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पंडित चन्द्रभानु आर्य का कथा साहित्यः एक विश्लेषण

 

पंडित चन्द्रभानु आर्य (1930-2014) बहुमुखी प्रतिभा के धनी विचारक और साहित्यकार थे। उनका रचनाकर्म बहुआयामी, वैचारिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और उपयोगितावाद की दृष्टि से समाज के दुरितों के प्रति वितृष्णा पैदा कर सुचरितों और सुसंस्कारों का प्रत्यारोपण करने वाला है। उनके साहित्य की अन्यतम विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी रचनाओं को केवल अलमारियों को शोभा नहीं बनाया बल्कि स्वयं कार्य क्षेत्र में उतर कर अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज सुधार की अलख जगाने का महनीय कार्य किया।1 उनकी गेय रचनाओं को अनेक कवियों और गायकों ने गाया। वास्तव में उनकी रचनाओं को प्रकाशन से अधिक गायन के क्षेत्र से ख्याति मिली। 

संक्षिप्त जीवन परिचय

पंडित चन्द्रभानु आर्य हरियाणा की उर्वरा भूमि के ग्रामीण क्षेत्र की उपज थे। ग्राम लोहारी, ज़िला पानीपत में उनका जन्म एक साधारण किन्तु वैचारिक दृष्टि से समृद्ध वातावरण में हुआ था।2 18 वर्ष की आयु में उन्होंने उस ज़माने के प्रसिद्ध कवि और लोक-प्रचारक स्वामी भीष्म जी को अपना गुरु बनाया।3

21 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी रचनाओं की मंचीय प्रस्तुति आरम्भ कर दी।4

2014 तक उनकी रचनाओं के 12 संग्रह प्रकाशित हुए। उनकी तीन दर्जन से अधिक अप्रकाशित कृतियाँ हैं।5 

2014 ई. में आपका देहान्त हुआ। 

रचनाओं का वर्गीकरण

चन्द्रभानु आर्य की रचनाओं का क्षेत्र बहुत व्यापक और विस्तृत है। यद्यपि उनका गद्य साहित्य भी कम महत्त्व का नहीं है, तथापि उनकी पद्य रचनाएँ मात्रा की दृष्टि से अधिक विस्तृत व लोकप्रियता की दृष्टि से उच्चतर उत्स तक पहुँची हैं। गद्य रचनाएँ भी दो प्रकार की हैं। 

(क.) फुटकर अथवा स्वतंत्र रचनाएँ: फुटकर रचनाओं में ईश्वर भक्ति, जीवन-दर्शन, देशभक्ति, समाज सुधार, अंधविश्वास निवारण, नारी शिक्षा, नशा विरोध, नैतिक शिक्षा आदि विषय सम्मिलित हैं। इन गेय रचनाओं में आधुनिक और लोक धुनों का व्यापक प्रयोग किया गया है। 

(ख.) गाथाएँ (भजन इतिहास): गाथाएँ अनेक पद्य रचनाओं का समुच्चय हैं। इनको ‘भजन इतिहास’ भी कहा जाता है। चन्द्रभानु आर्य की उपलब्ध गाथाओं की संख्या 46 है। 6

इनमें छोटी-बड़ी कथाएँ सम्मिलित हैं। यद्यपि सभी गाथाओं का विषय ऐतिहासिक नहीं है। विषय की दृष्टि से इन गाथाओं को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1.  इतिहास कथाएँ

  2. सामयिक कथाएँ

1. इतिहास कथाएँ:

इतिहास कथाओं में मध्यकालीन और आधुनिक कालीन वीरों वीरांगनाओं की गाथायें हैं। ‘हनुमान जन्म’ में रामायणकालीन इतिहास की झलक के साथ नारी सम्मान और स्वाभिमान की गौरव गाथा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। यह चन्द्रभानु आर्य की आकार की दृष्टि से बड़ी गाथा रचनाओं में से एक है।7 

‘महारानी पद्मिनी’ में लोकप्रसिद्ध इतिहास को प्रस्तुत करते हुए चन्द्रभानु आर्य ने अपने स्वत्व और सतीत्व धर्म की रक्षा करने वाली महारानी के इतिहास का लोमहर्षक वर्णन किया है। खिलजी को सन्देश के रूप में महारानी का कथन एक शक्तिमान अत्याचारी सत्ता के मुँह पर भारतीय स्वाभिमान का तमाचा है, जिसे चन्द्रभानु आर्य ने इस प्रकार व्यक्त किया है:

मेरी सूरत किसी सूरत तू खिलजी पा नहीं सकता।
जो भोजन शेर का हो श्वान उसको खा नहीं सकता॥8

