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पिता को समर्पित हाइकु – 002 : रश्मि विभा त्रिपाठी ’रिशू’

1.
पिता के देश
जुगनू, चंदा, सूर्य
तथा उन्मेष।
 
2.
पिता का प्रेम
बाल कुशल-क्षेम
अभिलाषी है।
 
3.
पिता-विहान
तिमिर का प्रस्थान
सुनिश्चित है।
 
4.
पिता-प्रभात
उजास भरी प्रात
लो बीती रात।
 
5.
पिता-प्रदीप
करें अनोखी द्युति
तम की इति।
 
6.
पिता-वसंत
नव्य आस के बौर
हैं सिरमौर।
 
7.
पिता-गुलाब
कर कंटक-वास
बाँटी सुवास।
 
8.
पिता-पराग
बाल-भौंरे को बाग़
समूचा सौंपें।
 
9.
पिता-चन्दन
सर्वदा सुवासित
मन का वन!
 
10.
पिता-कुंदन
आग में हैं दहके
'और' महके!
 
11.
पिता-माणिक
यह दिव्य रतन
दे तृप्ति-धन।
 
12.
पिता-रजत
प्रभा से सदा भरे
स्वर्ण-से खरे।
 
13. 
पिता सर्वदा
रहे सत्य पे स्थिर
ज्यों युधिष्ठिर!
 
14.
पिता-दुर्वासा
यदा-कदा कुपित
संतान हित!
 
15.
पिता-वशिष्ठ
धर्म औ नीति पढ़ो
होओ उत्तिष्ठ!
 
16.
पिता-आचार्य
संस्कार शिरोधार्य
संतति करे।
 
17.
पिता हैं वैद्य
पा नेह-बूटी प्राण
पाते निदान।
 
18.
पिता-पावस
तोड़े जेठ का दर्प
बूँद-कन्दर्प।
 
19.
पिता-शिशिर
अति सौम्यता लाए
जेठ लजाए।
 
20.
पिता-बयार
दुख तिनके सारे
देते बुहार!
 
21.
पिता जेठ भी
दिखाएँ दे के धूप
जग का रूप!
 
22.
पिता वट-से
बाँधे जो दुआ-धागे
तो विघ्न भागे।
 
23.
पिता हैं स्तंभ
टूटेंगे सारे दम्भ
यदि गिरे तो!
 
24.
पिता-पयोधि
पर-पीड़ा स्वीकारे
हो गए खारे!
 
25.
पिता गंगा-से
छू पावन-चरण
हो उद्धरण!

26.
पिता धरा-से
सौ-सौ भार उठाए
तो भी मुस्काए!
 
27.
पिता माँ-से भी
सींचे मन-संसार
ममता धार!
 
28.
पिता बच्चों-से
बाल-खिलौना पाए
खिलखिलाए।
 
29.
पिता गिरि-से
प्रति पल तटस्थ
बाधाएँ पस्त!
 
30.
पिता गरीब
बात विदा की ठंडी
वर की मण्डी!
 
31.
पिता ज्योति-से
रहे स्वयं को बाल
शिशु का ख़्याल!

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