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पंडितजी

पंडितजी, रामराम,

बोले,”कहो घनश्याम,
कैसे हो, कहाँ जा रहे हो।”

आपकी दुआ है,
बकरा खाने जा रहा हूँ।

शिवशिव
क्या बोले, तुम श्राद्धों में
कर्म क्यों खोटे किए हैं तुम दीवानों ने।

पैर छू कर जाने को हुआ
ले गए मुझे पकड़ एक कोने में

क्या घनश्याम सबके सामने कहते हो
घनश्याम होकर बकरे की बात करते हो।
रात की बात है तो सुन बेटा
सुरसुरा की छक तलब तो मुझे भी है
पर कहना किसी से न
बारह बजे प्रोग्राम होगा
छमिया के कोठे पर डांस होगा
चल चलना है ते बता।

सुन मैं कुछ हैरान हुआ
सारी बात सुन परेशान हुआ
क्या छमिया क्या पंडित
क्या श्याम क्या घनश्याम
शिवशिव

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