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पाठ्यक्रम में भाषा और उसकी भूमिका: एक विचारपरक विश्लेषण

भाषा कार्यात्मक होती है। यह मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह दूसरों पर प्रभाव डालने, अपनी बात बताने, सूचना देने, प्रश्न पूछने, इतिहास बताने और कहानियाँ सुनाने में काम आती है। यह समाज में संबंधों को बनाने और उन्हें क़ायम रखने में सहायक होती है। भाषा का मुख्य कार्य सम्प्रेषण करना है लेकिन यह चिंतन-मनन करने, सीखने-सिखाने तथा विचार-विमर्श करने का एक प्रमुख माध्यम भी है। विद्यालयी शिक्षा में भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राथमिक स्तर से लेकर सेकेंडरी व सीनियर सेकेंडरी स्तर तक छात्र/छात्राएँ भाषा के माध्यम से औपचारिक अनुदेशन प्राप्त करते हैं, इससे पहले वे घर में मूलतः अनौपचारिक रूप से भाषा सीखते हैं। चूँकि छात्र/छात्राएँ विद्यालय में अन्य सभी विषयों को भाषा के माध्यम से भाषा सीखते हैं, अतः भाषा में औपचारिक अनुदेशन पाठ्यक्रम के अन्य क्षेत्रों के अधिगम में सहायता प्रदान करती है। विद्यालय के सह पाठ्यक्रम गतिविधियों अथवा अन्य विषयों को सीखने में भी भाषा विशेष मदद करती है, साथ ही यह आत्माभिव्यक्ति में भी छात्र/छात्राओं की सहायता करती है, जिससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा (Language Across the Curriculum) की अवधारणा की शुरूआत शिक्षाशास्त्र, भाषा विज्ञान तथा सामाजिक-मनोवैज्ञानिक अध्ययन आदि क्षेत्रों में हुए अनुसंधानों से हुआ है। डॉ. पवन कुमार यादव मानते हैं—“सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बच्चों के साहित्य को पूरे पाठ्यक्रम के साथ संयुक्त करने पर आधारित भी है। साहित्य बच्चों को एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा वे प्राथमिक स्तर के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। बच्चों को उनकी योग्यताओं और रुचियों के अनुसार साहित्य को पढ़ने का मौक़ा दिया जाता है। सभी बच्चों को पढ़ने की स्वतंत्रता दी जाती है जिससे लंबे समय में जाकर सम्पूर्ण भाषा उनकी सृजनात्मक और आलोचनात्मक चिंतन को विकसित करती है।”1 पाठ्यक्रम के तहत भाषा विषय के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसमें ऐसी भाषा की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है जो विभिन्न पाठ्यक्रम से अलग है। यह एक उपागम है जो तीन शब्दों से मिलकर बना है। निम्नलिखित तालिका/Table के माध्यम से समझ सकते हैं:

 

भाषा (Language)

तहत/पार (Across)

पाठ्यक्रम (The Curriculum)

 

सीखने के माध्यम के रूप में

(Medium of learning)  

 प्रयोग (Use)

विषय वस्तु व अन्य क्रियाएँ

(Contents)

 

