अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

लँगड़ा आम

 

आम! नाम ही काफ़ी है। सुनते ही मुँह में पानी आने लगता है। मीठे, रसीले, सुनहरे गूदेदार आम मनमोहक लगते हैं। वस्तुतः आम का पेड़ बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए आकर्षण का केंद्र है। आम के पेड़ में बौर आते ही बुज़ुर्गों की खटिया पेड़ की छाँव में आम की रखवाली के लिए लग जाती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, बच्चों और बुज़ुर्गों के बीच आम के प्रति प्रेम, स्पर्धा में बदल जाता है। ऐसा लगता है मानो ईश्वर अपनी अनुपम भेंट को समय से पूर्व देना नहीं चाहता और मनुष्य लालसावश कैसे भी पाना चाहता है। ब्रह्म और जीव का द्वंद्व सृष्टि के सृजन से ही चल रहा है। 

आम्रफल के स्वाद की बात ही निराली है। आम फलों का राजा कहा जाता है। इसकी बहुतेरी क़िस्में हैं। पर हमें तो इसकी लँगड़ा क़िस्म बहुत पसंद है। क्यों, नाम ही निराला है बचपन में मैं सोचता था कि यह लँगड़ा कर चलता होगा। 

तो क्या है लँगड़ा आम? क्या है इसका इतिहास? 

अन्य क़िस्मों की तरह लँगड़ा आम उत्तर भारत में ख़ूब पसंद किए जाने वाला एक रसीला आम्रफल है। 

लँगड़ा आम का इतिहास क़रीब 300 साल पुराना है। अपने बेहद रसीले स्वाद के कारण यह आम भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है। 

लँगड़ा आम को ये नाम कैसे मिला इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी प्रचलित है। हुआ यूँ कि एक बार बनारस के शिव मंदिर में आए एक साधु ने आम का पेड़ लगाया था। साधु ने इस पेड़ की देखभाल की ज़िम्मेदारी एक लँगड़े पुजारी को दी थी। साधु ने पुजारी से कहा कि जब पौधा पेड़ बन जाए और फल देने लगे तो उसका पहला फल भगवान शिव को अर्पित कर देना और भक्तों में प्रसाद बाँट देना। पुजारी ने ठीक वैसा ही किया। भक्तों ने जब प्रसाद खाया तो वे इस आम के दीवाने हो गए। लोगों ने उस आम की क़िस्म जाननी चाही तो पुजारी नाम बताने में असमर्थता व्यक्त करते हुए वृत्तांत सुना दिया। श्रद्धालु तो भक्ति में मगन होते हैं, सो उन सब ने आम के गोल आकार और एक तरफ़ थोड़ा लहरदार होने के कारण और पुजारी की शारीरिक बनावट के अनुसार उसका नाम लँगड़ा आम रख दिया। पुजारी ने भी इस नाम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की। जो मनोभाव देखते हैं, वे शब्दार्थ पर ध्यान नहीं देते। 

वैसे अब मानव के लिए लँगड़ा शब्द प्रयुक्त किया जाना उचित नहीं है, एक निर्दोष के लिए हीनता बोधक है। अस्तु इसके स्थान पर दिव्यांग का प्रयोग किया जाना उचित है। 

आम का पेड़ वनस्पति है, लँगड़ा फल का नाम, इसलिए नाम से उसको फ़र्क़ नहीं पड़ता है। उसको किसी भी नाम से पुकारो वह मिठास ही देगा। जैसे ब्रह्मज्ञ साधु का आचरण और विचार होता है, वैसा ही हमारे इस आम का भी।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अथ केश अध्यायम्
|

  हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार…

अथ मम व्रत कथा
|

  प्रिय पाठक, आप इस शीर्षक को पढ़कर…

अथ विधुर कथा
|

इस संसार में नारी और नर के बीच पति पत्नी…

अथ-गंधपर्व
|

सनातन हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ललित निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं