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लक्ष्मी पूजन की रात 

जब से नखिलेश की उम्र पचास बरस की हुई, तब से उसे नींद बहुत कच्ची आने लगी। शायद पचास का आँकड़ा पार कर जाने की वज़ह से ऐसा था। लेकिन आज की रात, उसे अच्छी गहरी नींद आई थी। आज लक्ष्मी पूजन की रात्रि को, अच्छे से पूजा-पाठ हुई, लेकिन कोई रिश्तेदार आया नहीं। अपनी गहरी नींद से बहुत ही धीमे-धीमे वह होश में तब आया जब उसे एहसास हुआ कि उसकी पत्नी उसकी बाँह पकड़कर धीरे-धीरे उसे उठा रही है। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि नीलिमा उससे कह रही है, “उठिए, सुनते हो?”

अपनी अच्छी ख़ासी निद्रा भंग होने से झुँझलाहट में नखिलेश ने पूछा, “क्या बात है?”

नीलिमा ने कहा, “ये आवाज़ नहीं सुनाई दे रही है क्या तुमको?”

नखिलेश ने पूछा, “कौन-सी आवाज़?” 

नीलिमा ने कहा, “ध्यान से सुनो।”

मध्यरात्रि का समय था। बाहर से पहले जो कुछ कुछ पटाखे फूटने की आवाज़ें आ रहीं थीं, वे मध्यरात्रि के बाद समाप्त हो गईं थीं। दिवाली मेल-मिलाप का त्यौहार होता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। घर में भी अँधेरा था। पंखा धीमे-धीमे दो पर चल रहा था। चारों तरफ़ के सन्नाटे में किसी के रुदन की आवाज़ आ रही थी। 

नखिलेश ने और ध्यान से सुना। वाक़ई आवाज़ थी। ऊपरी मंज़िल के किसी फ़्लैट से आ रही थी। दिवाली की रात ख़ुशियाँ मनाने की रात होती है, ऐसे में किसी के दुःख का विलाप, हृदय में करुणा भर सकता है।  

फिर ज़ोर से चीख़ने की आवाज़ आई। नखिलेश के रोंगटे खड़े हो गए। वो तुरंत बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। 

नीलिमा भी बिस्तर से उठ गई। उसने निखिलेश से दबी आवाज़ में कहा, “यही वह औरत है जिसका पति कोरोना का मरीज़ है और अस्पताल में है।”

फिर बर्तन पटकने की आवाज़ें आने लगीं। 

नखिलेश ने जल्दी से नीलिमा को आदेश दिया, “तुम तुरंत कोरोना सहायता नंबर पर फोन करो और उन्हें बताओ।” 

नीलिमा ने झटके से अपने मोबाइल से नंबर मिलाया और माजरा समझाया। जिस व्यक्ति ने फोन उठाया था, उसने तुरंत आश्वासन दिया, “मैडम, मैं दो स्वास्थ्य अधिकारियों को भिजवाता हूँ। आप अपनी तरफ़ से पुलिस को तुरंत सूचना दीजिये।”

नीलिमा ने अपने नज़दीकी पुलिस स्टेशन को कॉल किया। यह नंबर उसने अपने मोबाइल में सेव कर रखा था। जिस महिला ने पुलिस स्टेशन में फोन उठाया, उसने बात को समझा और नीलिमा से बिल्डिंग का पता लेकर फ़ौरन एक पुलिस वाले को उस बिल्डिंग की तरफ़ रवाना करवाया। पुलिस वाले ने अपने साथ अपना एक साथी भी ले लिया। 

नखिलेश ने घर की बत्तियाँ जला दी थीं। दोनों अपने फ़्लैट से बाहर निकले। बाहर निकलते ही नखिलेश ने जब गलियारे से झाँककर देखा, तो ऊपर और नीचे के दो-तीन फ़्लैट के लोग उसे बाहर निकलते हुए दिखे। ज़ाहिर था कि उन्हें भी आवाज़ें आ रहीं थी या शायद डर लग रहा था। पूरे कोरोना प्रकरण ने ही डर का माहौल बना दिया था। बिल्डिंग में कोरोना केस होने से और भी ख़ौफ़ छाया हुआ था। नखिलेश ने घर से बाहर निकले उन लोगों को नीचे बरामदे में आने के लिए कहा और ख़ुद नीलिमा के साथ, सीढ़ियों के सहारे बरामदे में आ गया। बरामदे में इक्का-दुक्का जले हुए अनार और चक्रियाँ पड़ीं थीं, साथ ही किसी ने एक-दो फूलझड़ियाँ जलाने के पश्चात वहीँ फेंक दी थी। दो-तीन आतिशबाजियाँ और एकदम छोटे-छोटे फूट चुके बम भी थे।   

बरामदे में लैटर बॉक्स लगे हुए थे जिनमें डाकिया चिट्ठी रख जाता था और सिक्योरिटी गार्ड बिल रख देता था। लैटर बॉक्स के सामने लोहे की ग्रिल का बना बड़ा मज़बूत दरवाज़ा था। यह दरवाज़ा बिल्डिंग में आने-जाने का मुख्य द्वार था। सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुर्सी यहाँ लाकर बैठता था। सबको इसी दरवाज़े से आना-जाना पड़ता था। 

पता नहीं वर्तमान माहौल की बात थी, या सरकारी दबाव था, कि वे दोनों पुलिसवाले पाँच मिनट के अन्दर ही बिल्डिंग पर पहुँच गए। जब बाहर अपनी गाड़ियाँ रखकर उन्होंने बिल्डिंग में अन्दर प्रवेश किया, तो कुछ कुछ चिल्लाने की आवाज़ें नीचे तक आ रहीं थीं। पुलिसवाले ऊपर की ओर गए। 

कुछ और मिनट गुज़रे कि दो स्वास्थ्य अधिकारियों ने बिल्डिंग में क़दम रखा। लक्ष्मी पूजन की रात्रि पर भी वे ड्यूटी पर तैनात थे। उन्होंने पूरा पीपीई सूट पहन रखा था। सर पर हेलमेट था। सूट की पतलून, बूट के अन्दर थी। जब से कोरोना के प्रकरण शुरू हुए थे, तब से इन दोनों स्वास्थ्य अधिकारियों ने बहुत अलग-अलग प्रकार की परिस्थितियों का सामना किया था। उनकी नज़र में ज़्यादातर मामले गंभीर नहीं थे, लेकिन एक भी गंभीर मामला घातक साबित हो सकता था। इसीलिए दोनों हमेशा अपने सुरक्षा कवचों में ही जाते थे। पहले ने दूसरे से कहा, “प्रशांत, आज मामला गंभीर लगता है।”

प्रशांत ने हामी भर दी। उसने कहा, “गौतम, तुम इन लोगों से बात करो, मैं ऊपर देख कर आता हूँ।” 

गौतम और प्रशांत, दोनों ने नीचे खड़े बिल्डिंग के निवासियों को बरामदे में एकत्र देखा। उन दोनों को देखकर एक-दो बिल्डिंग वाले उनके पास आये। उनमें से एक सत्तर साल का बूढ़ा व्यक्ति था जो ज़्यादा ही परेशान लग रहा था। उसने गौतम और प्रशांत से कहा, “बेटा मेरी उम्र देखो, ये सब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है इस उम्र में।”

गौतम और प्रशांत को अभी मामला समझ ही नहीं आया था। गौतम ने बूढ़े व्यक्ति से कहा, “आप चिंता न करो। हम लोग आ गए हैं।” 

कुछ और बिल्डिंग के रहवासी आपस में बात करने लगे। उन दोनों स्वास्थ्य अधिकारियों के सूट देखकर उनको और चिंता सताने लगी। वृद्ध के साथ लगभग सत्तर साल की बूड़ी महिला भी थी। उसने भी रोष प्रकट किया। 

बिल्डिंग के एक अन्य अधेड़ उम्र के व्यक्ति, सुनील मिश्र ने दोनों को बताया, “चीख़ने-चिल्लाने की आवाज़ें आ रही हैं। उसका पति कोरोनाग्रस्त है और अस्पताल में है।” 

प्रशांत ने बूढी महिला से पूछा, “आपने कॉल किया था हम लोगों को?”