 पाठ्यक्रम के तहत भाषा की अवधारणा से अभिप्राय है स्कूल के सभी विषयों को भाषा के विषय के रूप में पढ़ाना। विषय के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें ऐसी भाषा की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है जो विभिन्न पाठ्यक्रम से अलग है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा एक प्रकार का पाठ्यक्रम उपागम है जो सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के माध्यम से भाषा के विकास पर बल देती है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा के अंतर्गत भाषा का विकास केवल भाषा शिक्षक का ही कार्य नहीं है बल्कि सभी विषयों के शिक्षकों का कार्य है क्योंकि भाषा ही सभी विषयों के ज्ञान का माध्यम है। डॉ. लता अग्रवाल लिखतीं हैं, “भाषा शिक्षण को केवल भाषा की कक्षा तक सीमित नहीं समझना चाहिए। इतिहास, भूगोल, विज्ञान, गणित आदि विषयों को भी भाषा से जोड़कर देखा जाना चाहिए। क्योंकि चाहे कोई विषय हो सर्वप्रथम उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम होती है भाषा। ऐसे में उसकी अवधारणा को सीखना, शब्दावली को जानना, विषय-वस्तु का अध्ययन मनन करते हुए उसकी समीक्षा करना, परस्पर चर्चा करते हुए संवाद शैली का प्रयोग करना, विभिन्न पत्र-पत्रिका, इंटरनेट आदि में विषय से संबन्धित जानकारी एकत्र करना। भाषा शिक्षण का ही तो अंग है।”2 पाठ्यक्रम के तहत भाषा ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य, टेक्नॉलोजी, कला, इतिहास, भूगोल, भाषा के निर्धारित पाठ्यक्रम से अलग ऐसी अध्ययन-अध्यापन की भाषा है, जिसकी जानकारी सभी विषयों के शिक्षकों को होना बहुत ज़रूरी होता है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा का प्रयोग विद्यालय के समय के दौरान भाषा की कक्षा के साथ दूसरे विषयों की कक्षा में भी संबंधित विषयों की भाषा सीखाना होता है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा शिक्षक के शिक्षण तथा विद्यार्थी के अधिगम से संबंधित भाषा होने के साथ-साथ पाठ्यक्रम, पाठ्यसहगामी व पाठ्यक्रमेत्तर भाषा है। वास्तव में सभी विषयों के ज्ञान प्राप्ति में भाषा का ज्ञान भी प्राप्त होता है। यह समझने की आवश्यकता है कि भाषा की शिक्षा केवल भाषा की कक्षा तक सीमित नहीं है। सभी अध्यापकों को पाठ्यक्रम के तहत भाषा ज्ञान की इस नयी तकनीक के महत्त्व को समझना ज़रूरी है। डॉ। उषा सिंगल व अंजू के शब्दों में–“विद्यालय के समय के दौरान भाषा की कक्षा के साथ दूसरे विषयों की कक्षा में भी भाषा सीखना होता है। यह पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाता है जो छात्रों को भाषागत कुशलताओं के प्रयोग का अवसर भाषाकक्षा के अलावा अन्य विषयों में भी प्रदान करता है। एल.ए.सी. एक प्रदान करता है जो छात्रों को भाषा कौशल का प्रयोग न केवल परंपरागत रूप से केवल भाषा सीखने में ही नहीं बल्कि शैक्षिक व व्यावसायिक विषयों के द्वारा भी भाषा पाठ्यक्रम की शब्दावली, संप्रत्य सिखाता है।”3 अध्यापकों का चाहिए कि छात्रों का विकास करने के साथ भाषा का भी विकास करें। पाठ्यक्रम के तहत भाषा पाठ्यक्रम को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने का कार्य करती है, जो छात्र/छात्राओं को भाषागत कुशलताओं के प्रयोग का अवसर भाषा कक्षा के अलावा अन्य विषयों में भी प्रदान करती है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा मार्गदर्शन करने के साथ प्रेरणा देने का भी कार्य करती है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा केवल परम्परागत रूप से भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती है बल्कि शैक्षिक व व्यावसायिक विषयों के द्वारा भी भाषा पाठ्यक्रम की शब्दावली, सम्प्रत्य सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है। 

1970 और 1980 के दशक के दौरान, शिक्षण लेखन के लिए नए दृष्टिकोण उभरे, क्योंकि शिक्षकों ने महसूस किया कि प्रभावी होने के लिए, लेखन का एक टुकड़ा एक विशिष्ट उद्देश्य और दर्शकों के अनुरूप होना चाहिए। इनमें से प्रमुख अमेरिकी-ब्रिटिश आधारित आंदोलन था जिसे पाठ्यचर्या के तहत लेखन के रूप में जाना जाने लगा। यह दृष्टिकोण इस आधार पर टिका है कि सभी शिक्षक, न कि केवल भाषा कला शिक्षक, लेखन के शिक्षक होने चाहिए। साक्षरता और सामग्री ज्ञान के बीच अलगाव को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया, यह दृष्टिकोण लेखन और संज्ञानात्मक विकास के बीच सम्बन्ध पर ज़ोर देता है, छात्रों को उद्देश्य और अनुशासन के लिए विशिष्ट विभिन्न शैलियों में लिखना सिखाता है। सबसे पहले यू.के. के शिक्षा मंत्रालय ने बुलॉक रिपोर्ट (1975) को अनुसरण करते हुए ब्रिटेन के स्कूलों की भाषा नीतियों के साथ भाषा को पाठ्यक्रम के तहत भाषा से जोड़ने की अवधारणा को औपचारिक मान्यता दी। बुलॉक रिपोर्ट के “ए लैंग्वेज फ़ॉर लाइफ़” शीर्षक में यह कहा गया है कि—‘स्कूल में पाठ्यक्रम के तहत भाषा के लिए एक संगठित नीति होनी चाहिए, जिससे स्कूली शिक्षा के पूरे वर्षों में भाषा और पठन के विकास में प्रत्येक शिक्षक की भागीदारी स्थापित हो।’(पृष्ठ 514) इस प्रकार भाषा आधारित पाठ्यक्रम ने इस अवधारणा को जन्म दिया है कि विभिन्न विषयों की विषयवस्तु भाषा को विभिन्न संदर्भों में प्रयोग करने के अवसर उपलब्ध कराती है। इसलिए इस उपागम को व्यापक स्तर पर अपनाया जाने लगा। पाठ्यक्रम के तहत भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसकी व्याख्या व विश्लेषण निम्नलिखित रूप की गई है:

1. भाषा व विषय से सम्बन्धित होने में भूमिका (Role of Integration in Language and Subject):

पाठ्यक्रम के तहत भाषा की सबसे बड़ी भूमिका होती है भाषा व विषय के तौर पर। अक्सर देखा जाता है कि भाषा व भिन्न-भिन्न विषयों के द्वारा भाषा का ज्ञान अलग-अलग सन्दर्भ में प्राप्त होता है। भाषा साहित्य, सामाजिक विज्ञान, गणित, विज्ञान आदि के ज्ञान से अलग-अलग परिस्थितियों में भाषा के प्रयोग की जानकारी मिलती है। भाषा के माध्यम से ही सभी विषयों की जानकारी प्राप्त होती है, ज्ञान प्राप्त करने का आधारशीला है। विषयों के अध्ययन करने के बाद बहुत सारी जानकारी प्राप्त होती है, जिसके द्वारा भाषा की व्यावहारिक कुशलता बढ़ती है। अतः पाठ्यक्रम के तहत भाषा द्वारा विषयों के सम्प्रत्य तथा विषयों द्वारा भाषा पर दक्षता निर्माण करने में विशेष भूमिका अदा करती है। 

2. भाषाई कौशल के विकास में भूमिका (Role in the development of linguistic skills):

पाठ्यक्रम के तहत भाषा उपागम द्वारा भाषा ज्ञान में कुशलता बढ़ती है, जिसके माध्यम से शिक्षक व विद्यार्थी दोनों ही ज्ञान बढ़ा सकते हैं। छात्र द्वारा शिक्षा प्राप्ति में स्वयं का प्रदर्शन बढ़ाने के लिए व शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम के तहत भाषा उपागम एक सहायक के रूप में कार्य करता है। साहित्य, कला, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान तथा वाणिज्य जैसे विभागों के ज्ञान से अलग-अलग परिस्थितियों में भाषा के प्रयोग की जानकारी मिलती है तथा सम्प्रेषण में हाव-भाव के साथ वास्तविक रूप से अभिव्यक्त करने की भाषाई कौशल भी सिखाती है।

3. पाठ्यक्रम को प्रभावपूर्ण सीखने में भूमिका (Role in Effective Way of Learning):

पाठ्यक्रम के तहत भाषा को प्रभावपूर्ण सीखने के लिए भाषा को विषय के रूप सीखा जाता है। उसका गहरा ज्ञान व कुशलतापूर्वक प्रयोग, दूसरे विषयों के माध्यम से सीखा जाता है। सभी विषयों की अलग-अलग शब्दावली समतुल्य इति है, उनका ज्ञान भाषा को भी समृद्ध करता है व प्रभावशाली तरीक से भाषा सीखी जाती है। पहले छात्र भाषा केवल ‘भाषा कक्षा’ में भाषा सीखता था और उसी कक्षा में प्रयास व अभ्यास भी करता था। परन्तु पाठ्यक्रम के तहत भाषा के द्वारा भाषा को सभी कक्षाओं व क्रियाओं में सीखता है। उदाहरण तौर पर देखें तो इतिहास पढ़ाने वाला शिक्षक सम्राट राजाओं, महान नेताओं के नाम आदि से अभ्यास करा सकता है। वहीं भाषा विषय का शिक्षक व्याकरण में विशेषण शब्द के बारे में सिखाता है तो विषय-वस्तु का अध्यापक पाठ में विशेषता बताने वाली शब्दों की पहचान करा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं प्रत्येक छात्र-छात्राओं में भाषा का विकास, भाषा का ज्ञानात्मक प्रयोग व स्कूल के प्रत्येक क्रिया में सहायता करती है।

