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ख़तरे में है भावी पीढ़ी का भविष्य

एक बार किसी ने मज़ाक में कह दिया कि सन् 2035 में किसी एक दिन अख़बार का एक शीर्षक लोगों को निश्चित रूप से चौंका देगा, शीर्षक होगा—एक महिला की नॉर्मल डिलीवरी हुई। यह बात भले ही मज़ाक में कही गई हो, पर सच तो यह है कि आजकल जिस तरह से सिजेरियन ऑपरेशन का प्रचलन बढ़ रहा है और माताएँ जिस तरह प्रसव वेदना से मुक्ति और इच्छित मुहूर्त में अपनी संतान का जन्म चाहते हैं, उसे देखते हुए तो अब नॉर्मल डिलीवरी किसी आश्चर्य से कम नहीं होगी। हाल ही में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध में यह चौंकाने वाला परिणाम दिया है कि यही हाल रहा, तो भावी पीढ़ी का भविष्य अभी से ही ख़तरे में है। 

आजकल कोई भी शहरी बच्चा ’नॉर्मल’ पैदा होता ही नहीं है। सुदूर गाँवों की स्थिति अच्छी है। इसका आशय यही हुआ कि आजकल जो बच्चे नॉर्मल पैदा नहीं हो रहे हैं, उसके पीछे शिक्षा का दोष है। सिजेरियन ऑपरेशन से होने वाले लाभ और हानि की जाँच के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने लैटिन अमेरिका की 120 अस्पतालों में जन्म लेने वाले बच्चों की जाँच की, तो पाया कि इनमें से 33 हज़ार 700 बच्चे सिजेरियन ऑपरेशन से पैदा हुए थे, शेष 66 हज़ार 300 बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से इस दुनिया में आए थे। इस शोध में यह चौंकाने वाली जानकारी मिली कि जिन महिलाओं ने बिना किसी आपात स्थिति सिजेरियन ऑपरेशन करवाया, उनकी मृत्यु दर में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस की गायनेकोलोजिस्ट डॉ. नीरजा भाटिया का कहना हे कि भारत में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या 5 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गई है। इसकी मुख्य वजह यही है कि शिक्षित महिलाएँ आजकल प्रसूति पीड़ा से घबराने लगी हैं। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में होने वाले 6 डिलीवरी में से एक प्रसूति तो सिजेरियन ही होती है। अमेरिका में तो यह संख्या 29.1 जितनी अधिक है। ब्रिटेन में 20 प्रतिशत महिलाएँ अपनी डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन से ही करवाना पसंद करती हैं। ब्राज़ील जैसे विकासशील देश में तो यह संख्या 80 प्रतिशत तक पहुँच गई है। भारत में अभी भी 70 प्रतिशत डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन के माध्यम से ही हो रही है। इसके पीछे चिकित्सकों की अहम् भूमिका है। जो महिलाएँ नॉर्मल डिलीवरी चाहती हैं, उनकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। उन्हें सिजेरियन ऑपरेशन के लिए बाध्य किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में मात्र 20 प्रतिशत ऑपरेशन ही सिजेरियन होते हैं, क्योंकि इन अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों को सिजेरियन ऑपरेशन करने से कोई आर्थिक लाभ नहीं होता। 

आज शिक्षित और उच्च वर्ग की महिलाओं में सिजेरियन ऑपरेशन करवाने का फ़ैशन ही चल रहा है। ब्रिटनी स्पीयर्स, एंजेलिना जॉली और मेडोना जैसी अभिनेत्रियों की राह पर आज की आधुनिक माँएँ भी चल रही हैं। शहर की नाज़ुक महिलाएँ भी प्राकृतिक रूप से होने वाली प्रसूति से घबराने लगी हैं। डॉक्टरों के सामने वे कई बार स्वयं ही सिजेरियन ऑपरेशन करवाने का आग्रह करती हैं। ये नाज़ुक महिलाएँ यह सोचती हैं कि सिजेरियन ऑपरेशन से शरीर को कोई नुक़्सान नहीं होता। दूसरी ओर नॉर्मल डिलीवरी से शरीर को ख़तरा है। यहाँ तक कि जो माताएँ टेस्ट ट्यूब के माध्यम से माँ बनती हैं, वे भी अपना पेट चीरवाकर सिजेरियन ऑपरेशन करवाना चाहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में सिजेरियन ऑपरेशन से डिलीवरी होने का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि यह चिकित्सकों के लिए लाभकारी है। शिक्षित होने के कारण कई महिलाएँ आधुनिक टेक्नालॉजी पर अधिक विश्वास करती हैं, इसलिए वे भी सिजेरियन ऑपरेशन का आग्रह रखती हैं। कई बार तो स्थिति नॉर्मल डिलीवरी की होती है, फिर भी चिकित्सक सिजेरियन ऑपरेशन के लिए बाध्य करते हैं। दिल्ली की ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट की डॉ. सुनीता मिश्रा का कहना है कि सिजेरियन ऑपरेशन आज हमारे देश में एक संक्रामक रोग की तरह फैल रहा है। 

