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राधेश्याम रामायण के रचयिता का फ़िल्मी सफ़र


समीक्षित पुस्तक: पं. राधेश्याम कथावाचक: फ़िल्मी सफ़र
लेखक: हरिशंकर शर्मा
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006 
संस्करण: 2023
पृष्ठ: 134
मूल्य: ₹150/- 

पंडित राधेश्याम कथावाचक हिंदी में रामायण की रचना के कारण सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध हैं। उनके नाटक ‘वीर अभिमन्यु’, ‘मशरिक़ी हूर’ आदि आज भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और भारतेंदु नाट्य अकादमी में खेले जाते हैं। पं. राधेश्याम ने रामायण और नाटकों के अलावा भी अनेक पुस्तकों का प्रणयन किया था, लेकिन पिछली सदी में न तो उन पर कोई शोधकार्य हुआ और न ही उन पर कोई पुस्तक आई। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कथावाचक जी का पत्रकारिता पक्ष भी उपेक्षित रह गया। वर्ष 1963 में तिहेत्तर वर्ष की अवस्था में पंडित जी के निधन के बाद ‘राधेश्याम रामायण’ और कुछेक नाटकों को छोड़कर उनका शेष सृजन विस्मृति के कोहरे में विलीन होता चला गया। 

सुविख्यात आलोचक मधुरेश ने पंडित जी की उपेक्षा के इस क्रम को तोड़ा। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से 2010 में पंडित जी के नाटकों पर आई उनकी समीक्षात्मक पुस्तक ‘राधेश्याम कथावाचक’ को काफ़ी सराहना मिली। यद्यपि मधुरेश की पुस्तक से पहले डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी के निर्देशन में वर्ष 2000 एवं 2009 में राधेश्याम कथावाचक पर दो शोधकार्य हो चुके थे और पंडित जी के जीवन काल में ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1950 में एक शोधकार्य होने की भी अपुष्ट सूचना मिलती है, लेकिन इनमें से किसी भी शोधकार्य का पुस्तक के रूप में प्रकाशन न होने के कारण कथावाचक जी की रचनाओं का मूल्यांकन प्रकाश में न आ सका। पंडित जी के नाटकों पर एक और समीक्षात्मक पुस्तक ‘नाटककार पंडित राधेश्याम कथावाचक’ 2014 में आई जो शिक्षाविद् डॉ. अशोक उपाध्याय ने लिखी थी। 

पिछले कुछ वर्षों से जयपुर निवासी वरिष्ठ लेखक हरिशंकर शर्मा पं. राधेश्याम के सृजन के सभी पक्षों पर निरन्तर लिख रहे हैं। पंडित जी पर उनकी पहली पुस्तक ‘पं. राधेश्याम कथावाचक: सफ़र एक सदी का’ 2014 में आई जिसमें पंडित जी पर समय-समय पर प्रकाशित उनके महत्त्वपूर्ण लेख संगृहीत हैं। कथावाचक जी की अप्रकाशित डायरी पर आधारित उनकी पुस्तक ‘पं. राधेश्याम कथावाचक: डायरी का व्याकरण’ 2019 में आई। उनके संपादन में ‘पं. राधेश्याम कथावाचक: रंगायन’ पुस्तक 2020 में प्रकाशित हुई जिसमें देश के अनेक लेखकों के कथावाचक जी के विभिन्न पक्षों पर लेख हैं। पं. राधेश्याम द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘भ्रमर’ पर उनका एक ग्रंथ ‘भ्रमर पत्रिका का शताब्दी वर्ष’ 2021 में आया जिसमें इस ऐतिहासिक महत्त्व की पत्रिका पर कई शोधपरक लेख हैं। उल्लेखनीय है कि पं. राधेश्याम कथावाचक ने 1921 में बरेली (उत्तर प्रदेश) में राधेश्याम प्रेस की स्थापना की थी। इसी प्रेस से उनकी ‘भ्रमर’ पत्रिका का प्रकाशन होता था। उस समय इसकी 25000 प्रतियाँ प्रकाशित होना एक बड़ी बात थी। हरिशंकर शर्मा की दो और पुस्तकें ‘राधेश्याम रामायण: विविध आयाम’ एवं ‘जीवन की नींव’ 2022 में प्रकाशित हुईं। ‘जीवन की नींव’ में शर्मा जी ने पं. राधेश्याम के कृतित्व की विशेषताओं पर लेख लिखे हैं। इसी में पंडित जी के प्रबंध काव्य ‘कृष्णायन’ पर भी आलेख है जिससे विदित होता है कि पं. राधेश्याम राम-भक्त ही नहीं थे, बल्कि कृष्ण-भक्त भी थे। 

