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इक्कीसवीं सदी के साहित्य में नये विमर्श

 
अजय कुमार चौधरी
सहायक प्राध्यापक, हिन्दी
पी। ऐन। दास कॉलेज, पलता
मोब: 8981031969
ajaychoudharyac@gmail.com

 

इक्कीसवीं सदी आज समाज में नए विमर्श और चुनौतियों को सामने रख रही है। हमारी दुनिया तेज़ी से परिवर्तित हो रही है और इससे हमें नए सोच, नए तकनीकी संचार के माध्यम से विदेशी संपर्कों की वृद्धि और वैश्विकरण का सामना करना पड़ रहा है। यह वैश्विक चुनौतियों और समस्याओं का कारण बन रहा है और भविष्य में हमें उनका सामना करना होगा। नए दौर में विमर्शों का फ़लक काफ़ी विस्तृत हुआ। साहित्य अब नए विमर्श का दौर शुरू हो चुका है। तत्कालीन विमर्शों में सामरिकता और आतंकवाद एक महत्त्वपूर्ण विमर्श के रूप में सामने आ रहा है। इस विमर्श से युद्ध के दौरान, देशों को संगठित रहना, सुरक्षित रहना और सामरिक तंत्रों के माध्यम से संघर्ष करना होगा। इसके अलावा, साइबर आक्रमणों, इंटरनेट प्रवेश के साथ साइबर सुरक्षा और डेटा निजता जैसे मुद्दे भी विमर्श के हिस्से बन रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, वन्य जीवन का संकट, प्रदूषण और जल संकट जैसे मुद्दे हमारी पृथ्वी के लिए गंभीर ख़तरे पैदा कर रहे हैं। हमें नए और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके वन्य जीवन की सुरक्षा, जल संरक्षण के सतत विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है लेकिन साहित्य इस मुद्दे को उठाती ही नहीं या कहें तो अपवाद के रूप में मुद्दों को रखा गया है। साहित्य केवल सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष को विमर्श में रखा गया है। अभूतपूर्व तकनीकी प्रगति और आधुनिकरण ने सामाजिक असमानता को बढ़ावा दिया है। आर्थिक विभेद, जातीय और लिंग भेद और अवसाद जैसी समस्याएँ विमर्श का मुख्य विषय रही हैं। हमें समाज में समानता, न्याय और आपसी समझ को प्रमुखता देने की आवश्यकता है। तकनीकी प्रगति और मानवीयता के साथ संघर्ष करना। आधुनिक तकनीकी संचार के आगे, मानवीय संपर्कों में एक संकट उत्पन्न हो रहा है। हमें नई सामाजिक मान्यताओं, नैतिक मानवता और तकनीकी विकास के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है। 

इक्कीसवीं सदी के विमर्श हमारे समाज के विकास और प्रगति की मुख्य चुनौतियों को प्रकट करते हैं। हमें नई सोच, सामयिकता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक न्याय और मानवीयता के मानकों के प्रति संवेदनशीलता और सक्रियता बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें समाज के हर वर्ग को सम्मिलित करना और साथ मिलकर समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना होगा। इससे हम इक्कीसवीं सदी में स्थायी विकास को प्राप्त कर सकेंगे। यह सदी साहित्य के क्षेत्र में नई पहचानो की जन्म देने वाली है। साहित्यिक विमर्श नये और प्रभावी ढंग से आगे बढ़ रहा है। इसके साथ ही, विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं के चिंतन और चर्चा भी साहित्यिक विमर्श में प्रतिबिंबित हो रही हैं। विमर्श में सामाजिक न्याय, जाति, लिंग, और समानता के मुद्दों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस सदी में साहित्यिक विमर्श का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू है संघर्ष, उपेक्षा और अवसाद को विषय के रूप में देखा जा सकता है। लेखकों ने अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया है और उन्हें उत्पन्न करने वाले कारणों का विचार नहीं किया है। साहित्यिक कृतियों में इन विषयों पर संवेदनशील चर्चा होगी तो सामान्य जनता को जागरूक करेगी। इस सदी के साहित्यिक विमर्श की नई पहचान उभरती हुई कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, और गैर-प्रवृत्ति साहित्य के माध्यम से हो रही है। यह साहित्यिक विमर्श हमारे समाज की समस्याओं को दर्शाता है, हमें सोचने पर विवश करता है, और नए दिशा की ओर ले जाता है। साहित्यिक विमर्श के इस नए रूप ने साहित्य को सामाजिक परिवर्तन के लिए एक महत्त्वपूर्ण और प्रभावी माध्यम बना दिया है। इस सदी में साहित्यिक विमर्श की नई पहचान साहित्य को एक सकारात्मक और सक्रिय क्षेत्र बनाने के साथ-साथ रचनाकारों को एक नया प्रभावशाली मंच प्रदान करती है। यह लोगों को सोचने और समझने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें विभिन्न मानसिकता के साथ परिचित कराता है, और सामाजिक बदलाव के लिए उन्हें प्रेरित करता है। यह एक नया संवाद स्थापित करता है जो साहित्य को समाज की मुद्दों के साथ जोड़ता है और विचारों की विस्तार वादी रूपरेखा प्रदर्शित कर उन्हें विमर्श के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, इक्कीसवीं सदी में साहित्यिक विमर्श की नई पहचान साहित्य को नए सामाजिक, राजनीतिक, और प्रौद्योगिकी संदर्भों के साथ देखने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह रचनाकारों को सामाजिक परिवर्तन के लिए विचारों की प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करती है, साथ ही पाठकों को सोचने पर विवश करती है और सामाजिक चर्चाओं को संवेदनशीलता के साथ प्रेरित करती है। 