नीलिमा ने आगे बढ़कर कहा, “नहीं, कॉल तो मैंने किया था।” 

किसी और फ़्लैट वाले ने कहा, “बहुत सारे बर्तन फेंकने की आवाज़ें भी आ रही हैं।”

गौतम ने उस व्यक्ति से कहा, “हम लोग देख लेते हैं।” 

एक दंपती अपनी पाँच-छः साल की बच्ची के साथ थे। बच्ची सहमी हुई लग रही थी। बच्ची की माँ ने कहा, “पुलिस वाले आये हुए हैं। ऊपर हैं।” 

प्रशांत लिफ़्ट की ओर बढ़ा तो नीलिमा ने कहा, “लिफ़्ट काम नहीं करती है। बंद पड़ी है।”

प्रशांत ने जैसे ही सीढ़ियों से ऊपर जाने के लिए क़दम बढ़ाया, ऊपर से एक पुलिसवाला नीचे की ओर आता दिखा। 

पुलिसवाले ने स्वास्थ्य अधिकारियों को सुरक्षा सूट में देखा, “आप लोग भी आ गए?” 

प्रशांत ने हामी भरी, “हाँ, हमको भी बुला लिया है।” 

पुलिसवाले ने पूछा, “पुलिस का मामला है या स्वास्थ्य का?” 

प्रशांत ने कहा, “पता नहीं। चेक करना पड़ेगा।” 

पुलिसवाले ने कहा, “आप मेरे साथ ऊपर आ जाओ।” 

गौतम ने बिल्डिंगवालों को संबोधित किया, “आप यहीं पर रुकिये।” 

बच्ची की माँ ने कहा, “हम लोग क्या यहाँ बरामदे में सोएँगे?”

सुनील मिश्र, “बिलकुल बराबर बोल रहीं हैं ये।” 

पुलिसवाले ने आग्रह किया, “हम लोगों को अपना काम कर लेने दीजिये।” 

प्रशांत ने भी पुलिसवाले का साथ दिया, “आप लोगों की सुरक्षा के लिए ही है।” 

तीनों सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे। बिल्डिंग निवासी नीचे ही रुके रहे। 

पुलिसवाले ने बताया, “तीसरी मंजिल पर रहती है। कुछ पड़ोसियों ने चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनीं। वह महिला गिर गई लगता है। पड़ोसियों ने फोन करके हम लोगों को बुला लिया।”

गौतम ने पूछा, “लोग नीचे क्यों जमा हो गए हैं?”

पुलिसवाले ने बताया, “उसकी चीत्कार सुननी चाहिए थी आप लोगों को। हम यहाँ आये तो वह ज़ोर-ज़ोर से विलाप कर रही थी। पूरा हंगामा खड़ा कर दिया था। उसकी पड़ोसिन बता रही थी जब से उसका पति कोरोनाग्रस्त हुआ है, तब से यह चीख़-चीख़ कर पूरी पागल हो गई है। चालीस-पैंतालीस वर्ष की है।”

तीनों तीसरी मंज़िल पर पहुँच गए। दूसरा पुलिसवाला फ़्लैट के बाहर ही खड़ा था। उसकी बग़ल में खड़े सुरक्षा गार्ड से पहले पुलिसवाले ने कहा, “तुम नीचे लोगों के साथ रहो।” 

गार्ड नीचे चला गया। पहले पुलिसवाले ने ऊपर से नीचे बरामदे की ओर देखा। किसी ने बरामदे के दरवाज़े के समक्ष दीपावली के उपलक्ष्य में रंगोली खींच रखी थी। ऊपर से देखने पर रंगोली आकर्षक और रंगभरी प्रतीत हो रही थी। बरामदे में खड़े लोग ऊपर उनकी ओर देख रहे थे। जब तक स्वास्थ्य अधिकारी नहीं आये थे, तब तक दोनों पुलिसवाले पड़ोसियों से बात करके मामले की तफ़्तीश कर रहे थे। 

पुलिसवालों ने मास्क और ग्लब्स पहन लिए। एक ने ज़ोर-ज़ोर से फ़्लैट का दरवाज़ा खटखटाया। जब अन्दर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो उसने दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा खुला हुआ था! 

जैसे ही चारों ने घर के अन्दर प्रवेश किया, एक लम्बा सा गलियारा सामने दिखा। उसकी दाहिनी ओर एक कमरा था, और गलियारे के अंत में बायीं ओर एक कमरा। गलियारे के अंत में ही दाहिनी तरफ़ रसोईघर था। गलियारे के अंत में एक अधेड़ उम्र की महिला, अपना गाउन पहने हुए खड़ी थी। किचन से आती हुई बल्ब की रोशनी उसपर पड़ रही थी। महिला तथा उनके मध्य, पच्चीस-तीस फ़ीट की दूरी आसानी से थी। 
पहले पुलिसवाले ने अधेड़ महिला से कहा, “हम लोग एम्बुलेंस लेकर आये हैं। आपको अस्पताल चलना पड़ेगा हमारे साथ।” 

दूसरे पुलिसवाले ने कहा, “इसका नाम पुनीता है। विपिन इसका पति है, जो अस्पताल में भर्ती है। पड़ोसिन से जानकारी मिली है।”

पहले पुलिसवाले ने पुनीता से कहा, “हम लोग पुलिसवाले हैं। कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।” 

चारों लोग घर का गलियारा पारकर पुनीता तक जैसे ही पहुँचे, पुनीता, गलियारे के बायें कमरे में घुस गई। गौतम ने कमरे की दीवार पर लगी लाइट का बटन ऑन किया। प्रकाश में अधेड़ उम्र की महिला सकपका गई। चारों लोग हतप्रभ होकर उसे देख रहे थे। पुनीता के गाउन पर ख़ून के दाग थे। पुनीता सर से पाँव तक काँप रही थी। जैसे ही गौतम ने उसे ले जाने के लिए उसकी बाँह पकड़नी चाही, पुनीता ने पीछे हटकर अलमारी का सहारा लिया। एक पुलिसवाले ने बढ़कर गौतम की जैसे ही मदद करनी चाही, पुनीता ने उसपर छलाँग लगा दी। 

पुलिसवाला गिर पड़ा। पुनीता ने अपने नाख़ूनों से उसको नोच दिया। दूसरे लोग झट से उसकी रक्षा के लिए दौड़े और पुनीता को अलग किया। प्रशांत ने पुनीता को कसकर पकड़े रखा। गौतम और दूसरे पुलिसवाले ने पहले पुलिसवाले को सहारा दिया, और उसे बिल्डिंग के बरामदे तक ले जाकर, सिक्योरिटी से दरवाज़ा खुलवाकर बाहर खड़ी एम्बुलेंस में बिठाना चाहा। लेकिन सिक्योरिटी गार्ड ने मना कर दिया!

