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परीक्षा आयोग बीमार है

 

मैं एक परीक्षा आयोग के कार्यालय के सामने से गुज़र रहा था तो मेरी नज़र उसके प्रवेश द्वार पर टँगे एक बैनर पर पड़ी जिसमें लिखा था ‘परीक्षा आयोग बीमार है’। ‌ मेंने देखा कि मुख्यद्वार पर कुछ युवा धरना-प्रदर्शन भी कर रहे हैं। पूछने पर उन परीक्षार्थी युवाओं ने बताया कि अंकल देश में जितने भी परीक्षा आयोग हैं सब बीमार हैं। इनकी बीमारी का इलाज दुनिया के किसी डॉक्टर के पास नहीं है। इसकी बीमारी एड्स और कैंसर से भी भयंकर है। 

मेरी जिज्ञासा बढ़ी तो पूछा, “आख़िर इन परीक्षा आयोग को कौन-सी बीमारी हो गयी है जिसका इलाज सम्भव नहीं है?”

इस पर एक युवा ने बताया कि हमलोग दिन-रात मेहनत करके और परीक्षा के लिए किसी तरह फीस भर कर परीक्षा देने आते हैं और परीक्षा भी देते हैं लेकिन बाद में पता चलता है प्रश्नपत्र लीक हो गये हैं। अब आप ही बतायें कि इस बीमारी का इलाज क्या है? एक परीक्षार्थी परीक्षा दे और प्रश्नपत्र लीक हो जाने के बाद आयोग के अधिकारियों के पास पुनः परीक्षा कराने को लेकर गुहार लगाये या कोर्ट में याचिका दायर करे? 

वहाँ खड़े एक अन्य युवा ने तो यह भी कहा कि आयोग में चहेतों को ग्रेस मार्क देकर भी पास किया‌ जाता है। 

युवाओं की बातें सुनकर मैं सोचने लगा कि आयोग का मतलब ही होता है ‘आय का योग’। परीक्षा आयोग में वैसे ही लोग अधिकारी या कर्मचारी बहाल होते हैं जिनकी क़िस्मत में आय का योग होता है। तो ऐसे लोग ख़ाक साफ़-सुथरी परीक्षा करायेंगे। मुझे याद है कि एक राज्य के परीक्षा आयोग के अधिकारी के घर पर सीबीआई का छापा पड़ा था। तब उस अधिकारी के घर में रखे बिस्तर के‌ नीचे से भी रुपये मिले थे। तब तत्कालीन सीबीआई के निदेशक ने कहा था कि मैंने अपने जीवन में इतने रुपये कभी नहीं देखे। 

इसी बीच वहाँ खड़े एक युवा बेरोज़गार ने मुझसे कहा, “अंकल आपके ज़माने में तो परीक्षा आयोग मंदिर की तरह होते होंगे।”

मैंने उससे कहा, “तुम ठीक कहते हो। यही कारण है राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की कॉपी में परीक्षक को लिखना पड़ा कि परीक्षक से बेहतर परीक्षार्थी है। पहले परीक्षा आयोग के अधिकारी व कर्मचारी भगवान समझे जाते थे क्योंकि वे मेरिट के आधार पर परीक्षार्थी को नियुक्त कर उसे नया जीवन देते थे,” मैंने कहा, “अब जो भी आयोग हैं वे सभी सरकारी अस्पताल की तरह ख़ुद ही बीमार हैं। आयोग में काम करने वाले बीमार अधिकारियों व कर्मचारियों के इलाज के लिए देश में बेहतर चिकित्सकों की कमी है। यही कारण है कि आयोग का बेहतर इलाज नहीं हो पा रहा है।” 

मैं परीक्षा आयोग के समक्ष आंदोलनकारी परीक्षार्थियों से विदा लेकर यह सोचता हुआ आगे बढ़ गया कि अगर आज के ज़माने में मर्यादा पुरुषोत्तम राम होते तो कभी लंकापति रावण पर विजय नहीं पा सकते थे। अगर वे बानरों की सेना में नियुक्ति के लिए किसी आयोग का गठन करते तो आयोग के लोग ही प्रश्न पत्र या युद्धनीति को लीक करके रावण तक ख़बर भिजवा देते कि राम अमुक वीर योद्धाओं और अमुक अस्त्र-शस्त्र के साथ लंका पर चढ़ाई करने वाले हैं। 

किसी ने ठीक ही कहा है कि भला हुआ कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम बानरों को लेकर लंका पर चढ़ाई करने के लिए गये थे। अगर आज के ज़माने के लोग उनके साथ होते तो सोने की लंका देखकर ही लालच में रावण के पक्ष में खड़े हो जाते और रावण से कहते कि तुम मुझे कुछ सोना दे दो मैं तुम्हारे पक्ष में खड़े हो जाऊँगा। 

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