कंगाल
कथा साहित्य | लघुकथा विभा रश्मि26 Aug 2016
महानगर के व्यस्त चौराहे के रेड सिग्नल पर ट्रैफ़िक के रुकते ही छुट-पुट सामान बेचने वालों और भिख़ारियों की सक्रियता देखने लायक़ होती। वे कारों के निकट आकर बंद खिड़की के काँच पर हथेली से ठकठकाते ताकि अपना सामान बेच सकें।
वे बच्चों के लिये रंगीन स्लेट, खिलौने, मोबाइल चार्जर, डस्टर आदि बेचने की चेष्टा करते। कुछ भीख माँगती औरतें-बच्चे परेशान करते।
कार की अधखुली विंडो से लोग सामान का मोल-भाव करते। कहीं सौदा पट जाता, कहीं नहीं। सारा दिन मुंबई महानगर के व्यस्त चौराहों व जंक्शनों पर यही चलता ।
"वो देख! एक सिल्वर कलर की कार रुकी।"
फूल बेचने वाली लड़की उस तरफ़ लपकी, पीछे की सीट पे एक महिला पसरी हुई थी। उसने आधी विंडो खोली और लड़की से लाल गुलाब के गुच्छे के लिये मोल-तोल शुरू कर दिया।
"कितने का देगी?"
"साठ का है...ताजे़ लाल गुलाब...ले ले मेम साब," वो विनती कर रही थी।
"तीस में दे जा।"
"ना...ना, खरीद नहीं।"
"बोहनी का टेम है, …अच्छा चालीस दे दे।"
लड़की ने इंकार किया।
सिग्नल की लाल लाइट पीली हो गयी थी। लड़की ने खिड़की के भीतर अपना गुलदस्ता महिला को पकड़ा दिया।
"जल्दी पैइसा बाहर फेंक दे सेठानी ....आंटी।"
महिला ने मोटे पर्स से पाँच सौ का नोट निकाला और हवा में लहरा दिया।
"छुट्टे हैं इसके?"
"न..नहीं... पण.. तू फूल फेंक, ...नहीं देगी मैं... चोरनी," लड़की बिफ़र गई।
कार का काला विंडो ग्लास धीरे-धीरे बंद हो गया। कार ने तेज़ी पकड़ ली। ट्रैफ़िक फिर चलने लगा था।
कार में बैठी महिला ने ताज़े सुर्ख़ गुलाब के फूलों को सूँघा... फ्री में हथियाए गुलदस्ते को पा वो फूली नहीं समाई।
ड्राइवर ने अपने आइने में देखा लड़की बिसूरती हुई पीछे भाग रही थी। उसने गाड़ी धीमे करते हुए साइड में लगा ली। महिला चिल्लाई, "क्या कर रहे हो!"
उसने अपनी विंडो खोली और लड़की को आने का इशारा किया। लड़की पास आई तो उसने अपनी जेब से चालीस रुपए निकालकर उसके हाथ में थमा दिए।
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