इसी प्रकार का एक इतिहास महारानी चन्द्रप्रभा की गाथा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह भी एक लम्बी इतिहास कथा है। महारानी चन्द्रप्रभा भी विपरीत परिस्थितियों में अपने धर्म पर अडिग रहकर एक आदर्श प्रस्तुत करती है।9

‘सुन्दर बाई वीरसिंह’ की कथा कर्नल टॉड के विवरण पर आधारित है। यह चन्द्रभानु आर्य की सर्वाधिक लोकप्रिय गाथाओं में से एक है। अपने पति के पुरुषत्व वेद अभिमान और नारी के प्रति उपेक्षा व हेय भाव को दूर करने के लिए सुन्दर बाई एक कठिन चुनौतीपूर्ण मार्ग चुनती है।10 

एक नाटकीय घटनाक्रम में वह अपने पति की जान बचाती है और नारी के स्वाभिमान की विजय होती है। इसी प्रकार की नारी गौरव गाथाओं में किरणमयी, महारानी दुर्गावती, हाड़ी रानी आदि कथाएँ देश, समाज और स्वाभिमान के लिए विपरीत परिस्थितियों में हार न मानने वाली महिलाओं के आदर्श चित्रण सहेजे हैं।11 

नेताजी की रक्षा के लिए अपने पति जनरंजन की जान लेने वाली ‘नीरा नागनी’ की गाथा रोंगटे खड़े कर देने वाली है। ‘राणा राजसिंह चंचल कुमारी’ की रोमांचक कथा पति-पत्नी के आदशों और कर्त्तव्यों का सक्षम चित्रण करती है। पति का पौरुष पत्नी की रक्षा करने में है न कि उसके व्यक्तित्त्व का दमन करने में। रामायण कालीन ‘ऋतुध्वज और मंदालसा’ की गाथा भी सतीत्व और अप्रतिम पौरुष का सजीव चित्रण करती है।12

कृष्ण-सुदामा की लोकप्रसिद्ध कथा का चन्द्रभानु आर्य ने मार्मिक गुम्फन किया है।13

पिता द्वारा पति के अपमान पर हृदयविदारक प्रतिक्रिया देने वाली सती पार्वती की कथा सहृदयों को भावुक कर देने वाली है।14

“राष्ट्रीय परिदृश्य में अन्तिम आर्य सम्राट् महाराज पृथ्वीराज चौहान के एक अप्रसिद्ध प्रकरण में भारत की परतंत्रता के मूल कारण ‘आपस की फूट’ का ‘पृथ्वीराज और मलखान’ इतिहास कथा में चित्रण किया है।” 15

भजन इतिहास ‘दो भाई’ में जुझार सिंह और हस्दूलसिंह के इतिहास में आपसी ग़लतफ़हमियों के कारण परिवार और राज्य के विनाश का वर्णन किया है।16

पन्ना धाय के इतिहास में त्याग के आदर्श को अनुकरणीय बताया है:

पन्ना तेरी क़ुर्बानी, ये अमर हो गई दुनिया में। टेक। 
परोपकार करने वालों का भला करै भगवान सदा। 
कवि लोग कविता में करते हैं उसका गुणगान सदा॥
काम किया लासानी॥”17

भारत के प्राचीन गौरव की अभिव्यक्ति चन्द्रभानु आर्य की रचनाओं में अनेकत्र दिखाई देती है। वही महर्षि विश्वकर्मा के इतिहास में जहाँ उन्होंने प्राचीन ज्ञान विज्ञान को भारतीय इतिहास के सन्दभों में उजागर किया है, वहीं विश्वकर्मा के मानवीय चारित्रिक पक्ष को भी आदर्श के रूप में चित्रित किया है:

सृष्टि की आदि में ऋषि एक भुवनपति कहलाता था। 
नाम दूसरा विष्णु जो सारी दुनिया को भाता था॥
भुवनपति और विश्वकर्मा का पिता पुत्र का नाता था। 
ब्रह्मा दूसरा नाम सुनो चारों वेदों का ज्ञाता था॥
विश्वकर्मा हुए मंत्र द्रष्टा यजुर्वेद प्रमाण लिया॥”18

इसी प्रकार आधुनिक भारत के इतिहास में नारी सशक्तिकरण के स्वरों को ‘महारानी किशोरी की शादी’ नामक लघु इतिहास कथा में सफलतापूर्वक अभिव्यक्ति दी गई है। महाराजा सूरजमल मुग़लकालीन भारत के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। उनके स्वाभिमान और शौर्य के बारे में प्रायः इतिहास के विद्यार्थी परिचित हैं, परन्तु उनका मानवीय और सामाजिक पक्ष लोक कथाओं में ही अधिक प्रसिद्ध है। उन्होंने होडल के एक साधारण किसान की वीरांगना पुत्री से अत्यंत सादगीपूर्ण विवाह किया था। वही महारानी किशोरी एक दिन भारतीय नारियों की आदर्श प्रेरणास्रोत बनी। इस शादी का वर्णन करते हुए चन्द्रभानु आर्य सादगीपूर्ण विवाह के औचित्य को इतिहास के प्रसंगों से पुष्ट करते हैं:

