बेटी पुणे में नौकरी करती है और पुणे में उसके घर में ही कोरोना केस निकला, तो यहाँ से हथियाणा परिवार से कोई गया क्या अपनी बेटी के पास? कोई नहीं गया।
पति:
वायरस आने की बाद की परिस्थिति बता रही हो तुम। जब आएगा तब देखेंगे।
पत्नी:
आने के बाद सावधानी बरतेंगे क्या? सावधानियाँ तो पहले ही बरतनी पड़ेंगी ना?
पति:
मैं छह महीने बाहर रहूँगा क्या? पागलों जैसी बात कर रही हो तुम!
पत्नी:
पागलों जैसी बात तुम कर रहे हो!
पति:
बाक़ी सब लोग रह रहे हैं। हम लोगों को भी ऐसे ही रहना है।
पत्नी:
मुझे नहीं रहना है।
पति:
और कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे पास।
पत्नी:
क्यों? तुम अतिथि घर में जाने के लिए तैयार नहीं हो?
पति:
मैं किसी अतिथि गृह में नहीं जाऊँगा। कहीं नहीं जाऊँगा मैं। जब परीक्षण के बाद मुझमे संक्रमण का पता चलेगा, तब मैं अपने आप को अलग कर दूँगा।
पत्नी:
तब तक तो हम भी संक्रमित हो चुके होंगे।
पति:
कोई बात नहीं है। सौ वायरस फैलते हैं। सौ वायरसों से आदमी संक्रमित होता है। पता नहीं कितने वायरस आते हैं, जाते हैं। बस ऐसे ही हमको जीना है। मुझे अपने बच्चों को परिवार में अलगाव की भावना नहीं सिखानी है।
पत्नी:
मुझे नहीं जीना है इस तरह से। मुझे मेरे बच्चों की रक्षा करनी है, बस।
पति:
चाहे जो भी हो, मेरे बच्चे ऐसा करना नहीं सीखेंगे।
पत्नी:
तो फिर मैं तुम्हें तलाक़ दे दूँगी।
पति (ऊँगली दिखाकर):
तुम तलाक़ दे दोगी?
पत्नी:
ऊँगली किसको दिखा रहे हो तुम?
पति:
मैंने साफ़ शब्दों में बता दिया है तुमको कि मुझे ऐसी ग़लत शिक्षा बच्चों को नहीं देनी है।
पत्नी:
दिमाग़ खोलकर सोचो ज़रा।
पति:
एकदम दिमाग़ खोलकर सोच लिया है।
पत्नी:
तुम दो कक्षा भले ही, लेकिन पढ़ाने तो जा रहे हो न!
पति:
मैं कितनी कक्षाओं को पढ़ाने जा रहा हूँ, वह बात नहीं है।
पत्नी:
अगर तुमको संक्रमण हो गया, तो तुम नहीं मरोगे। तुम्हारी लड़की मर जायेगी।
पति:
तो यह तुम्हारा और मेरा नसीब होगा।
पत्नी:
तो ऐसा होने से पहले सावधानी क्यों नहीं बरतें हम?
पति:
सावधानी बरतने से क्या होने वाला है? जिस आदमी की मौत लिखी है, वो तो मरेगा ही। कौन बचा सकता है उसको? अगर उसका वक़्त आ गया है, तो वो मरेगा ही।
पत्नी:
तो फिर खाना क्यों खा रहे हैं हम लोग? हम सबको तो मरना ही है।
पति:
कौन कह रहा है कि अभी मर रहे हैं?