4. संकल्पना निर्माण करने में भूमिका (Role in concept formation):

विद्यालय में अध्ययन के दौरान छात्र-छात्राओं का विषय चाहे जो भी हो सम्प्रत्ययों/ संकल्पनाओं का निर्माण भाषा के माध्यम से ही होता है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा संकल्पना निर्माण करने में भी मदद करती है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा के माध्यम से ही वे नए ज्ञान को पुराने ज्ञान से जोड़ कर सहजता से सीखने में मदद मिलती है। बोलने और लिखने के माध्यम से भाषा चिंतन प्रक्रिया से भी जुड़ जाती है।

5. भाषाई कौशलों का संशोधन करने में भूमिका (Role in Revision of Linguistic Skills):

भाषा शिक्षक-विद्यार्थी को भाषा के तरह-तरह कौशल सिखाता है। विषय अध्यापक सम्प्रत्य आरम्भ करने से पहले छात्रों के ज्ञान को पूर्ण रूप से जाँचता है। जाँचने के लिए प्रश्न उत्तर करता है, निर्देश देता है, छात्रों की अनुक्रिया सुनता है, पठन कार्य करवाता है तथा लेखन शक्ति को भी जाँचता है। इन सभी क्रियाओं के द्वारा विषय अध्यापक छात्राओं की श्रवण, लेखन, वाचन एवं पठन कौशनों का संशोधन करवाना है। विषय अध्यापक पाठ्यक्रम के तहत भाषा उपागम के अनुसार विषय की कक्षा में भी भाषा का ज्ञान प्रदान करके अपनी भूमिका निभाते हैं।

6. ज्ञान वृद्धि करने में भूमिका (Increase in Knowledge):

अध्ययन करते वक़्त जब दो विषयवस्तु का अध्ययन करते हैं तब ज़्यादातर सम्भावना होती है कि ज्ञान में बढ़ोत्तरी हो जाय। कहने का तात्पर्य यह है कि जब भाषा कक्षा में सैद्धान्तिक ज्ञान मिलता है वहीं विषय की कक्षा में भाषा का प्रयोग करने का ज्ञान मिलता है। पाठ्यक्रम के तहत भाषा के माध्यम से आगे किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर खोजना, बाँटना, विश्लेषण, विषय गहन अध्ययन आदि किया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि पाठ्यक्रम के तहत भाषा के माध्यम से भाषा व विषयवस्तु पर ज्ञान में बढ़ोत्तरी होती है। जिसकी वजह से अच्छी समझ का विकास होता है और नवीन ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग खुलने लगता है।

7. स्कूली गतिविधियों को सीखने में भूमिका (Role in learning school activities):

अपने विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के पार भाषा वह भाषा है जो विद्यालय की सभी गतिविधियों में किसी न किसी रूप में भूमिका निभाती है। यह शिक्षक के शिक्षण तथा विद्यार्थी के अधिगम से सम्बन्धित भाषा होने के साथ-साथ पाठ्यक्रम, पाठ्यसहगामी व पाठ्यक्रमेत्तर भाषा के रूप में भी भूमिका अदा करती है। पाठ्यक्रम के पार भाषा वह भाषा है जो अध्ययन, लेखन, शिक्षण और प्रस्तुतीकरण में सहायक है। इससे व्यवहारिक व प्रयोगिक ज्ञान प्राप्त होता है। अतः पाठ्यक्रम के पार भाषा के माध्यम से स्कूली गतिविधियों को सीख कर छात्र द्वारा शिक्षा प्राप्ति में स्वयं का प्रदर्शन बढ़ाने के लिए व शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए यह एक सहायक भूमिका के रूप में कार्य करती है।

8. भाषा नीति का निर्माण व क्रियान्वयन करने में भूमिका (Role in Formulation and Implemention of Language Policy):

