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मैं ही राधा, मैं ही मीरा

मैं ही राधा, मैं ही मीरा, मैं ही हूँ घनश्याम 
प्यार को तुम जो भी दोगे मेरा है वो ही नाम 
 
धेनु की धुन में रम्भाता, मोर का हूँ पंख मैं 
हूँ सुदर्शन चक्र भी तो पांचजन्य शंख मैं 
जमना जी के काले जल सा बहता मैं अविराम 
मैं ही राधा, मैं ही मीरा, मैं ही हूँ घनश्याम॥१॥
 
मैं भ्रमर के गान में हूँ, कमलिनी के रंग में 
वेणु की धुन में समाया, बजता हूँ मृदंग में 
चन्दा सूरज संग विचरता, हैं कहाँ विश्राम 
मैं ही राधा, मैं ही मीरा, मैं ही हूँ घनश्याम॥२॥
 
आदि में भी, अंत में भी, मैं समय की चाल हूँ
मिट्टी के कण से लघु हूँ, मैं गगन से विशाल हूँ 
चर-अचर में, अपने मन में पाओगे मेरा धाम 
मैं ही राधा, मैं ही मीरा, मैं ही हूँ घनश्याम॥३॥
  
प्रेम में भी, द्वेष में भी खोजते मुझको हो क्यों 
मैं ही तुम हो, तुम ही मैं हूँ, गिनते हो दो क्यों 
एक होते ही मिलेगा मोह माया को विराम 
मैं ही राधा, मैं ही मीरा, मैं ही हूँ घनश्याम॥४॥

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