एक बात ध्यान देने योग्य है कि जितने भी सिजेरियन ऑपरेशन होते हैं, उनमें से अधिकांश सुबह दस बजे से शाम 5 बजे तक ही होते हैं, वह भी शनिवार और रविवार को छोड़कर। ऐसा भी क्या होता होगा? नहीं, बात दरअसल यह है कि यदि रात में नॉर्मल डिलीवरी होनी है, तो चिकित्सकों को रात भर जागना पड़ेगा। इसके अलावा यदि चिकित्सक ने शनिवार या रविवार की डेट दी है, तो फिर हो गई छुट्टी ख़राब। ऐसे में कमाई भी नहीं होगी और धन भी नहीं मिलेगा। तो क्यों न नॉर्मल डिलीवरी वाले ऑपरेशन भी सिजेरियन कर दिए जाएँ और कमाई भी कर ली जाए। दूसरी ओर चिकित्सकों के अपने ज्योतिष होते हैं या फिर जो महिलाएँ उन पर विश्वास करती हैं, वे शुभ मुहूर्त पर अपनी संतान को लाने का प्रयास करती हैं, इसके लिए तो सिजेरियन ऑपरेशन ही एकमात्र उपाय है। किसी भी अस्पताल में नॉर्मल डिलीवरी करानी हो, तो उसका ख़र्च चार से पाँच हज़ार रुपए आता है। वहीं सिजेरियन में मात्र शल्य क्रिया का ही ख़र्च 15 से 20 हज़ार रुपए आता है। यदि इसमें ऐनेस्थिसिया, सहायक, पेडियाट्रिशियन और अस्पताल के ख़र्च को शामिल कर दिया जाए, तो यह बढ़कर 50 हज़ार रुपए तक हो जाता है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह ख़र्च करना आवश्यक हो जाता है। आजकल निजी अस्पतालों से जुड़े गायनेकोलोजिस्ट अपना वेतन तक नहीं लेते, वे जो सिजेरियन ऑपरेशन करते हैं, उनमें ही उनकी मोटी फ़ीस शामिल होती है। ये कमाई दो नम्बर की होती है। हाल ही में मुम्बई के उपनगर घाटकोपर में एक गायनेकोलोजिस्ट के घर पर आयकर का छापा मारा गया, तो यह पाया गया कि उस महिला ने अपने पलंग के गद्दे में रुई के स्थान पर ठूँस-ठूँसकर नोट भरकर उसे गद्देदार बनाया था। आजकल अधिकांश गायनेकोलोजिस्ट की कमाई सिजेरियन ऑपरेशन और गर्भपात से हो रही है। 

सिजेरियन ऑपरेशन को निरापद मानने वाले यह भूल जाते हैं कि यह भी ख़तरनाक साबित हो सकता है। कोई भी सर्जरी बिना जोखिम के नहीं होती। इस ऑपरेशन में भी अधिक रक्तस्राव होता है, यह संक्रामक भी हो सकता है। दवाएँ भी रिएक्शन कर सकती हैं। बच्चे को जिन हथियारों से खींचकर बाहर निकाला जाता है, उससे भी उसे चोट पहुँच सकती है। सिजेरियन ऑपरेशन के बाद महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने में काफ़ी वक़्त लगता है। इसके अलावा वह महिला पूरे जीवन-भर भारी वज़न नहीं उठा सकती। ऑपरेशन के तुरंत बाद माँ अपने बच्चे को दूध भी ठीक से नहीं पिला सकती। जबकि यह दूध बच्चे के लिए अमृत होता है। इस स्थिति में बच्चा माँ से अधिक आत्मीयता का अनुभव नहीं करता। यदि माँ सिजेरियन के लिए अधिक उतावली होती है, तब तक पेट में बच्चे का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता। नॉर्मल डिलीवरी में बच्चे का माथा एक विशेष तरह के दबाव के साथ बाहर आता है, इससे उसका आकार व्यवस्थित होता है। पर सिजेरियन वाले बच्चे के माथे का आकार थोड़ा विचित्र होता है। इस तरह के बच्चे श्वसन तंत्र के रोगों का जल्दी शिकार होते हैं। 

आजकल प्रसूति के पहले डॉक्टर कई पेथालॉजी टेस्ट के लिए कहते हैं। इसमें अल्ट्रासोनोग्राफी से लेकर डोपलर टेस्ट भी होता है। इस थोकबंद टेस्ट में यदि किसी एक की भी रिपोर्ट में थोड़ा-सा ऊँच–नीच हुआ, तो डॉक्टर मरीज़ को डरा देते हैं और सिजेरियन ऑपरेशन की सलाह देते हैं। डॉक्टर की इस सलाह के ख़िलाफ़ जाने वाली बहुत ही कम माताएँ होती हैं। मरीज़ की इस स्थिति का लाभ चिकित्सक ख़ूब उठाते हैं और ख़ूब कमाई भी करते हैं। एक तरफ़ विदेश में अब नॉर्मल डिलीवरी के लिए क्लासेस शुरू की जा रही हैं और भारत के ग्रामीण इलाक़ों में आज भी अधिकांश डिलीवरी नॉर्मल हो रहीं हैं, ऐसे में केवल शहरों में ही सिजेरियन ऑपरेशन का चस्का शिक्षित महिलाओं को लगा है। बालक का जन्म एक प्राकृतिक घटना है, डॉक्टरों ने अपनी कमाई के लिए इसे कृत्रिम बना दिया है। यदि हम सब प्रकृति की ओर चलें, तो हम पाएँगे कि वास्तव में संतान का आना प्रकृति से जुड़ा एक अचंभा है, न कि डॉक्टरों की कमाई का साधन। आज यदि यह कहा जाए कि आज की टेक्नालॉजी का अभिशाप सिजेरियन ऑपरेशन है, तो ग़लत नहीं होगा। 

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