गार्ड ने कहा, “सर इस पूरी बिल्डिंग को पहले से ही क्वारनटीन में रखा गया है। कोरोना रोगी की पत्नी से मिलने की पाबंदी है बिल्डिंग के सब लोगों को। इस पुलिसवाले का उस महिला से संपर्क हो गया है। अब इस पुलिसवाले को बाहर ले जायेंगे, तो मेरी नौकरी चली जायेगी और मुझे जेल में डाल देंगे।”

गौतम ने बिना हिचकिचाहट के गार्ड का समर्थन किया, “बिलकुल सही कह रहा है यह।” 

दूसरे पुलिसवाले ने गौतम से पूछा, “पर मेरे साथी अजय को कहाँ रखें?” 

गौतम ने पूछा, “और तुम्हारा नाम क्या है?”

दूसरे पुलिसवाले ने जवाब दिया, “शक्ति।” 

गौतम ने सलाह दी, “शक्ति, एक काम करते हैं। बरामदे में जो बिजली के मीटर हैं, उनके पीछे के स्थान पर अजय साहब को फ़िलहाल बिठाते हैं।” 

अजय बेहोश हो गया था। बरामदे में खड़े बिल्डिंग वाले डरे-सहमे से सभी को देख रहे थे। अजय की बाँह पर नोचने के निशान थे और वहाँ ख़ून की लकीरें थी। पुलिस पर हुआ हमला देख बिल्डिंग वाले सहम गए थे। 

नीलिमा ने हिम्मत करके पूछा, “क्या हुआ?”

गौतम ने उसको नज़रंदाज़ कर दिया और अपने वरिष्ठ अधिकारी को फोन लगाकर मामला समझाया और सलाह ली। 

वरिष्ठ अधिकारी, हरीश, ने गौतम को प्रोटोकॉल समझाया, “तुम अजय को सबसे दूर रखो फ़िलहाल। किसी को भी अजय के पास मत जाने दो। तुमने शक्ति को कैसे अजय को हाथ लगाने दिया?”

गौतम ने बताया, “हरीश सर, शक्ति ने भी मास्क और ग्लब्स पहने हुए हैं, और अजय को सिर्फ़ उस पागल औरत ने नोचा है और कुछ नहीं। उस औरत को कोरोना नहीं है, उसका पति रोगी है, अस्पताल में है।” 

हरीश ने चेतावनी दी, “बिलकुल रिस्क नहीं ले सकते। नहीं तो पूरी ज़िम्मेदारी हमारे सर आ जाएगी। उस बिल्डिंग से किसी को भी बाहर मत निकलने दो। मैं पूरी बिल्डिंग को अच्छे से सील करने का तुरंत प्रबंध करता हूँ। मैं एक और एम्बुलेंस भिजवाता हूँ जो अजय को अस्पताल ले आएगी। तुम लोग उसे लेकर मत आना। तुम दोनों वहीं रहो। और तुरंत महिला पुनीता का स्वाब सैंपल भी ले लो।” 

सात मिनट ही मुश्किल से बीते होंगे, कि बिल्डिंग के बाहर एक दस्ता पहुँच गया जिसने बिल्डिंग के चारों ओर उसी प्रकार का आवरण डाल दिया जो बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन के समय डाला जाता है। पता नहीं उस दस्ते में से किसने एक बड़ा मज़बूत ताला बिल्डिंग के लोहे की ग्रिल वाले गेट को लगा दिया। सबका ध्यान चारों तरफ़ मची अफ़रातफ़री में था, इसीलिए गेट की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। जब तक दस्ता आया, तब तक अजय को सुरक्षित रखने, उसे पानी पिलाने तथा लिटाकर रखने का प्रबंध हो गया। 

अचानक सबका ध्यान बाहर से आ रही लाउडस्पीकर की आवाज़ की ओर गया। लाउडस्पीकर से कोई घोषणा कर रहा था, “कृपया ध्यान दीजिये। इस बिल्डिंग की घेराबंदी, जन स्वास्थ्य विभाग के आदेश से की गई है। यह आप की सुरक्षा के लिए ही है। आप लोगों की सुरक्षा के इंतज़ाम किये जा रहे हैं।” 

नखिलेश का ध्यान बिल्डिंग के दरवाज़े पर लगे ताले की तरफ़ गया। उसने ज़ोर-ज़ोर से ग्रिल को हिलाया और चिल्लाया, “ये ताला क्यों लगा दिया?” जब उसे कोई उत्तर नहीं मिला, तो उसने गौतम से पूछा, “क्या हो रहा है!” 

गौतम ख़ुद हैरान था, “मुझे नहीं मालूम! मैं तो ख़ुद एम्बुलेंस की प्रतीक्षा कर रहा हूँ!”

बिल्डिंग वालों में उमड़ता रोष देखकर शक्ति ने ज़ोर से उनसे कहा, “शांत हो जाओ आप सब लोग!” 

शक्ति ने अपने बॉस को फोन किया, जो सो रहा था, लेकिन पूरा क़िस्सा सुनकर जिसकी आँख एकदम से पूरी खुल गई। उसने शक्ति को आश्वासन दिया, “मैं थोड़ी ही देर में तहक़ीक़ात करके बताता हूँ क्योंकि पुलिस कमिश्नर को फोन करना पड़ेगा। तब तक तुम सब बरामदे में ही रहो।”

बिल्डिंग वालों में एक मेडिकल स्टाफ़ का व्यक्ति भी था। उसने शक्ति को ज़ोर से कहा, “आपके अजय साहब शॉक में जा रहे हैं। उनको शीघ्र अस्पताल भेजने का प्रबंध कीजिये।”

शक्ति ने फिर अधिकारपूर्वक कहा, “देखिये, जब तक बाहर लोग इंतज़ाम कर रहे हैं, तब तक आप लोग शांति बनाए रखिये।” 

एक लम्बे क़द के चश्मा पहने हुए व्यक्ति, भट्टाचार्य बाबू, ने अपना मोबाइल दिखाते हुए बिल्डिंग वालों से कहा, “पड़ोस की बिल्डिंग वाले खिड़की से हमारा तमाशा देख रहे हैं। पड़ोसवालों ने तो अच्छे से दिवाली मनाई है, और हमारे यहाँ बाहर पुलिस भी आ गई है। पूरी गली को दोनों तरफ़ से बंद कर दिया है। गली के दोनों ओर मोटरसाइकिल पर पुलिस खड़ी है।” 

बिल्डिंग का एक युवा दिखने वाला रहवासी, अंजन, व्यग्र हो रहा था। अपनी व्यग्रता में वह जैसे कोई क़दम उठाने के लिए तत्पर हो, कि अचानक ऊपर से फिर से चीख़ने की आवाज़ें आने लगीं। 

शक्ति और गौतम ने मुँह उठाकर देखा। प्रशांत ऊपर ही पुनीता के साथ था। प्रशांत को वे दोनों इस अराजकता के माहौल में भूल ही गए थे। महिला के साथ प्रशांत को अकेला छोड़ देना ख़तरे से ख़ाली नहीं था। दोनों सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागे। 

उन्होंने पुनीता के घर में प्रवेश किया। पुनीता गलियारे के अंत में खड़ी होकर ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रही थी और साँसें भर रही थी। कमरे से और किचन से आती बल्ब की रोशनी पड़ने से उसके दोनों ओर उसकी प्रतिछाया प्रतिबिंबित हो रही थी। दोनों को अपने घर में घुसते देख पुनीता कुपित हो गयी और उन्मादित होकर उनपर टूट पड़ी। 