पत्नी:
कोई भी यह थोड़े ही सोचता है कि अभी मर रहे हैं या बाद में मर रह रहे हैं। खाना तो लोग खाते ही हैं। सावधानी सभी बरतते हैं।
पति:
बरती है न सावधानी। और कितनी बरतेंगे? छह महीनों से घर में ही तो बैठे हैं। यही तो सावधानी बरतना है। जो हम लोग कर सकते थे, वह किया। जिस प्रकार की सावधानी बरत सकते थे, बरती। अब छोड़ दो यह मुद्दा।
पत्नी:
फिर मैं भी ऑनलाइन के बदले कक्षा में ही पढ़ाने का इंतज़ाम करवा देती हूँ। मैं बोल देती हूँ प्रशासन को कि जब मेरे पति जा रहे हैं, तो मैं भी आना चाहती हूँ।
पति:
हाँ तो जाओ।
पत्नी:
ईमेल कर देती हूँ मैं अपने अध्यक्ष को।
पति:
ठीक है। लिख दो।
पत्नी:
उन लोगों ने हम महिलाओं को इसलिए ऑनलाइन की सुविधा दी है कि ऐसे समय पर हम लोग घर का भी ध्यान रख सकें।
पति:
अध्यक्ष कौन है कुछ भी करने वाला? प्रशासन कौन है? अध्यक्ष ने ऐसी कोई सुविधा नहीं करके दी है। प्रशासन ने भी नहीं।
पत्नी:
उन्होंने ही किया है। उन्होंने ही दी है यह सुविधा। उनके ही हाथ में है। उनको बता दिया गया है कि महिलाओं को सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
पति:
अगर तुमको ऐसा लगता है कि उन्होंने किया है, तो ठीक है। महिलाओं को हटकर सुविधाएँ मिलती हैं।
पत्नी:
तुमको थोड़े ही यह बात समझ आ रही है कि क्यों यह सुविधा मिली? क्योंकि बच्चे सुरक्षित रहें। तुम अपने बच्चों को सुरक्षित नहीं देखना चाहते हो।
पति:
तुमको इसलिए यह सुविधा दी गई है ताकि तुम बच्चों को और अपने पति को अच्छे से घर में रख सको, बिना झगड़ा किये हुए।
पत्नी:
कितने गधे व्यक्ति हो तुम! शिक्षण संस्था में ऐसा कौन सोचेगा कि महिलाओं को इसलिए सुविधा देनी चाहिए ताकि वे घर में अपने पति के साथ झगड़ा न करें?
पति:
ऐसा क्यों नहीं सोचेंगे शिक्षण संस्थान में? पति की भी घर में अहमियत होती है। यह बात उन्हें ख़ूब समझती है।
पत्नी:
और तुम्हें नहीं समझ आ रहा है कि पत्नी की भी अहमियत होती है। तुम अपनी पत्नी की इज़्ज़त नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें नहीं समझ आ रहा है।
पति:
मैं बराबर इज़्ज़त करता हूँ तुम्हारी। तुम ऐसा क्यों सोच रही हो कि मैं तुम्हारी इज़्ज़त नहीं करता हूँ? मुझसे जितना बनता है, मैं करता हूँ। फिर भी तुम मुझे परेशान कर रही हो।
पत्नी:
क्योंकि तुम्हें अपने आप को क्वारंटाइन करना है। जो भी बाहर जा रहा है, सब अपने आप को बराबर अलग रखकर क्वारंटाइन कर रहे हैं।
पति:
किसी क्वारंटाइन की ज़रूरत नहीं है। इतने लोग सौ बार आ-जा रहे हैं।
पत्नी:
सौ बार सिर्फ़ वही लोग जा रहे हैं जो मात्र अपनी ऑफ़िस में जा रहे हैं।
पति:
उससे क्या होता है? वे लोग जा तो रहे हैं ना?
पत्नी:
तुम चालीस-पचास छात्रों के सामने खड़े होते हो। दोनों में बहुत अंतर है।
पति:
बहुत सारी जगहों पर सार्वजनिक शौचालय हैं। ऑफ़िस वाले, दुकान वाले, व्यापार वाले, सब वहाँ जाते हैं। आज भी जा रहे हैं।
पत्नी:
कौन जाता है सार्वजनिक शौचालय में?
पति:
अभी तो बताया इतने सारे लोग जाते हैं। और जो यहाँ-वहाँ सफ़र कर रहे हैं, बीच रास्ते में हैं, वे भी तो इस्तेमाल कर रहे हैं। शौचालय को थोड़े ही बंद किया जा सकता है। बीच रास्ते में या सड़क पर तो शौच नहीं कर सकते हैं।
पत्नी:
किनकी बात कर रहे हो तुम? कौन आ-जा रहा है?
पति:
तुमको पता ही नहीं है कि आज भी दो-दो घंटे सफ़र करके लोग काम पर जा रहे हैं। सरकारी तंत्र ठप्प हो जाएगा उनके बिना।
पत्नी:
सब लोग घर से ही काम कर रहे हैं।
पति:
ज़रा बाहर निकलकर देखो कितने लोग जा रहे हैं।
पत्नी:
सबको घर से ही काम करने की अनुमति मिली हुई है।
पति:
डॉक्टर जा रहे हैं कि नहीं? नर्स भी जा रहीं हैं। सब्जी-भाजी बेचने वाले, किराने वाले, ज़रूरी सर्विस करने वाले . . .
