प्रतिक्रिया - 'चन्दन-पानी'
समीक्षा | पुस्तक चर्चा दिव्या माथुर29 Nov 2007
दिव्या के खयालों की एक अपनी ही तहज़ीब है, एक अपना ही अंदाज़ है, एक अपना ही मिज़ाज़ और लहज़ा है। उनका बिंब विधान सहज व स्वानुभूत यथार्थ से अभिप्रेरित होने के साथ साथ संगीतात्मक लय से भी संपन्न है। जीवन के सुखों और दुखों को छोटे छोटे शब्दचित्रों में प्रस्तुत करने में उनकी कविताऐं सक्षम हैं।
डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी
दिव्या का काव्य सृजन संस्कृति को सहेजने का एक खूबसूरत माध्यम है और चंदन पानी उसी का सार्थक प्रतिफल है, रचनाकार की दृष्टि की व्यापकता के साथ साथ उसके मर्म के फलक का भी अनायास ही पता चल जाता है।
पवन कुमार वर्मा
महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्
दिव्या का विधान सहज व स्वानुभूत यथार्थ से अभिप्रेरित होने के साथ साथ संगीतात्मक लय से भी संपन्न है।
गंगाप्रसाद विमल
दिव्या जी की कविताएँ जहाँ एक ओर मानव जीवन की सारहीनता, क्षणभंगुरता, छलना, असंतोष को वाणी देती हैं, वहाँ जीवन के उल्लास को भी मन में समेटे चलती हैं।
डॉ. कमल किशोर गोयनका
इन कविताओं में जहाँ तीखा क्षोभ है तो वहीं मार्मिकता भी है, संवेदनशील बुनावट है तो भावात्मक कसावट भी है- तमाम संगतियों विसंगतियों के बावजूद जो स्वर है वह तीव्रतम गतिशील है
वंशी माहेश्वरी, संपादक, तनाव
दिव्या की कविताएँ वस्तुतः ह्रततंत्री से स्वतः निसृत सतत शक्तिशाली संचारी भाव का ऐसा भावप्रवण प्रवाह है कि प्रतीत होता है कि कवियत्री ने अपनी समग्र रचनाधर्मिता को प्रिज्म बनाकर शब्दफलक पर संपूर्ण जीवन के जीवंत अनुभावों का अनायास परंतु सशिल्प मनोहारी इंद्रधनुष साकार कर दिया हो जिसके आलोक में अनुभूतियाँ पाठक पर अमिट छाप अंकित करने में सर्वथा समर्थ सिद्ध हैं। कवियत्री प्रतिभा के साथ साथ युगबोध, लोकचेतना, सृजनधर्मिता, संवेदनशीलता आदि भरपूर मुखर हैं।
विजय रंजन, संपादक, अवध अर्चना
ये कविताएँ अगर कहीं हमें कचोटती हैं, कहीं झकझोरती हैं तो कहीं आँखों के कोरों को आँसुओं से भर देती हैं। ये संवेदनाएँ एक भारतीय मन की हैं, नारी मन की हैं, आहत मानवीयता की हैं, हमारी हैं, आपकी हैं।
अनिल शर्मा ‘जोशी‘
दिव्या की कविता गहरी बात को सीधी सादी भाषा में कहने की क्षमता रखती हैं- समुद्र की गहराइयों को महसूस किया जा सकता है, लहरों की आवाज़ सुनी जा सकती है और शोर मचाती खामोशी को छुआ जा सकता है।
शिरीन इज़ाल
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