शक्ति ने आव देखा न ताव, फ़ौरन अपना डंडा निकाला और पुनीता की पीठ पर वार करने लगा। वार से जैसे ही पुनीता पीछे हटी, तो उसकी टाँगों पर ज़ोर से दो डंडे मारे जिससे लड़खड़़कर पुनीता घुटनों के बल गिर गई। पुनीता ने घुटनों पर बैठे ही शक्ति के हाथ से डंडा छीन लिया और शक्ति पर प्रहार किया। शक्ति ने दोनों हाथों से अपना बचाव किया, और गौतम ने अपने दोनों हाथों से पुनीता के पीछे से उसे पेट के बल ज़ोर से पकड़ लिया। गौतम ने पुनीता को ज़ोरदार झटके से गोल घुमाया, जिससे उसका सिर दीवार से जा टकराया। उसके माथे से ख़ून निकलने लगा और वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई। 

गौतम और शक्ति, दोनों ने अपनी साँसें भरीं। शक्ति ने पुनीता को नीचे गिरे देखा तो गौतम से पूछा, “कहीं मर तो नहीं गई?”

गौतम ने पुनीता की नब्ज़ टटोली, “नहीं, ज़िंदा है।” उसने पुनीता का स्वाब सैंपल उसके नाक से ले लिया, और स्वाब को अपने छोटे सैंपल पाउच में सील करके अपनी जेब में रख दिया। 

शक्ति ने कहा, “देखा, सब लोग हमें गाली देते हैं कि बेवज़ह हम लोगों को डंडों से पीटते हैं। तुमने तो देखा, मेरे पास कोई चारा नहीं था।” 

गौतम भी सहमत था, “बिलकुल। तुमने सिर्फ़ अपने बचाव में इसको डंडे से पीटा।”

शक्ति ने चिंता प्रकट की, “इसको जब अस्पताल लेकर जायेंगे, तो वहाँ की नर्सें और डॉक्टर चोट के निशान देखेंगे। फिर मेरी शिकायत करेंगे वरिष्ठ अफसरों से।”

गौतम ने हौंसला दिया, “तुम इस बात की चिंता मत करो। मैं समझा दूँगा उन्हें। वैसे भी डंडे की मार से नहीं, सर पर चोट की वज़ह से यह बेहोश हो गई है।” 

शक्ति चिंतित था, “वे तो यह कहेंगे कि मैंने डंडे से सर पर मारा तो ये बेहोश हो गई होगी।”

गौतम ने सलाह दी, “दीवार पर इसके सर का ख़ून है। उसका फोटो ले लो।” 

शक्ति ने अपने मोबाइल से फोटो खींच लिए। फोटो खींचते हुए उसने कहा, “अगर पहले से मालूम होता कि महिला है, तो महिला पुलिस को साथ में ले आने के लिए अजय साहब को कहता।”

घर के गलियारे के अंत पर जो बायीं ओर कमरा था, जिसमें प्रशांत ने पुनीता को पकड़कर रखा था, उसमें प्रशांत अलमारी के सहारे नीचे बैठा था, जैसे उसकी पूरी शक्ति पुनीता को क़ाबू रखने में क्षीण हो गई हो। उसका पूरा दम निकल गया था और इसी बात का फ़ायदा उठाकर पुनीता उसकी पकड़ से छूट गई थी। पुनीता ने उसपर ज़ोर से प्रहार भी किया था, जिससे प्रशांत के कंधे की हड्डी हिल गयी थी। शक्ति और गौतम ने प्रशांत को सहारा देकर उठाया और नीचे बरामदे तक ले आए। 

गौतम ने शक्ति से कहा, “तुम इन दोनों, अजय साहब और प्रशांत, के साथ रहो। इनका ख़याल रखो। मैं बाहर निकलने का रास्ता देखता हूँ।” 

शक्ति ने कहा, “मेरे बॉस का ऑर्डर है कि हम सब लोग इसी बरामदे में रहें।” 

गौतम ने कहा, “इन दोनों की हालत नाज़ुक है। इन हालातों में ऐसे आदेशों का पालन नहीं किया जा सकता। उनकी सुरक्षा देखना हमारा कर्तव्य है, न कि ऐसे किसी आदमी के आदेश का पालन करना जिसे यहाँ की वास्तविक स्थिति का ज्ञान ही नहीं है।” 

सत्तर साल का बूढ़ा व्यक्ति उनकी बात सुन रहा था। उसने गौतम का समर्थन किया, “बिलकुल सही है। तुम्हारे बॉस को कोई अधिकार नहीं है हमको यहाँ रहने के आर्डर देने का।” 

नखिलेश परेशान था। उसने सुनील मिश्र से कहा, “स्थिति नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। दो आदमी ज़ख़्मी हैं यहाँ। दो हिंसक अपराध घटित हो चुके हैं पिछले एक घंटे के भीतर। इन दोनों को इसी वक़्त अस्पताल में ले जाना चाहिए। लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर रखी है। और बिल्डिंग से बाहर भी नहीं जाने दे रहे हैं।" 

सुनील मिश्र, नखिलेश से सहमत हुआ, “और हमें बेवकूफ़ समझ रखा है जो किसी भी प्रकार का स्पष्टीकरण भी नहीं दे रहे हैं।”            

गौतम बोला, “इसलिए मैं किसी और निकास मार्ग को ढूँढ़ रहा हूँ।” 

भट्टाचार्य बाबू ने बताया, “मैं तीन साल से इस बिल्डिंग में रह रहा हूँ, जबसे यह बिल्डिंग बनी है। इसमें और कोई निकास मार्ग नहीं है। आने-जाने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है, यह ग्रिल वाला दरवाज़ा।”

गौतम अपने आप को किसी फंदे में फँसा हुआ महसूस करने लगा। आख़िर उसको भी इस बिल्डिंग में क़ैद रखने की क्या ज़रूरत थी? वह स्वयं एक स्वास्थ्य अधिकारी था। लेकिन बाहर खड़े, सिर्फ़ नियमों का पालन करने वाले, लोगों से उलझने में कोई मतलब नहीं दिखा उसे। फिर वह बात भी किससे करता? पता नहीं किसके आदेश से हो रहा था यह सब? 

जो युवक व्यग्र हो रहा था, अंजन, अचानक उसने नीलिमा से कहा, “मुझे दवाई चाहिए। मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है।”

नीलिमा ने बताया, “दवा घर पर नहीं है?”