पत्नी:
कौन-सी जरूरी सर्विस?
पति:
किसी की पानी की मोटर ख़राब हो गई, बिजली के कनेक्शन में दिक़्क़त आ रही है, गैस सिलिंडर घरों तक पहुँचाने वाले, पार्सल ले जाने वाले, सामानों की सुधार करने वाले, रोज़मर्रा के कामगार . . . कितने लोग अपने दुपहिये वाहनों पर दिखते हैं, ज़रा बाहर देखो। रास्ते आज भी ख़ाली नहीं हैं।
पत्नी:
डॉक्टरों की बात नहीं कर सकते हो तुम। वे लोग बराबर सावधानी बरतते हैं।
पति:
हम लोग भी एन-95 मास्क पहन सकते हैं। इसमें क्या दिक़्क़त है?
पत्नी:
हमारे पास एन-95 नहीं है! सभी डॉक्टरों के पास एन-95 मास्क रहता है।
पति:
अपने पास जो भी मास्क है, वही काफ़ी है।
पत्नी:
अपने पास सामान्य मास्क हैं। डॉक्टरों के हिसाब से ये मास्क काफ़ी नहीं होते हैं। कितने ऐसे लोगों ने पहना है सामान्य मास्क, और उनको भी संक्रमण हुआ है।
पति:
सामान्य मास्क के साथ छह फीट की दूरी काफ़ी है। बस छह फ़ीट की दूरी बनाए रखना है। फिर कोई संक्रमण नहीं होता है।
पत्नी:
यूँ ही बाहर संक्रमण फैला हुआ है, है ना? सभी लोगों ने छह फ़ीट की दूरियँ बनाए रखीं, फिर भी अस्पताल भर गए!
पति:
कहाँ भर गए हैं अस्पताल?
पत्नी:
अख़बार तो तुम बराबर पढ़ रहे हो। फिर तुम्हें कैसे नहीं पता कि अस्पताल भर गए हैं। हमारे इलाक़े की किसी अस्पताल में जगह नहीं है। बंद हैं वे अस्पताल हमारे लिए, आम लोगों के लिए।
पति:
अस्पताल बंद करेंगे तो घर में आना पड़ेगा उन्हें परीक्षण करने या जाँच करने। हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है। सरकार को इस बात की फ़िकर होनी चाहिए कि अस्पताल भर गए हैं। इस बात को लेकर तुम मेरे साथ क्यों झगड़ा कर रही हो?
पत्नी:
मैंने थोड़े ही कोई झगड़ा किया है।
पति:
तुमको झगड़ा करना है, तो प्रशासन के साथ करो। मेरे साथ झगड़ा करके कोई लाभ नहीं है। मुझे कहा गया है, तो मुझे पढ़ाने जाना ही पड़ेगा।
पत्नी:
घर में भी तो तुमसे कहा जा रहा है। प्रशासन के आदेश का पालन कर रहे हो तुम, घर का नहीं?
पति:
तुम अगर प्रशासन वालों के आदेश से नाख़ुश हो, तो प्रशासन पर केस कर देते हैं कि हमको प्रत्यक्ष बुलाया जा रहा है। फिर देखते हैं क्या होता है।
पत्नी:
तुम प्रशासन के आदेश का पालन कर रहे हो तो घर के सदस्यों को सुरक्षित रखो। तुमको अथिति कक्ष में रहकर भी खाना वग़ैरह सब बराबर से मिलता रहेगा।
पति:
ऐसा सोचना पाप है।
पत्नी:
क्यों पाप है? अगर मैं बाहर जाती और तुम्हारा ऑनलाइन होता, तो बिलकुल यही शब्द कहते तुम मुझसे।
पति:
जब मैं अपने लिए नहीं कह रहा हूँ, तो तुम्हारे लिए कैसे कहता?