फिर द्रुपद ने अपनी लड़की थी वो व्याही स्वयंवर से।
नार हिडम्बा भीम बली के घर में आई स्वयंवर से॥
विद्योतमा नृप भोज की कन्या थी परणाई स्वयंवर से।
सावित्री सत्यवान की कैसे जोट मिलाई स्वयंवर से॥
कन्या को वर छाँटने की पूरी आज़ादी होती थी॥”19

चन्द्रभानु आर्य प्राचीन भारत के राजनैतिक आदर्श को प्रकाशित करने में पूर्ण सफल प्रतीत होते हैं। सैल्यूकस और चाणक्य के इतिहास प्रसंग में नीति विशारद आचार्य चाणक्य के आदर्श का सुन्दर दिग्दर्शन हुआ है कि यूनानी सेनानायक चाणक्य के रहन-सहन को देखकर अभिभूत हो जाता है। 

देखा जाय स्थान उस संन्यासी का। 
चमक रहा था चेहरा योगाभ्यासी का॥
रखते हैं स्वच्छ पवित्र सोने चाँदी के बरतन। 
घृत सामग्री न्यारी एक ओर पड़ा था चन्दन, 
ढेर पलासी का॥”20 

2. सामयिक कथाएँ

सामयिक कथाओं के अन्तर्गत वे कथाएँ अभिप्रेत हैं, जो वर्तमान या सामयिक सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डालती हैं और उनका यथोचित समाधान प्रस्तुत करती हैं। चन्द्रभानु आर्य का कवि मूलतः एक समाज सुधारक है जो अपनी रचनाओं के कला पक्ष को सहेजता हुआ सामाजिक सरोकारों और दायित्त्वों की उपेक्षा नहीं करता। चन्द्रभानु आर्य ने जिन सामाजिक समस्याओं को अपनी कथाओं के माध्यम से उठाया, उनमें देशभक्ति, आदर्श गृहस्थ, नारी शिक्षा और सम्मान तथा भ्रष्टाचार और अत्याचार के विरुद्ध वातावरण का निर्माण प्रमुख हैं। 

भ्रष्टाचार की सुरसा का दर्शन कराती ‘सेठ मल्लूराम’ की कथा में बताया गया है कि किस प्रकार सरकारी अधिकारी मासूम नागरिकों का शोषण करते हैं:

बाबू जी कह रहे रेल में बूढ़े टिकट ज़नाना है, 
पचास रुपये का होवेगा तेरे पर जुर्माना है॥
मर्दाना है टिकट ज़नाना हो गया व्यर्थ सवार॥”21 

वीरांगना लीलावती की कथा चन्द्रभानु आर्य की बहुत ज़्यादा गाई जाने वाली कथाओं में से एक है। यह पुलिसिया अत्याचार और भ्रष्ट आचरण के विरुद्ध एक महिला के उठ खड़े होने की रोमांचक कथा है। अंग्रेज़ी शासन में पुलिस का एक अलग ही ख़ौफ़ था। यह कथा एक साथ कई सामाजिक समस्याओं पर प्रहार करती है। लीलावती का शेरसिंह के साथ बेमेल विवाह हुआ:

रतनगढ़ में लौलावती एक रामसिंह की जाई थी। 
12 साल तक उस ने गुरुकुल देहरादून पढ़ाई थी॥
शेर सिंह बिल्कुल अनपढ़ था जिसके साथ विवाही थी। 
बिना मेल शादी कर दी ये पिता ने गलती खाई थी॥
गुण और कर्म स्वभाव मिले बिन जिसकी शादी होती है। 
सारी उम्र तक वो लड़की बस आँसू से मुँह धोती है॥22

बेमेल विवाह के कारण ही शेरसिंह आपत्ति के समय उचित निर्णय न ले सका और पुलिस के रोब में अपने कर्त्तव्य से च्युत हो गया। उस समय लीलावती अपने पति को उपालम्भ देती हुई मार्मिक पुकार करती है:

जब हुआ विवाह संस्कार किये जो इकरार 
सुनो प्रीतम क्यों उनको भुला रहे हो। टेक॥
मेरी रक्षा करने की गर आप मैं शक्ति नहीं थी। 
भरी सभा मैं उस दिन बतला क्यूँ मेरी भुजा गही थी॥
आज चल दिये मुझको छोड़, नर्क की ओड़, 
सुनो साजन क्यों उनको भुला रहे हो॥23