अंजन ने कहा, “ऐसी स्थितियों में मुझे तनाव आ जाता है और साँस फूल जाती है।”

नीलिमा उसकी उपेक्षा कर पति की ओर चली आई। 

अचानक फिर से लाउडस्पीकर से आवाज़ आई, “आप कृपया हमारे साथ सहयोग कीजिये और निर्देशों का पालन कीजिये। शांति बनाए रखिये। बिल्डिंग से बाहर निकलने की कोशिश न करें।”

अंजन को पसीना आ रहा था। अपने रुमाल से वह मुँह पर अत्याधिक मात्रा में आए पसीने को पोंछ रहा था। लाउडस्पीकर की घोषणा सुन उसके दिल की धड़कनें और भी ज़्यादा बढ़ गई। उत्तेजना से उसका शरीर काँपने लगा। 

लाउडस्पीकर की घोषणा जारी रही, “थोड़ी ही देर में एक स्वास्थ्य अधिकारी बिल्डिंग में प्रवेश करेगा। कृपया उसका सहयोग कीजिये। धन्यवाद।”   

नीलिमा हताश थी, “कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि हम लोगों को क़ैदियों समान बंद क्यों किया है? ताला लगाने की क्या ज़रूरत थी? यह पूरी बिल्डिंग तो वैसे ही क्वारनटीन में थी, बेवकूफ़ विपिन के कोरोना केस के कारण।”

सत्तर साल के बूढ़े व्यक्ति की पत्नी ने सहानुभूति से कहा, “विपिन बेचारे को वायरस लग गया है तो इसमें उसका कोई क़ुसूर नहीं है। वो क्यों बेवकूफ़ है? उसे बेवकूफ़ मत कहो। उसे भी तो किसी और के कारण ही वायरस लगा है।” 

नीलिमा, बुढ़िया की बात से उत्तेजित हो गई, “हाँ, लेकिन हम सभी को तो उसके कारण ही कैसे-कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं। भिखारियों की तरह सुबह यहाँ खाना देकर जाते हैं। जैसे क़ैदखाने में क़ैदी रहते हैं, वैसा ही है।” 

बच्ची की माँ ने शक्ति से पूछा, “स्वास्थ्य अधिकारी आ रहा है, इस बात का क्या मतलब हुआ? फिर ये दोनों कौन हैं?” उसने गौतम और घायल हुए प्रशांत की ओर इशारा किया। 

गौतम ने उसे समझाया, “कोरोना को लेकर वे गंभीरता बरत रहे हैं। इसीलिए बड़े अफ़सर को भेज रहे हैं। यही कार्यविधि है।” 

बिल्डिंग के मेडिकल स्टाफ़ का निवासी, जिसने शक्ति को अजय के शॉक में जाने के ख़तरे से अवगत कराया था, प्रशांत का निरीक्षण कर आया और प्रशांत से कुछ पूछकर आया। मेडिकल स्टाफ़ के इस व्यक्ति का नाम शिरीष था। शिरीष को मेडिकल की जानकारी थी और व्यक्ति का ऊपरी तौर पर निरीक्षण कर, फिजियोथेरेपी का प्रशिक्षण था। उसने गौतम से कहा, “मैंने प्रशांत का ऊपरी तौर पर निरीक्षण किया है। उसकी भी हालत ठीक नहीं है। उसको भी शीघ्र ही अस्पताल ले जाना चाहिए। केवल उसका कंधा ही अपने जोड़ से नहीं उखड़ गया है, बल्कि कंधे की जगह की मांसपेशियाँ भी खिंच गई हैं। उस स्थान पर सूजन हो गई है और उसे तेज़ दर्द हो रहा है। हाथ सुन्न हो गया है और झुनझुनी हो रही है। मांसपेशियों में ऐंठन भी आ रही है। उन दोनों को यहाँ से निकालना ही पड़ेगा।”

शक्ति ध्यान दिलाया, “इस लोहे की ग्रिल वाले दरवाज़े से तो बाहर नहीं जा सकते हैं।” 

भट्टाचार्य बाबू ने अपनी चिंता प्रकट की, “कुछ तो गड़बड़ है। मैंने फिर अपने पड़ोस की बिल्डिंग वाले मित्र को फोन लगाने की कोशिश की, लेकिन अब फोन नहीं लग रहा है। हर तरह से हमारा बाहरी संपर्क काट रहे हैं ये लोग।”

शक्ति ने अपनी हैरानी व्यक्त की, “मुझे भी नहीं मालूम ये ऐसा क्यों कर रहे हैं। कुछ ज़्यादा ही गंभीरता दिखा रहे हैं।”

शिरीष ने पूछा, “पहली मंज़िल के किसी घर की बालकनी से पाइप के सहारे उतरें?”

शक्ति ने रोका, “नहीं। बहुत ख़तरनाक सोच है। कोई गिर गया तो मुझ पर आ जाएगा।”

गौतम ने प्रशांत और अजय की ओर इशारा किया, “और वैसे भी ये दोनों पाइप से नीचे उतरने की हालत में ही नहीं हैं।” 

शक्ति ने दोहरा दिया, “वैसे भी हमें यहीं बरामदे में रहने के लिए कहा है।” उसको अपने बॉस के आदेश के पालन की चिंता थी। 

सुनील मिश्र ने अपना मोबाइल निकाला और वीडियो रिकॉर्ड करने लगा। उसने बिल्डिंग के ताले लगे हुए दरवाज़े का वीडियो लिया, बरामदे में मौजूद निवासियों का, दोनों घायलों का, आई हुई पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों का। 

एक बार फिर लाउडस्पीकर से घोषणा हुई, “कृपया बिल्डिंग के अन्दर मौजूद पुलिसवालों और स्वास्थ्य अधिकारियों की बातों को मानें। बिल्डिंग से बाहर निकलने की कोशिश न करें। हमारा सहयोग करें। आपकी ही भलाई के लिए है यह सब।”

शिरीष को याद आया, “मेरे पास घर में बैंडेज और दर्दनिवारक गोलियाँ हैं। प्रशांत के लिए लेकर आता हूँ तथा डेटॉल एवं सोफ्रामाएसिन क्रीम भी लाता हूँ अजय के लिए। वह बेहोश पड़ा है। कभी भी शॉक में जा सकता है। यह सब लेकर मैं तुरंत वापिस आता हूँ।” शिरीष अपने घर चला गया।  

शक्ति ने अपने आसपास देखा। बिल्डिंग के रहवासी अब वाक़ई डरे हुए लग रहे थे। वे अपने घरों में वापिस जाने हेतु चिंतित थे। लेकिन बरामदे में रहकर यह भी देखना था कि यह तमाशा कहाँ तक बढ़ता है। बिल्डिंग के बाहर क्या चल रहा है, यह भी उन्हें जिज्ञासा थी। 

थोड़ी ही देर में मेडिकल स्टाफ़ शिरीष अपने घर से सभी दवाइयाँ लेकर आया। डेटॉल से अजय की बाहें पोछकर, उनपर सोफ्रामाएसिन क्रीम लगाकर बैंडेज बाँध दिया। प्रशांत को दर्द के लिए पेनकिलर गोलियाँ दे दी। वैसे तो शिरीष इंजेक्शन देने व ब्लड प्रेशर लेने का भी काम करता था। प्राथमिक चिकित्सा उसे अच्छे से आती थी, इसीलिए वह समझ गया कि दोनों, अजय और प्रशांत के घाव गंभीर थे। 

जिस समय विपिन को कोरोना रोगी के रूप में अस्पताल में भर्ती किया गया था, उस समय तो पुनीता के कोरोना परीक्षण में कोरोना नहीं पाया गया था, लेकिन हो सकता है कि संक्रमण बाद में शरीर में फैलना शुरू हुआ हो। अगर ऐसा हुआ तो उसके नोचने और उससे संपर्क में आने के कारण अजय और प्रशांत, दोनों के कोरोना रोगी होने का पूरा संदेह था।    

शिरीष ने गौतम से कहा, “पुनीता, मानसिक रुग्णता का केस है। इस पूरी कड़ी से साफ़ ज़ाहिर है कि वह मनोरोगी है। उसको बिल्डिंग में नहीं रहने दिया जा सकता है।”

भट्टाचार्य बाबू ने भी स्वीकार किया, “मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। जैसे ही उसका पति अस्पताल से ठीक होकर वापिस आए, दोनों को इस बिल्डिंग को छोड़ना पड़ेगा।”

शिरीष आश्चर्यचकित था, “दो हट्टे-कट्टे आदमियों को एक अकेली महिला घायल कर दे, यह चिंता का विषय है।”

भट्टाचार्य बाबू ने कहा, “जिस बड़े डॉक्टर या स्वास्थ्य अधिकारी को यहाँ भेजा जा रहा है, काश वह अपने साथ कुछ इंजेक्शन वग़ैरह लेकर आये ताकि एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाने के पहले इन दोनों को इंजेक्शन लगाकर होश में रखा जा सके। अन्यथा ये सचेत होकर पुन: अचेत हो रहे हैं।” 

शिरीष ने पूछा, “कौन सी इंजेक्शन कह रहे हैं आप?”