हिन्दी साहित्य में नये विमर्श की प्रक्रिया अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। साहित्यिक विमर्श विभिन्न दृष्टिकोण, प्रवृत्तियों, और विचारधाराओं को प्रस्तुत करता है जो हमारी साहित्यिक विरासत को और गहराता है और समय के साथ बदलती सामाजिक एवं मानसिकता को दर्शाता है। नये विमर्श में एक महत्त्वपूर्ण पहलू है सामाजिक न्याय, भूमिका और व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्णता के प्रश्नों का अध्ययन। साहित्यिक विमर्श के माध्यम से, हम लेखकों और कवियों के भूमिका और व्यक्तित्व के विषय में विस्तृत चर्चा करते हैं और उनके सामाजिक संदेशों को समझने का प्रयास करते हैं। नये विमर्श में धार्मिक, राजनीतिक और व्यापारिक मुद्दों का विशेष महत्त्व दिया जा सकता है। साहित्यिक विमर्श द्वारा हम लेखकों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले धार्मिक प्रश्नों, राजनीतिक वादों और व्यापारिक प्रश्नों को समझते हैं और उनसे संबंधित विचारों को परख सकते हैं। इस विमर्श में साहित्यिक कला, रचनात्मकता और नई प्रयोगशीलता का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्यिक विमर्श द्वारा हम नई और अद्यतित कला की पहचान करते हैं, नई रचनात्मकता को समझते हैं और विचारों की नई प्रयोगशीलता को पहचानते हैं। नए विमर्श में आधुनिकता और विचारधारा के प्रमुख संकेतक भी शामिल हैं। साहित्यिक विमर्श द्वारा हम आधुनिक विचारधारा को समझते हैं, नये सोच और नए विचारों को जाँचते हैं और उन्हें साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार, हिन्दी साहित्य में नये विमर्श नए और उन्नत विचारों, धार्मिक, राजनीतिक और व्यापारिक मुद्दों के समझने का माध्यम है, और साहित्यिक कला और आधुनिकता को गहराता है। यह एक नई पहचान और दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो हमारे साहित्यिक संस्कृति को बदलने और प्रगति करने में मदद करता है। 21वीं सदी में साहित्य में विमर्श के रूप दलित साहित्य स्त्री चेतना, किन्नर विमर्श, वृद्ध विमर्श के साथ नए विमर्श के रूप में उभरते हुए ओबीसी साहित्य को प्रमुखता दी जा सकती है। 

दलित विमर्श सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और साहित्यिक विषयों में दलित समुदाय की मुद्दों के विशेषाधिकार को समझने और समझाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। इसका मुख्य उद्देश्य दलितों के वास्तविकता और अधिकारों को प्रकट करना है जो उन्हें समाज में समानता, न्याय और सम्मान की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं। इस विमर्श के माध्यम से, दलित समुदाय के जीवन, संघर्ष, और अनुभवों की गहराई समझी जाती है। इसके द्वारा, उनकी भाषा, साहित्य, कविता, कहानी और अन्य कला-साधनों के माध्यम से दलित समुदाय की पहचान और सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित रखी जाती है। यह विमर्श दलितों के प्रतिबद्धता को बढ़ावा देता है और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए लड़ाई करता है। इसके माध्यम से, उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की जाती है और समाज को दलित समुदाय के संघर्षों और आवाज़ को समझने के लिए प्रेरित करता है। इस विमर्श के माध्यम से, लेखकों और कवियों ने दलित समुदाय की जीवनी, व्यक्तित्व और विचारों को अभिव्यक्त किया है। इसके द्वारा, उन्हें समाज के अदालत में उनके अधिकारों की रक्षा करने लिए न्यायिक मंचों में अपनी आवाज़ उठाने का अवसर मिला है। दलित विमर्श के माध्यम से हमें दलित समुदाय की विशेषताओं, विचारधारा और दृष्टिकोण को समझने का अवसर मिलता है। यह हमें अधिकारों, समानता, और सामाजिक न्याय के मामले में अधिक संवेदनशील बनाता है। दलित विमर्श के माध्यम से, हम उनकी आवाज़ को सुनते हैं, उनकी चुनौतियों को समझते हैं और समाज में समानता और न्याय की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हैं। 