पत्नी:
बिलकुल यही करते तुम। एक नंबर के मतलबी आदमी हो तुम। तुम्हारा मतलब होता, तो तुम कहते कि ‘तुषिका और दग्मेश को सुरक्षित रखना है, इसलिए तुम अथिति गृह में चली जाओ’। तुम मुझे अथिति गृह में डालकर ही छोड़ते।
पति:
अभी तक तो सब कुछ सामान्य है। डॉक्टर भी कितनों का परीक्षण कर रहे हैं? बहुत सारे सामान्य ही घोषित हो रहे हैं।
पत्नी:
बहुत सारे डॉक्टर सामान्य भी घोषित कर दें, तो भी आख़िर में कोई ऐसी जटिल बीमारी निकल ही जाती है। मेरी ख़ुद की नानी को अल्ज़ाइमर ऐसे ही तो निकला था। किसी डॉक्टर ने रिपोर्ट में नहीं बताया था। प्रवीण का भी तो केस है ना। कितने ऑप्टोमीटरिस्ट के पास गया वो। सभी ने उसकी आँखों को सामान्य बताया। आख़िर में उसकी आँख की पुतली को निकालना ही पड़ा। नक़ली पुतली लगी हुई है उसकी आँख में।
पति:
जिस समय प्रवीण डॉक्टर के पास गया था, उस समय सब कुछ सामान्य होगा। ऑप्टोमीटरिस्ट इतने अनपढ़ या गँवार थोड़े ही होते हैं कि आँखों की पुतली ख़राब हो गई हो और वे उसको सामान्य बता रहे हों।
पत्नी:
तुम मेरी बात नहीं समझ रहे हो। डॉक्टरों की राय के भरोसे पर नहीं बैठ सकते हैं। हमारी सावधानियाँ हमें ख़ुद ही बरतनी हैं।
पति:
तो बरतेंगे सावधानियाँ। बाहर से आकर कोई ज़बरदस्ती थोड़े ही सबके साथ संपर्क बनाता है, या जानबूझकर सबके नज़दीक जाकर उनको हाथ लगाता है। सावधानियाँ बरतने की मनाही कहाँ है?
पत्नी:
जब मैं तुम्हें बाहर से, रेस्टोरेंट से खाना लाने के लिए कहती थी, तो तुम बाहर से खाना लाने के लिए तैयार नहीं होते थे। और अब तुम इतने सारे छात्रों के बीच और बाक़ी शिक्षकों के बीच जाकर पढ़ाने के लिए तैयार हो, इन हालातों में। जब तुम्हारी बात आई, सब चीज़ों के लिए तैयार हो गए तुम। जब मेरी बात आती है, तो किसी चीज़ के लिए तैयार नहीं होते हो तुम।
पति:
उनको परिस्थितियाँ सामान्य लग रही हैं, या ऐसा लग रहा है कि सुरक्षा के साथ कक्षाएँ चलाई जा सकती हैं, इसलिए बुला रहे हैं। वे लोग बीच में बंद भी कर सकते हैं।
पत्नी:
वे लोग बंद नहीं करेंगे। उनके लिए शिक्षा एक व्यापार है। सब लोगों की यही राय है कि पैसा बनाने के लिए वे शिक्षकों की जान ख़तरे में डाल रहे हैं। रोज़ ऐसी ख़बरें आती हैं।
पति:
सब्ज़ियाँ ख़रीदने के लिए भी लोग आ रहे हैं मार्केट में।
पत्नी:
तुम सिर्फ़ अपनी जान जोखिम में डालो। तीन और लोगों की जान क्यों ख़तरे में डाल रहे हो तुम?
पति:
सब्ज़ियाँ क्यों बनाती और खाती हो तुम? तुम्हें सब्ज़ियाँ नहीं खानी चाहिए।
पत्नी:
सब्ज़ियों से कुछ नहीं होता है।
पति:
सब्ज़ियों से भी लोगों को वायरस का संक्रमण हो गया है।
पत्नी:
आजतक तो किसी को सब्ज़ियों से होते हुए नहीं सुना है।
पति:
चिकन, मांस, इनसे तो बहुतों को हुआ है।
पत्नी:
जानवरों को पालने, काटने में कितने गंदे तरीक़े से काम करते हैं, तुम्हें पता ही है। उसकी तुलना सब्ज़ियों से नहीं कर सकते हैं।
पति:
तुम खाना खाना बंद कर दो।
पत्नी:
अच्छा?
पति:
हम लोग पढ़ाने नहीं गए तो छात्रों का साल बर्बाद हो जाएगा।
पत्नी:
ऑनलाइन तो पढ़ा सकते हैं!
पति:
थोड़ी दूर की दृष्टि रखकर देखो।
पत्नी:
सिर्फ़ मैं ही क्यों दूर की दृष्टि रखूँ?