भट्टाचार्य बाबू ने ऐसे ही कह दिया था। उसे कोई मेडिकल ज्ञान नहीं था कि इंजेक्शन का नाम बता सके। वह चुप हो गया। 

सुनील मिश्र ने उनके वार्तालाप में प्रवेश किया, “कैसे क़ैद करके रख दिया है! बाहर पुलिस खड़ी है पहरेदारी के लिए जैसे हम लोग कोई अपराधी हैं। अपनी ही बिल्डिंग से बाहर नहीं जा सकते हैं, और अपने ही घर में अन्दर जाने से मना कर रखा है!”   

शिरीष अभी भी चिंतित था, “इन दोनों को अस्पताल ले जाना बेहद ज़रूरी है।” 
अंजन, जो युवक व्यग्र हो रहा था और तनाव में आकर जिसकी साँसें फूल रही थी, शिरीष के पास आया और उससे विनति की, “मुझे तनाव के कारण साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है। कोई दवा है आपके पास फ़िलहाल?”

शिरीष ने थोड़ा सोचा, “साँस की तकलीफ़ के लिए तो कुछ नहीं है मेरे पास। अस्थमा के मरीज़ तो नहीं हो तुम? अस्थमा इनहेलर है क्या?”

अंजन ने कहा, “नहीं, मुझे अस्थमा नहीं है।” 

शिरीष ने बताया, “तो फिर निश्चित निमोनोटिस है। फेफड़ों के सूजन से हो जाता है। इस सूजन से ख़ून की धमनियों तक ऑक्सीजन ठीक से पहुँच नहीं पाती है। इससे साँस लेने में तकलीफ़ हो जाती है। तुमने बहुत ज़्यादा सरदर्द की दवाइयाँ या पेनकिलर गोलियाँ तो नहीं ली हैं?”

अंजन ने आश्चर्य से जवाब दिया, “नहीं, बिलकुल नहीं ली हैं!” 

शिरीष ने फिर पूछा, “कोई एंटीबायोटिक लिए हैं?”

अंजन ने उत्तर दिया, “नहीं!”

शिरीष ने कहा, “तुम्हें छाती का एक्स-रे तुरंत निकाल लेना चाहिए।” 

शिरीष को लगा कि इस ज्वलंत माहौल में व्यर्थ ही किसी को अपनी अमूल्य सलाह मुफ़्त में देकर अपना समय बर्बाद कर रहा है। उसने दूसरी ओर रुख कर लिया। 

बिल्डिंग के रहवासियों पर मानसिक असर होने लगा था। पूरे प्रकरण का स्वरूप गंभीर हो गया था। 

सुनील मिश्र धमकियों पर उतर आया, “आज का दिन बीत जाने दो, कल ऐसी शिकायत दर्ज करूँगा इन बाहर वालों की कि बात को ऊपर तक ले जाऊँगा! अख़बारों में छपवा दूँगा! मैंने वीडियो भी निकाल लिए हैं यहाँ की हालातों के। टीवी चैनलों तक भिजवा दूँगा ये वीडियो कि देखिये कैसा बर्ताव किया है हमारे साथ! ये वीडियो यूट्यूब पर भी अपलोड कर दूँगा! क्या बदसुलूकी है! जो कोरोना का रोगी था, उसको लेकर चले गए हैं न। उसकी पत्नी को अगर होता, तो उसे भी लेकर चले जाते।”

भट्टाचार्य बाबू ने प्रश्न किया, “लेकिन सोचने की बात है कि उसकी बीवी पागल क्यों हो गई? हर कोरोना रोगी के घरवाले यूँ ही पागल तो नहीं हो जाते हैं।” 

सुनील मिश्र ने कहा, “उसे आघात लगा होगा। क्या मालूम क्या हुआ!”

भट्टाचार्य बाबू ने बात आगे बढ़ाई, “आघात तो किसी के मरने पर या सदमा पहुँचाने वाली ख़बर सुनकर लगता है। कोरोना से तो इसका पति एक सप्ताह में ठीक होकर, थोड़े दिन आइसोलेशन में रहकर वापिस भी आ जाएगा।” 

सुनील मिश्र ने कहा, “जब वह वापिस आएगा, तो अपनी पत्नी को पागल हालत में मानसिक रोगियों के  अस्पताल में पाएगा।” 

भट्टाचार्य बाबू ने जैसे सुनील मिश्र की बात सुनी ही नहीं, “फिर भी यह बात कुछ समझ में नहीं आई कि अच्छी भली औरत अचानक कैसे पागल हो गई। हमारी आँखों के सामने ही विक्षिप्त हो गई। कोरोना के क्वारनटीन को न सह पाने के कारण कोई पागल होकर अपना माथा पीटने लगे या सर फोड़ने लगे, तो समझ में भी आता है। लेकिन पति के कोरोना रोगी हो जाने से किसी के पागल होने की बात गले से नहीं उतर रही है।” 

अचानक लाउडस्पीकर से घोषणा हुई, “स्वास्थ्य अधिकारी गौतम कृपया बिल्डिंग के गेट पर आयें।”

इस घोषणा को सुनकर सब लोगों में चुप्पी सध गई। गौतम बिल्डिंग के गेट तक गया, जहाँ गेट के बाहर लगे कंस्ट्रक्शन मटेरियल के कपड़े को हटाकर किसी ने उससे कुछ कहा और फिर वापिस चला गया। 

गौतम ने आकर बिल्डिंग के निवासियों को संबोधित किया, “वे कह रहे हैं कि जिस बड़े स्वास्थ्य अधिकारी को भेजा जाने वाला था, वह पहुँचनेवाला है।”

सत्तर साल की बुढ़िया ने पूछा, “बड़ा स्वास्थ्य अधिकारी अन्दर आएगा?”

गौतम ने उत्तर दिया, “हाँ। बाहर के लोगों को और स्वास्थ्य विभाग को यह यक़ीन है कि इस बिल्डिंग के अन्दर कहीं कोरोना का संक्रमण या कोरोना से संक्रमित व्यक्ति या वस्तु मौजूद है।” 

गौतम का इतना कहना ही था कि बिल्डिंग वालों में शोर मच गया। 

सत्तर साल की बूढ़ा हताश था, “हे भगवान! हम वृद्धों का क्या होगा?”

सुनील मिश्र ने भी कहा, “बस यही बचा था देखने को!”

भट्टाचार्य बाबू ने तो बात ही ख़त्म कर दी, “हो गया काम तमाम।”

गौतम ने ढाढ़स बँधाया, “इतना चिंतित होने की बात नहीं है। बड़ा अधिकारी आकर, जितने भी लोग यहाँ मौजूद हैं, सबका सैंपल लेगा। परीक्षण और विश्लेषण करने के लिए। ताकि कोई शंका न रह जाए।”

नखिलेश ने पूछा, “सिर्फ़ बिल्डिंग में रहने वाले, या आप लोग भी जो बाहर से आये हैं?”

