मुनिया
कथा साहित्य | लघुकथा नमिता सिंह ‘आराधना’15 Mar 2023 (अंक: 225, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
“अरे, तू यहाँ बैठी आराम फरमा रही है? मैडम ने देख लिया तो ग़ुस्सा करेंगी। बोल-बोलकर मैडम का गला सूख गया होगा। जा, जाकर पानी दे आ,” रामकली ने अपनी बारह वर्षीया बिटिया को झिड़कते हुए कहा।
”लेकिन माँ, मैडम ने ही मुझे घर के अंदर रहने को कहा है, जब तक ये टीवी चैनल वाले चले नहीं जाते,” मुनिया ने उत्तर दिया।
शान्ति देवी ग़रीब लड़कियों की शिक्षा के लिए एक संस्था चलाती थीं। शहर में बहुत नाम था उनका। इसलिए टीवी चैनल वाले आज उनका इंटरव्यू लेने उनके घर आए थे। कमरे के बाहर से गुज़रते हुए रामकली ने सुना कि शान्ति देवी कह रही थीं, “मैं बच्चों से काम करवाने की ख़िलाफ़ हूँ। मुझे लगता है कि हर ग़रीब बच्चे को उचित शिक्षा मिलनी चाहिए ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके। इस दिशा में काम करने एवं उचित क़दम उठाने को लेकर मैं प्रतिबद्ध हूँ। मेरी संस्था ने कई बच्चियों को पढ़ा-लिखाकर इस योग्य बना दिया है कि आज वे अच्छे पदों पर आसीन है।”
टीवी चैनल वालों के जाते ही शान्ति देवी अंदर आई तो रामकली ने बड़ी उम्मीद भरी नज़रों से शान्ति देवी को देखते हुए कहा, “मैडम, हमारी मुनिया भी आपकी संस्था की मदद से कुछ पढ़ाई-लिखाई कर ले . . . तो उसकी भी ज़िन्दगी सुधर जाए। मेरी कमाई से तो इतना कुछ बचता ही नहीं कि मैं इसकी पढ़ाई-लिखाई का ख़र्चा उठा सकूँ।”
शान्ति देवी उसकी बात को अनसुना करते हुए मुनिया की ओर मुख़ातिब होकर बोली, “मुनिया, आज पंखों और खिड़की, दरवाज़ों की सफ़ाई करनी है। फिर बग़ीचे की भी सफ़ाई करनी है। और हाँ, शाम को मेहमान आने वाले हैं। इसीलिए शाम को तुझे यहाँ रहने की ज़रूरत नहीं है।”
इतना कहकर वो मोबाइल पर किसी से अपनी संस्था के प्रचार प्रसार को लेकर चर्चा करने में मशग़ूल हो गईं।
रामकली के शब्द हवा में ही तैरते रह गए।
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