मुल्क तूफ़ाने - बला की ज़द में है
शायरी | ग़ज़ल चाँद 'शेरी'1 Mar 2019
मुल्क तूफ़ाने - बला की ज़द में है
दिल सियासतदान की मनसद में है।
अब मदारी का तमाशा छोड़ कर
आज कल वो आदमी संसद में है।
एकता का तो दिलों में है मुक़ाम
वो कलश में है न वो गुम्बद में है।
ज़िन्दगी भर खून से सींचा जिसे
वो शजर मेरा निगाहे - बद में है।
फिर है ख़तरे में वतन की आबरू
फिर बड़ी साजिश कोई सरहद में है।
एक जुगनू भी नहीं आता नज़र
यह अंधेरा किसी बुरे मकसद में है।
चिलचिलाती धूप में ’शेरी’ ख़्याल
हट के मंज़िल से किसी बरगद में है।
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