गौतम ने कहा, “सबका सैंपल लेंगे। आप सब लोगों का, मेरा, शक्ति का, प्रशांत का, अजय का।” 

नखिलेश ने पूछा, “उस विक्षिप्त महिला का क्या होगा जो ऊपर है?”

गौतम ने बताया, “उसका सैंपल मैं ले चुका हूँ। मेरी जेब में है।” 

नीलिमा ने पूछा, “सैंपल लेने के बाद क्या होगा?”

गौतम ने बताया, “उसका परीक्षण करेंगे। सब ठीक रहा तो क्वारनटीन हटा देंगे और सब लोग बिल्डिंग से बाहर जा सकते हैं।”

शक्ति ने विनत किया, “कृपया सब लोग सहयोग कीजिये। पहले यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि बिल्डिंग के सभी रहवासी यहाँ बरामदे में मौजूद हैं।”

भट्टाचार्य बाबू ने गणना की, सभी मौजूद थे। दो-चार फ़्लैट हमेशा से बंद थे। उनके मालिक विदेश में रहते थे और या तो घर किराए पर देना नहीं चाहते थे, या किराएदार मिला नहीं था। 

अचानक फिर से लाउडस्पीकर से घोषणा हुई, “कृपया सब लोग बिल्डिंग के गेट से दूर हो जाएँ।” सब लोग लोहे के ग्रिल के गेट से दूरी पर खड़े हो गए। बाहर भागकर जाना व्यर्थ था। बाहर कड़ी व्यवस्था थी। भागकर जाने का मतलब क़ानून का उल्लंघन करना होता और संभवतः जेल की सज़ा। 

किसी ने दरवाज़े के बाहर लगे बड़े ताले को खोला और एक बड़े स्वास्थ्य अधिकारी ने अपने पूरे पीपीई सूट में प्रवेश किया। सूट के ऊपर उसने ऑक्सीजन लेने का विशेष मास्क भी पहन रखा था। ज़ाहिर था कि वो किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहता था। अन्दर घुसते ही सबसे पहले उसने देखा कि किसी भी रहवासी ने मास्क और ग्लब्स नहीं पहने थे। अधिकतर लोग नींद से उठकर सीधे नीचे आ गए थे। शायद इस बात का पहले से उस बड़े स्वास्थ्य अधिकारी, राहुल लखोटिया, को अंदेशा था। इसीलिए आते ही उसने एक थैली शक्ति को पकड़ा दी जिसमें सबके लिए मास्क और ग्लब्स थे। सबने तुरंत मास्क और ग्लब्स पहन लिए। राहुल लखोटिया का सुरक्षा कवच देखकर सबकी समझ में आ गया कि मामला वाक़ई बहुत गंभीर है। 

सुनील मिश्र ने राहुल लखोटिया से पूछा, “हम लोगों को जो बंद किया गया है, वह सब उस महिला पुनीता की वज़ह से है या कोई और वज़ह है?” 

भट्टाचार्य बाबू ने कहा, “अगर उसके कारण ही है, तो भी थोड़ा ठीक है। किसी और के कारण नहीं होना चाहिए।”

नखिलेश ने प्रशांत और अजय की तरफ़ इशारा किया, “लेकिन फिर भी, इन दोनों को तो घायल कर ही दिया है उसने।” 

राहुल लखोटिया ने गौतम और शक्ति को आदेश दिया, “तुम दोनों जाकर उस स्त्री को लेकर आओ।” 

गौतम और शक्ति ऊपर गए। बेहोश पड़ी औरत को उठाकर लाने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने पुनीता के घर में प्रवेश किया, पुनीता को उस स्थान से नदारद पाया जहाँ वो बेहोश पड़ी हुई थी। शक्ति और गौतम ने एक दूसरे को देखा, फिर सावधानी से पूरे घर का मुआयना किया। सहमते हुए, शक्ति और गौतम पुन: अंतिम कमरे में पहुँचे। पुनीता वहाँ बैठ मानों उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। 

जैसे ही शक्ति कमरे में दाख़िल हुआ, पुनीता एक दर्दनाक चीख़ के साथ ज़ोर से उसकी ओर झपटी। 

चीख़ सुनकर शक्ति के शरीर में मौजूद सारे अंजर-पंजर ढीले हो गए। एक शीत लहर उसके पूरे शरीर में सर से पाँव तक दौड़ने लगी। अनायास ही उसके हाथ पैर काँपने लगे, और वो उलटे पैर घर के बाहर की ओर भागा। 

गौतम भी दर्दनाक चीत्कार से हिल गया था। वह भी शक्ति के साथ भागा। दोनों घर के बाहर निकल, सीढ़ियों से नीचे भागते हुए गए। पुनीता ने उनका पीछा नहीं किया, और घर का दरवाज़ा बंद कर दिया। जैसे इस घर पर सिर्फ़ उसका अधिकार हो, और कोई भी घर में अनाधिकार प्रवेश न कर सकता हो। 

दोनों को डर से काँपता नीचे की ओर भागता देख, राहुल माजरे को समझ गया। जैसे ही गौतम नीचे आया, राहुल ने दरवाज़े पर जाकर पुलिस के एक दस्ते को बुला लिया। पुलिस का बड़ा दस्ता पूरे सूट और हेलमेट में बटान लिए हुए बिल्डिंग के अन्दर आया, और सीढ़ियों से ऊपर गया। दस्ते को दरवाज़ा तोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ी। दरवाज़ा बंद था, लेकिन अन्दर से कुंडी नहीं लगी थी, इसीलिए धक्का देने से ही खुल गया।

थोड़ी ही देर में, दस्ते ने पुनीता पर क़ाबू पा लिया और उसको सीढ़ियों से नीचे की ओर ले आने लगे। ज़ोर से चिल्लाती हुई और क़ैद में छटपटाती हुई पुनीता जैसे ही बरामदे में पहुँची, राहुल ने उसे एक इंजेक्शन लगा अचेत कर दिया। दस्ते वालों ने उसको बिल्डिंग से बाहर एक विशेष एम्बुलेंस में लिटा दिया। 

राहुल ने बिल्डिंग वासियों को इकठ्ठा किया और समझाया, “इंजेक्शन के बाद अब कई घंटों तक उसे होश नहीं आएगा। अब सीधा उसे अस्पताल में ले जायेंगे।”

भट्टाचार्य बाबू ने पूछा, “ये तो मानसिक रोगी है। इसको पागलखाने में लेकर जाना चाहिए आपको। आप इसको अस्पताल क्यों लेकर जा रहे हैं?”

