कुत्ता-जनम
कथा साहित्य | लघुकथा गौतम कुमार 'सागर'1 Aug 2019
एक कुत्ते ने महसूस किया कि अब उसकी मृत्यु क़रीब है। उसे अपने पूर्व जन्मों की स्मृतियाँ हो आईं कि कभी वह एक बैक्टीरिया था। कभी तालाब की काई की फूफंद और उसके बाद एक कीड़ा, एक वनस्पति, एक चूहा ....और उसके बाद अच्छे कर्म की वज़ह से अब वह कुत्ते से मनुष्ययोनि में जानेवाला है।
वह कुत्ता उदास था। वह मनुष्य नहीं बनना चाहता था। मगर बिना मनुष्य-जन्म पार किए उसे सद्गति भी मिलने वाली नहीं है। जन्म- मरण से छुटकारा भी नहीं है। किंतु एक कुत्ते का जीवन जीते हुए वह मनुष्य के अधिक समीप रहा था। उसने देखा था ...जैसे मनुष्य धन के लिए झगड़ते हैं वैसे तो हम कुत्ते भी रोटी के लिए नहीं लड़ते। जैसे मनुष्य स्वजनों की पीठ पर विश्वासघात का कटार घोंपता है वैसे तो एक लोमड़ी भी अपने संबंधियों के साथ नहीं करती। जितना धूर्त एक मनुष्य होता है उतना तो कौआ भी नहीं होता। जितनी विषैली मानव की जिह्वा है, उतना तो सर्प का दंश भी नहीं।
वह एक मंदिर के पास ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, “हे जगत नियंता, मुझपर कृपा करो।"
तभी कहीं से किसी ने उस पर भारी डंडे से प्रहार किया।
"ये कुत्ता मंदिर के फाटक पर क्या कर रहा है? भागाओ इसे!" निरीह कुत्ता भयंकर पीड़ा से कराह उठा और ईश्वर से कहने लगा, "देखा भगवान, तेरा मनुष्य मुझे प्रार्थना करने भी नहीं देता।"
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