इक्कसवीं सदी में किन्नर विमर्श एक महत्त्वपूर्ण विषय है जो समाज में लिंग के अतिरिक्त जेंडर के रूप में अपनी पहचान को मान्यता दिलाने और समानता की माँग करता है। किन्नर, जिन्हें हिजड़ा, एनएचटी या ट्रांसजेंडर्स भी कहा जाता है, वे एक विशेष लिंग समुदाय हैं जिनका महत्त्वपूर्ण स्थान समाज में है। इस विमर्श के माध्यम से, इन जेंडर की जीवनी, संघर्ष और विचारधारा को समझने का प्रयास किया जाता है। इसके द्वारा, सामाजिक और मानसिक परिस्थितियों की गहराई में प्रवेश किया जाता है और उनकी पहचान, अधिकारों और मानवाधिकारों की प्राप्ति के लिए लड़ाई की जाती है। किन्नर विमर्श सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है। यह विचारों और धारणाओं को बदलता है जो थर्ड जेंडर के प्रति समाज में मौजूद होते हैं। यह विमर्श सामाजिक संरचना और व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए जागरूकता फैलाई जाती है और समानता और न्याय के मामले में अधिक संवेदनशीलता और समर्पण विकसित होता है। साहित्यिक रचनाओं, कविताओं, कहानियों और फ़िल्मों के माध्यम से थर्ड जेंडर की आवाज़ उठाई जाती है। इसके द्वारा, उनकी जीवनी, संघर्ष और ख़ुशियों की कहानियाँ साझा की जाती हैं, जो अधिकारों की माँग करने, जीवन की भावनात्मक चुनौतियों का सामना करने और ख़ुशहाली की खोज करने में मदद करती हैं। समाज में थर्ड जेंडर के प्रति ज्ञान और संवेदनशीलता विकसित की जाती है। यह सामाजिक अभिवृद्धि के लिए एक महत्त्वपूर्ण क़दम है जो भारतीय समाज को समानता, समरसता और सहिष्णुता की ओर प्रगामी बनाने का योगदान देता है। 

इक्कसवीं सदी में, आदिवासी विमर्श एक महत्त्वपूर्ण विषय है जो भारतीय समाज में आदिवासी समुदायों की मुद्दों, विरासत और समस्याओं को समझने और समझाने के लिए प्रयास करता है। आदिवासी समुदाय भारत की मूलभूत जनजातियों में से एक है और उनकी ख़ास संस्कृति, भाषा और जीवनशैली का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस विमर्श के माध्यम से, आदिवासी समुदाय की आवाज़ बुलंद की जाती है। इसके द्वारा, उनकी विशेषताओं, विचारधारा और समस्याओं को समझा जाता है और उनके अधिकारों की प्राप्ति, सामाजिक न्याय और सम्मान की माँग की जाती है। आदिवासी विमर्श सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है। यह आम जनता को आदिवासी समुदाय की समस्याओं और लड़ाई को समझने के लिए प्रेरित करता है और समाज में समानता और समरसता को सुधारने के लिए जागरूकता फैलाता है। इस तरह, आदिवासी समुदाय के सदस्यों की आवाज़ को सुना जाता है और उनकी माँगों को उठाने का प्रयास किया जाता है। साहित्यिक रचनाओं, कविताओं, कहानियों और गीतों के माध्यम से आदिवासी समुदाय की विरासत और संस्कृति को समझा जाता है। इसके द्वारा, उनकी जीवनी, लोककथाएँ और परंपराओं को साझा किया जाता है, जो उनके सांस्कृतिक अद्यतन और मानसिकता की प्रगति में मदद करती हैं। समाज में आदिवासी समुदाय के प्रति ज्ञान और संवेदनशीलता विकसित होती है। यह सामाजिक अभिवृद्धि के लिए एक महत्त्वपूर्ण क़दम है जो उन्हें समानता, समरसता और सहिष्णुता की ओर पुरोगामी बनाने का योगदान देता है। आदिवासी विमर्श भारतीय समाज को एक एकीकृत और समरसता पूर्ण समाज बनाने के लिए आवश्यक विचारधारा और आम जनता को जागरूक करने का माध्यम है। 

इस प्रकार हम देख पाते हैं कि हिन्दी साहित्य का इक्कसवीं सदी जहाँ आदिवासी विमर्श, स्त्री विमर्श, वृद्ध विमर्श, थर्ड जेंडर विमर्श, ओबीसी साहित्य विमर्श को ही मुद्दा बनाया है है वही विश्व साहित्य का फलक दुनिया तताम समस्यों को विमर्श का विषय को समाहित किया है। आवश्यकता है, हिन्दी लेखक को अपनी दृष्टि को विकास देने की। अन्यथा विश्व फलक पर हिन्दी साहित्य संकुचित मानसिकता के कारण पिछड़ न जाए। 

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