पाठ्यक्रम के पार भाषा स्कूल को सभी अध्यापकों व सभी कक्षाओं के लिए एक समान भाषा नीति का निर्माण करना है तथा उसे लागू करना है। सभी अध्यापकों को एक नीति के अनुसार विषयवस्तु के माध्यम से भाषा ज्ञान प्रदान करना होता है। भाषा को सिखाने के लिए अध्यापकों को सहयोग देना व सहयोग लेने की योग्यता आ जाती है। स्कूल मुखियाओं को चाहिए कि सभी शिक्षकों को स्कूल की एक भाषा नीति बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों को विभिन्न विषयों के बारे में चर्चा करने के अवसर उपलब्ध कराए पूछने और उत्तर देने जाने चाहिए। इससे शिक्षक विभिन्न विषयों में बच्चों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में समझ सकते हैं और उनकी कठिनाइयों को दूर सकते हैं। इस प्रकार रटने की प्रवृत्ति को कम किया जा सकता है। लेकिन स्कूल की भाषा नीति बनाने में कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि पाठ्यक्रम के सभी विषयों में एक सामान्य भाषा नीति बनाने के लिए सभी शिक्षक समान रूप से सहमत नहीं होते। सबसे पहले शिक्षकों के दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।

स्नेहलता चतुर्वेदी अपनी पुस्तक ‘सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में भाषा’ के माध्यम से पाठ्यक्रम के तहत भाषा में होने वाली समस्याओं के लिए कई प्रश्न खड़े करते हुए लिखतीं हैं, “शिक्षा की व्यवस्था में भाषाओं का स्वाभाविक स्थान है। परन्तु भारत में भाषा-शिक्षा की एक समस्या बनी हुई है। इस सम्बन्ध में स्वतंत्रता के बाद के अनेक समितियाँ, आयोग तथा परिषदों ने अपनी संस्तुतियाँ दी हैं। राष्ट्र-भाषा तथा शिक्षा-व्यवस्था की भाषा की एक ही समस्या है। इस सम्बन्ध में कुछ मौलिक प्रश्न हैं:

  1. कितनी भाषाओं की शिक्षा आवश्यक है? 

  2. शिक्षा का माध्यम किस भाषा को बनाया जाए? 

  3. भाषा की शिक्षा के उद्देश्य और विस्तार व प्रयास क्यों हों? आदि विभिन्न समितियाँ, आयोगों तथा परिषदों ने इन्हीं प्रश्नों के समाधान हेतु अपनी-अपनी संस्तुतियाँ दी हैं।”4

अतः पाठ्यक्रम के तहत भाषा को सामान्य भाषा में समझें तो यह विद्यालय की समस्त पाठ्य विषयों या समस्त गतिविधियों के व्यवस्थित रूप तथा उनमें प्रयुक्त तकनीकी या पारिभाषिक भाषा के रूप में किसी न किसी प्रकार से व्याप्त है। इस प्रकार हम देखते हैं कि पाठ्यक्रम के तहत भाषा अध्ययन, अध्यापन, लेखन और प्रस्तुतीकरण में सहायक होती है। 

संदर्भ सूची:

  1. यादव कुमार डॉ. पवन, पाठ्यक्रम के तहत भाषा, लक्ष्मी बुक डिपो, भिवानी (हरियाणा), नवीन संस्करण, पृष्ठ संख्या-251 

  2. अग्रवाल डॉ. लता, पाठ्यक्रम में भाषा, राखी प्रकाशन प्रा.लि., आगरा (उ.प्र.), पुर्नसंस्करण: 2018, पृष्ठ संख्या-244 

  3. डॉ. उषा सिंगल, अंजू, पाठचर्या में भाषा, ठाकुर पब्लिशर्स, रोहतक (हरियाणा), प्रथम संस्करण: 2019, पृष्ठ संख्या-24 

  4. चतुर्वेदी स्नेहलता, सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में भाषा, प्रा.लि., आगरा (उ.प्र.), पुर्न संशोधित नवीन संस्करण: 2019, पृष्ठ संख्या-22-23

आनंद दास, सहायक प्राध्यापक, 
श्री रामकृष्ण बी.टी. कॉलेज (Govt.Spon), दार्जिलिंग
संपर्क-4 मुरारी पुकुर लेन, कोलकाता-700067,
ई-मेल-anandpcdas@gmail.com, 9804551685

 

 

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