चीड़
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अरुणा घवाना26 Dec 2007
चीड़ के
इन ऊँचे ऊँचे वृक्षों पर
इक
घोंसले का ख़्वाब देखा,
ख़्वाब सपना था
या सच
पर चीड़ का वह
विशाल शाल देखा।
उस ऊँचे
शाल से फिर इक
भयानक शहर देखा
जल रहा था
जो कभी
आतंकवाद से
धर्म के नाम पर
आंदोलन की रौ पर
ख़्वाब सपना था
या सच
पर चीड़ का वह
विशाल शाल देखा।
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