प्रश्न वाजिब था। 

राहुल ने कहा, “नहीं। बात यह नहीं है। वह पागल नहीं है।” 

सब लोग इस वाक्य को सुनकर चौंक गए। गौतम भी राहुल की ओर ग़ौर से देखने लगा। उसने और शक्ति ने प्रत्यक्ष रूप से उस महिला के पागलपन का अनुभव किया था। ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो महिला पागल न हो। 

गौतम ने कहा, “आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? मैंने और मेरे मित्र प्रशांत ने, और इन दोनों पुलिसवालों ने इस स्त्री का पागलपन अपनी आँखों से देखा है। बिल्डिंग में रहनेवाले इन सब लोगों ने उसकी पागलों जैसे चीख़ने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनी हैं।”

राहुल ने शांति से कहा, “जब इसका पति कोरोना का रोगी घोषित किया गया था, तो अस्पताल में दाख़िले के बाद, पुनीता का भी परीक्षण किया गया था। उस समय इसको कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं था, इसीलिए इसे घर भेज दिया था और घर में ही अलगाव में रहने की सख़्त हिदायत दे दी गई थी।”

भट्टाचार्य बाबू ने दलील दी, “इसको यहाँ वापिस भेजना ही तो ग़लत था। किसी सरकारी अलगाव केंद्र में रखते जहाँ औरों को भी अलगाव में रखा गया है।”

राहुल ने उसका उत्तर दिया, “उससे कोई फ़ायदा नहीं होता। इस महिला के पति विपिन का इस पूरी बिल्डिंग के साथ संपर्क था। बिल्डिंग में कहीं भी उसके कारण कोरोना के कण पाए जाने का अनुमान था। इसीलिए पूरी बिल्डिंग के निवासियों को ही लेकर जाना पड़ता सरकारी अलगाव केंद्र में। उस समय यह सोचा गया कि इससे तो अच्छा यही है कि बिल्डिंग को क्वारनटीन करके बिल्डिंग वासियों को यहीं रखा जाए। बिल्डिंग वासियों को भी सुविधा हो जायेगी अपने ही घर में रहने की। आप लोग नहीं जानते हैं कि सरकारी अलगाव केंद्र में रखे गए लोग कैसी बेचैनी का सामना कर रहे हैं। आप लोग तो ख़ुशक़िस्मत हो।”

भट्टाचार्य बाबू बोले, “बात तो आपकी ठीक है। उस समय हमारा सैंपल यहीं इसी बिल्डिंग में लिया गया था।” 

राहुल ने कहना जारी रखा, “इसके पति विपिन के कोरोना पॉजिटिव होने से इस बिल्डिंग को क्वारनटीन में रख दिया गया था और पुलिस की सख़्त हिदायत थी कि कोई भी इस बिल्डिंग से कम से कम दो हफ़्तों तक अन्दर से बाहर न आ सके। अगर दो हफ़्तों तक किसी को वायरस का संक्रमण नहीं होता है, तो क्वारनटीन को हटाने के निर्देश थे।” 

सुनील मिश्र उकता गया, “ये बातें तो हमको भी मालूम हैं।”

राहुल ने सुनील मिश्र की ओर देखते हुए कहा, “लेकिन जो बात आप लोगों को मालूम नहीं है, वह यह है कि पुनीता, बहुत जल्द घबराहट का शिकार हो जाती थी। पुनीता के परीक्षण में कोरोना नेगेटिव पाए जाने के बाद जब उसको वापिस घर भेज दिया गया, तो मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ कि आमतौर पर अगर एक भी सदस्य इस वायरस का शिकार होता है तो घर के सब सदस्य कोरोना से पीड़ित हो जाते हैं। कोरोना की संक्रमण शक्ति बहुत ही ताक़तवर है। इसीलिए मैंने, परीक्षण के समय नाक के स्वाब के साथ-साथ ख़ून के लिए हुए सैंपल से इसकी सम्पूर्ण जाँच कराई थी। इसके शरीर में मौजूद और कौन-कौन से रासायनिक तत्व हैं, इसकी जाँच कराई थी। इसके पारिवारिक डॉक्टर से भी बात की, तो उसने बताया कि घबराहट को दूर करने के लिए उस पारिवारिक डॉक्टर ने पुनीता को एटीवैन नामक गोली खाने के लिए दी थी। लेकिन पति को कोरोना होने से और ख़ुद के परीक्षण से पुनीता इतनी घबरा गई थी कि उसने बहुत सारी एटीवैन गोलियाँ एक साथ ले ली थीं। यही बात आज शाम को ही मिले उसके ख़ून के सैंपल की जाँच में भी ज़ाहिर हुई। जाँच में मैंने ख़ास तौर पर पैथोलॉजी लैब को एटीवैन की जाँच करने के लिए कहा था, जो उन्होंने पुनीता के ख़ून में भारी मात्रा में पाई। अब एक ख़तरनाक बात हमारे कोरोना परीक्षण की यह है कि अगर शरीर के रक्त में भारी मात्रा में एटीवैन जैसी घबराहट मिटाने वाली गोलियों के रसायन होते हैं, तो कोरोना परीक्षण में इस्तेमाल किये जाने वाले रसायन, उन्हीं रसायनों से उलझ जाते हैं और उनसे भ्रमित हो जाते हैं। इससे परीक्षण का नतीजा सही नहीं निकलता है। बात सिर्फ़ उतनी ही नहीं है। जब पति के साथ इसे अस्पताल लाया गया था तो इसे भी कोरोना का निश्चित केस जान तुरंत लोपीनावीयर और रायटोनावीयर का मिश्रित डोज़ दिया गया था।”

सुनील मिश्र ने पूछा, “ये लोपीना वीयर और रायटोना वीयर क्या हैं?”

राहुल ने समझाते हुए कहा, “ये दोनों रेमडेसीवीयर की ही श्रेणी के हैं। इस मिश्रित डोज़ के रसायन, और शरीर में बहुत सारी एटीवैन के रसायन - ये दोनों रसायन आपस में मिलकर शरीर के अन्दर उत्तेजना, क्रोध और पागलपन भर देते हैं। व्यक्ति पागलों जैसी स्थिति में पहुँच जाता है। पुनीता के साथ यही हुआ है। वह पागल नहीं है। इन रसायनों के कारण उसके सर पर वहशीपन सवार हो गया है।”

सब लोग सुन्न हो गए थे यह सुनकर। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे। 

इस बीच, जो विशेष दस्ता पुनीता को लेकर गया था, उसी ने वापिस आकर दोनों घायलों को उठा लिया और दूसरी एम्बुलेंस में डाल दिया।

राहुल ने आगे कहा, “अब पुनीता के शरीर में से पूरी तरह से एटीवैन के रसायन निकाल दिए जायेंगे, और फिर से उसका कोरोना परीक्षण होगा। मुझे सौ प्रतिशत गारंटी है कि अपने पति विपिन के कारण वह भी कोरोना पॉजिटिव केस है। उसके पूरे घर को सील कर दिया जाएगा। सैनीटाईज़ेशन वाले आकर उसके घर, सीढ़ियों और इस पूरी बिल्डिंग को फिर से सैनीटाईज़ करेंगे। जिन चारों लोगों का आज पुनीता से संपर्क बना है, उनका भी परीक्षण करवाया जाएगा। इसीलिए, उन चारों में से किसी को इस बिल्डिंग से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी।”

बिल्डिंग के लोगों ने चुपचाप सुना। सुनील मिश्र ने मन ही मन कोई भी शिकायत दर्ज न करने का फ़ैसला लिया। अपने मोबाइल से उसने यूट्यूब पर अपलोड करने के लिए लिया हुआ वीडियो भी डिलीट कर दिया। 

राहुल ने बिल्डिंग वालों से कहा, “आपने आज जितना सहयोग दिया, उसका बहुत बहुत धन्यवाद”, और वो बिल्डिंग से बाहर निकल गया। एक और स्वास्थ्य अधिकारी अपने हेल्पर के साथ अन्दर आया और सब बिल्डिंगवासियों का स्वाब सैंपल एक बार फिर, कोरोना परीक्षण के लिए लेने लगा।

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