मासिक चक्र
कथा साहित्य | लघुकथा रीमा महेंद्र ठाकुर15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
"प्रिया वहीं रुको!"
एक तीखी आवाज़ प्रिया के कानों में सुनाई दी, वो वहीं ठिठक कर रुक गयी। नयी नवेली दुल्हन प्रिया कुछ समझ ही न पायी, माँ ने कुछ सिखाया नहीं, सहम गयी प्रिया, सास अनुभा जी की बात सुनकर। आख़िर मुझसे भूल क्या हुई, माँ ने बोला था कुछ अनजाने में ग़लती हो तो माफ़ी माँग लेना। प्रिया आगे सासू माँ के पैरों की ओर बढ़ी, "अरे . . . रे रुको वहीं।"
"आख़िर हुआ क्या, माँ जी," प्रिया की आँखें भर आयीं।
"मुझे मत छुओ बस, वो सामने कोठरी है चार दिन वहीं रहना है।"
"पर क्यूँ?" प्रिया अचम्भित हो गयी।
"मुझे नहीं पता, तुम कितनी बेशर्म हो तुम्हें शर्म नहीं आती, इस तरह की बात पूछते।"
प्रिया चुपचाप कोठरी की ओमासिक चक्रर बढ़ गयी। उसके मन में एक ही सवाल था, कि आज के समय में ऐसी बातें भला कौन सोचता होगा।
नयी जगह, कुछ अँधेरा भी था कोठरी में, सुविधा के नाम पर, एक चटाई और एक घड़ा पानी।
ननद भी पीछे से आ गयी थी। एक पतली चद्दर लेकर, दूर से फेंककर दी थी।
आख़िर ये सब है क्या? रात जाग कर निकल गयी। आकाश भी उसके पास न आया, कल तो कहाँ चांद-तारे की बात कर रहा था। और आज ख़ुद ही ग़ायब, दस बज चुके थे एक चाय भी नसीब न हुई।
प्रिया को घुटन होने लगी, उसने मन में कुछ तय किया, और कोठरी से बाहर आ गयी और तेज़ी से रसोई की ओर बढ़ गयी।
"अरे रुको!" बहुत सारे लोग आवाज़ देते रहे, वो न रुकी।
"सब कुछ बर्बाद कर दिया इस लड़की ने! ये नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को गर्त मैं ढकेल देगी।"
प्रिया सबकी बातें सुनती रही फिर उसका धैर्य टूट गया।
और फिर उसने जो कुछ बोला, सब चुप हो गये।
प्रिया अभी बोलती जा रही थी।
"माँ जी मुझे नहीं पता था कि आपकी सोच ऐसी होगी। मैं तो आपकी बेटी बनकर आयी थी। आप क्षमा करें, पर आपको समझने में धोखा खा गयी।"
"पर बहू पुराने ज़माने से ये नियम बनाये गये हैं," अनुभा जी कुछ नम्र हुईं।
"नियम क्यूँ बनाये गये, ये तो पता कर लेते। उसके पीछे का कारण भी तो पता होना चाहिए। बस बिना जाने एक दूसरे पर नियम मढ़ दिया जाता है। मासिक धर्म में रक्तप्रवाह की वज़ह से कमज़ोरी आ जाती है इसलिए चार दिन आराम कर सकें। मासिक धर्म सृजन के लिए ईश्वर का वरदान है उसे श्राप क्यूँ बनाएँ। मासिक धर्म पाप नहीं यदि मासिक धर्म नहीं होगा तो औरत माँ कैसे बनेगी? वो बाँझ हो जायेगी। जिसकी वज़ह से संतान उत्पत्ति होती है वो पाप कैसे?"
किसी के पास कोई जबाब नहीं था। सब विमूढ़ से प्रिया की ओर देखने लगे।
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