पति:
हम लोग समाज का अंग हैं। समाज के सदस्य हैं।
पत्नी:
मैं भी हूँ। लेकिन चूँकि मैंने डॉक्टर बनना नहीं चाहा, इसलिए मैं फ़्रंटलाइन पर नहीं जा सकती हूँ।
पति:
जिन-जिन को प्रशासन ने बुलाया है, सब जा रहे हैं। किसी ने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा नहीं दिया है।
पत्नी:
तुम जाओ, लेकिन इतना ध्यान में रहना चाहिए कि परिवार के तीन और सदस्यों की ज़िन्दगी का भी सवाल है।
पति:
ज़िन्दगी का कहाँ से सवाल आ गया? यही तो ग़लत सोच है तुम्हारी।
पत्नी:
बिलकुल सही सोच है।
पति:
तुम्हारी इसी सोच के कारण आज यह झगड़ा हो रहा है। तुम बच्चों को यह शिक्षा दे रही हो कि मैं या तुम बीमार हुए तो ‘बच्चे लोग तुम हमारे साथ मत रहना’।
पत्नी:
तुमको पता है कि ये विशेष परिस्थितियाँ हैं।
पति:
मैं तो बीमार ही नहीं हुआ हूँ। जब मैं बीमार हो जाऊँ, तब तुम ऐसा बोलो तो भी समझ में आता है।
पत्नी:
तुमको ऐसा नहीं सोचना है। तुमको ऐसा सोचना है कि ‘मैं ऐसी ख़तरनाक परिस्थितियों में बाहर निकल रहा हूँ, इसका अंजाम मेरे बीवी-बच्चे क्यों भुगतें’। तुम्हारी सोच बिलकुल इससे विपरीत है।
पति:
मैं बाहर से आकर हमेशा नहा लेता हूँ।
पत्नी:
नहाने से कुछ नहीं होता है। शरीर के अन्दर घुस जाता है वायरस। मुझे समझ में नहीं आता है कि यह ख़तरा मोल लेना ही क्यों है? तुमको तो ऐसा बोलना चाहिए कि ‘मैं अपनी तरफ़ से अपने परिवार को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश करूँगा। ऐसा समय फिर नहीं आएगा। मैं कक्षा में पढ़ाने जाऊँगा और अलग से रहूँगा, और इस प्रकार से अपना पूरा परिवार सुरक्षित रहेगा।’ ऐसा कहना चाहिए तुमको। तुमको इस प्रकार की योजना बनानी चाहिए कि परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता मिले।
पति:
मैं कोई पूरे दिन थोड़े ही रहने वाला हूँ परिसर में। सिर्फ़ जाकर पढ़ाया, और घर वापिस।
पत्नी:
तुम कितनी बहसबाज़ी कर रहे हो। तुमको एक जगह बैठकर पूरे परिवार के भविष्य की योजना बनानी चाहिए।
पति:
समाज का चक्का जाम नहीं हो गया है। जीवन रुक नहीं गया है। रेलगाड़ियों को भी चलाया। बसों को भी चलाया। मालगाड़ियाँ सामान लेकर आ-जा रही हैं। खाने-पीने की दुकानें खुली हुई हैं। ऑफ़िस खुले हुए हैं। अस्पताल तो चल ही रहे हैं।
पत्नी:
अस्पतालों की हालत ख़राब है। वहाँ पूरी प्रणाली चरमरा गई है। आज अगर कोई बड़ा राजनीतिज्ञ भाषण देने के लिए शहर में आएगा, तो भी लोग नहीं जाएँगे। क्योंकि लोग अपनी जान की परवाह करते हैं।
पति:
पेशंट फिर भी जा रहे हैं। उनको अपने स्वास्थ्य की चिंता है।
पत्नी:
तुमको भी होनी चाहिए। केवल अपने स्वास्थ्य की नहीं, बल्कि हम सभी घरवालों के स्वास्थ्य की चिंता होनी चाहिए। तुमको ख़ुद से यह बात कहनी चाहिए। मुझे तुमको बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
पति:
सावधानी बरतना अच्छी बात है, लेकिन तुम्हारी यह सोच ग़लत है कि मैं बाहर जा रहा हूँ तो मुझे अलग रहना चाहिए।
पत्नी:
तुम डंके की चोट पर जा रहे हो। तुम चिल्ला रहे हो, ‘हे भगवान, छह महीने हो गए, मैं घर में ही बैठा हूँ, अब तो बाहर जाना ही पड़ेगा।’ दग्मेश को साइकल चलाने ले जा रहे हो। अब सब जगह जाने की सूझी पड़ी है तुमको।
पति:
दग्मेश को साइकिल सिखाना ही है। इसमें क्या ग़लत कर रहा हूँ मैं? जब तक हम मास्क पहन रहे हैं, हाथ धो रहे हैं, तब तक सब ठीक है। तुम्हारे कारण ही तो मैं इतने समय तक घर में बैठा था।
पत्नी:
मेरे कारण तो तुम कभी भी घर नहीं बैठ सकते हो। अगर तुम्हारे भेजे में यह बात बैठ गई कि दग्मेश को साइकिल चलाने बाहर लेकर जाना है, तो तुम उसको बाहर ले जाकर ही छोड़ोगे। अगर तुम मेरे कारण बैठे थे, तो अब मेरे कारण अथिति गृह में जाओ। अभी जाओगे तुम? दो-तीन हफ़्तों के लिए ही चले जाओ। या तुम प्रशासन से कह दो कि मिश्रित शिक्षा प्रणाली का पालन करें।
पति:
ये मिश्रित शिक्षा प्रणाली क्या होती है?