यह कथा उस समय की लिखी गई है जब आम लोग लड़कियों को पढ़ाना पाप समझते थे। लीलावती शिक्षिता होने के कारण ही सही समय पर अपने कर्त्तव्य का निर्धारण कर सकी। उसने न तो पलायन किया और न समर्पण। उसने युद्ध किया और नारी सशक्तिकरण का एक उदाहरण प्रस्तुत किया। 

इसी प्रकार की कथा ‘दरोगा हट्टी सिंह हंसाबाई’ की है। दरोगा एक निर्धन स्त्री का शोषण करने के लिए ग्राम के दबंग लोगों से मिलकर षड्यंत्र करता है। हंसाबाई की मार्मिक पुकार और निःसहायता को देखकर दरोगा की पत्नी का नारीत्व जागता है और वह उस पूरे षड्यंत्र की पोल अदालत में खोल देती है। नि:स्वार्थ कर्त्तव्यपरायण नारी का चरित्र चित्रण बख़ूबी किया गया है:

न्याय करो इन निर्दोषों का मेहरबान आज तुम। 
मौक़े का ये देख लियो सच्चा प्रमाण आज तुम॥
निर्धन का लियो राख भरोसा बन भगवान आज तुम। 
सच्चाई की रक्षा करना चन्द्रभान आज तुम॥24

इस कथा में नशाखोरी के दुष्परिणामों का भी मार्मिक चित्रण है। इसी प्रकार ‘शहीदों के जीवन’, ‘महर्षि दयानन्द जीवन गाथा’, ‘वीरवर राव तुलाराम’, ‘नीरा नागनी’ आदि कथाओं में चन्द्रभानु आर्य ने देश और समाज के सरोकारों के साथ अपने कवित्त्व का दायित्त्व निभाया है। ‘प्यार की जीत यानी हाय आजादी’ में वोट की राजनीति के दुष्परिणाम दिखाए गए हैं। 

निष्कर्ष:

इस प्रकार हम देखते हैं कि चन्द्रभानु आर्य रचनाओं के माध्यम ये विस्तृत विषय वस्तु का संस्पर्श करते हुए समाज के एक जागरूक प्रहरी के रूप में दिखाई देते हैं जो एक साहित्यकार का धर्म भी है। 

डॉ. नरेश कुमार सिहाग 
शोध निर्देशक एवम् अध्यक्ष हिंदी विभाग टॉटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर 

संदर्भ:

  1. चन्द्रभानु आर्य व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व 

  2. चन्द्रभानु आर्य संक्षिप्त जीवन परिचय

  3. कुछ याद रहा कुछ भूल गए चन्द्रभानु आर्य 

  4. शांतिधर्मी मासिक पत्रिका अक्तूबर 2006

  5. चन्द्रभानु आर्य व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व

  6. चन्द्रभानु आर्य: संक्षिप्त जीवन परिचय 

  7. चन्द्रभानु आर्य कृत भजन-इतिहास वाटिका

  8. भजन इतिहास महारानी पद्मिनी

  9. महारानी चन्द्रप्रभा का इतिहासः चन्द्रभानु आर्य

  10. भजन इतिहास सुन्दरबाई बीरसिंह

  11. चन्द्रभानु आर्य कृत भजन-इतिहास वाटिका

  12. उपर्युक्त

  13. भजन इतिहास राजा और रंक (चन्द्रभानु आर्य)

  14. उपर्युक्त

  15. भजन इतिहास पृथ्वीराज चौहान

  16. भजन इतिहास दो भाई

  17. ममता का बलिदान भजन इतिहास पन्ना धाय

  18. महर्षि विश्वकर्मा का भजन इतिहास

  19. भजन इतिहास किशोरी की शादी

  20. भजन इतिहास चाणक्य का एक प्रसंग

  21. कथा सेठ मल्लूराम

  22. भजन इतिहास वीरांगना लीलावत्ती

  23. उपर्युक्त

  24. भजन इतिहास दरोगा हट्ठी सिंह हंसाबाई

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टिप्पणियाँ

Krishan Chander Master 2024/01/17 07:42 PM

मै आदरणीय चन्द्रभानु जी के गांव से हूं। वे निस्संदेह उच्च कोटि के लेखक एवं गायक थे । उन्होने आर्य समाज का प्रचार प्रसार किया और जीवन पर्यन्त समाज सुधार मे लगे रहे । समाज मे फैली कुरीतियो को अपने भजनो एवं उपदेशो से दूर करते रहे ।उनका व्यक्तित्व महान था । वे अमर है। मै उन्हे कोटि कोटि नमन करते हूं।

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