पत्नी:
इसमें शिक्षक कक्षा में भी पढ़ाता है और बाक़ी के क्लास ऑनलाइन लेता है। दोनों का मिश्रण होता है।
पति:
ऐसा कोई नहीं करने देगा। यह सबके लिए कितनी गड़बड़ी वाली बात हो जायेगी।
पत्नी:
प्रशासन को सिर्फ़ राज्य सरकार, बोर्ड और केन्द्रीय सरकार को यह दिखाना है कि कक्षाएँ ली जा रही हैं। कितनी कक्षाएँ किस माध्यम से ली जा रही हैं, यह कोई नहीं पूछने वाला है। छात्र कक्षा में भी आयेंगे, और घर से भी बैठकर पढ़ाई करेंगे। ऑनलाइन शिक्षा भी होगी।
पति:
सारे विद्यार्थियों के माँ-बाप इससे तमाशा खड़ा कर देंगे।
पत्नी:
देखा! तुम थोड़ा-सा विचार करने के लिए भी तैयार नहीं हो! तुरंत ‘ना’ कर दी। मतलब तुम्हें ख़ुद बाहर जाना ही है। वहीं जाकर क्लास लेनी है।
पति:
मेरे सोचने से क्या होने वाला है? ऐसी बात कोई मानेगा ही नहीं।
पत्नी:
कोई तुमसे कुछ कह रहा है, तो अकारण नहीं कह रहा है।
पति:
पूरे-पूरे दिन नहीं बैठना है। जब तक वायरस का प्रकोप है, तब तक कुछ ही घंटों के लिए कहा गया है। उसमें भी मैं मास्क पहनकर, हाथ धोकर, ग्लब्स पहनकर जाने वाला हूँ। सैनीटाईज़र भी अपने साथ रखने वाला हूँ।
पत्नी:
तुमको लगता है कि अब तक जिनको संक्रमण हुआ है, उन्होंने यह सब नहीं किया होगा?
पति:
नहीं किया होगा तभी तो संक्रमित हुए वे लोग।
पत्नी:
ग़लत धारणा है तुम्हारी। जो लोग यह सब करते हैं, वे लोग भी वायरस का शिकार हो चुके हैं।
पति:
जिन्होंने लापरवाही बरती है, सिर्फ़ वे ही रोगी हुए हैं।
पत्नी:
इस वायरस को कोई नहीं रोक सकता है। तुम्हारे पास ऐसा मास्क ही नहीं है जो इस वायरस की रोकथाम करने में सक्षम हो। वर्ना वही कहावत है – जब चिड़िया चुग गई खेत। कक्षा में किसी संक्रमित ने बस एक बार छींक दिया या खाँस दिया, तो हमारा पूरा परिवार डूब जाएगा।
पति:
कोई संक्रमित कक्षा में आएगा ही क्यों?
पत्नी:
दो हफ़्तों तक उसे पता ही नहीं चलेगा कि वह संक्रमित है। तब तक सब ख़त्म हो चुका होगा। हमारे बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी मज़बूत नहीं है कि ऐसे जघन्य वायरस के आक्रमण को सह सकें।
पति:
इस बहस का कोई अंत नहीं है। जब वायरस इस देश से निकल जाएगा, तब ही हमारे घर में शांति वापिस आएगी।
पति-पत्नी दोनों थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो जाते हैं।
पति:
अब तुम हम दोनों के लिए चाय बना कर लाओ।
पत्नी अनमने से किचन में चाय बनाने चली जाती है।
पर्दा गिरता है।
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