बहुत कम लोग जानते हैं कि राधेश्याम कथावाचक कुछ समय के लिए फ़िल्म जगत से भी जुड़े थे और विभिन्न क्षमताओं में उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना योगदान दिया था। उनके इस लगभग अज्ञात पक्ष को उजागर करती है हरिशंकर शर्मा की पुस्तक ‘पं. राधेश्याम कथावाचक: फ़िल्मी सफ़र’ जो हाल ही में प्रकाशित हुई है। 

लेखक के अनुसार कथावाचक जी के फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश का उद्देश्य सनातन धर्म की पताका फहराना था। वह फ़िल्मों के माध्यम से समाज सुधार करना चाहते थे। उनका फ़िल्मी सृजन वेश्यावृत्ति, जाति प्रथा और ऊँच-नीच के विरोध में था। वह देश प्रेम की भावनाओं को सुदृढ़ करना चाहते थे और स्त्री शिक्षा तथा हिंदी भाषा का प्रसार करना चाहते थे। संक्षेप में कहा जा सकता है कि फ़िल्मों के माध्यम से वे श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को समाज में प्रतिष्ठित करना चाहते थे। 

पं. राधेश्याम कथावाचक ने 1931 में आई ‘शकुन्तला’ फ़िल्म के गीत और संवाद लिखे थे तथा इस फ़िल्म के अधिकांश दृश्यों को निर्देशित भी किया था। उन्होंने 1933 में आई ‘श्रीसत्यनारायण’ फ़िल्म की पटकथा और गीत लिखे थे। ‘उषा हरण’ फ़िल्म उनके द्वारा लिखित कथा पर 1940 में बनी थी। सोहराब मोदी की फ़िल्म ‘झाँसी की रानी’ (1953) के लिए पंडित जी ने आठ गीत लिखे थे। फ़िल्म ‘कृष्ण सुदामा’ (1957) के लिए भी गीत लिखे थे। वर्ष 1960 में बेहद सफल रही फ़िल्म ‘श्रवण कुमार’ पंडित जी द्वारा लिखित कथा पर ही आधारित थी। इन फ़िल्मों में पंडित जी का नाम या तो ‘राधेश्याम बरेलवी’ दिया जाता था या फिर ‘पं. राधेश्याम'। 

हरिशंकर शर्मा कथावाचक जी द्वारा लिखीं वे पटकथाएँ भी प्राप्त करने में सफल रहे हैं जिन पर फ़िल्में नहीं बन पाईं। इनमें ‘धन्ना भगत’, ‘उद्धार’, ‘आज़ादी’ तथा ‘श्रीकृष्णावतार’ के नाम उल्लेखनीय हैं। शर्मा जी कहते हैं कि कितना ही सुन्दर होता, यदि ये पटकथाएँ उस समय समाज के सामने आ जातीं, तो वे फ़िल्मों में फैली हुई गंदगी को मिटाने में सफल होतीं। इन पटकथाओं में पं. राधेश्याम द्वारा लिखित उत्कृष्ट गीत व संवादों के अतिरिक्त हर दृश्य के चित्रांकन के लिए निर्देश भी हैं। पुस्तक में ‘झाँसी की रानी’ (1953) फ़िल्म के लिए कथावाचक जी द्वारा लिखे गए जोशीले गीत दिए गए हैं। इनके अलावा वह गीत भी इसमें है जिसका फ़िल्म में प्रयोग नहीं किया गया, लेकिन वह बहुत महत्त्वपूर्ण था। उस गीत की पंक्तियाँ हैं—‘आर्यवीरो, बजें अब तो रणभेरियाँ/ टेरती हैं तुम्हें देश की शक्तियाँ/ देवताओं महाकाल होकर बढ़ो/ देवियाँ बन चुकी हैं महाकालियाँ/ आज तलवार ही उनका शृंगार है/ कल तलक जिनके हाथों में थीं चूड़ियाँ/ उनसे कह दो-उठाया जिन्होंने है सर/ सर पर टूटेंगी अब बनके हम बिजलियाँ/ तुम तो नर हो, न पीछे हटाना क़दम/ बढ़ती जाती हैं आगे ही जब नारियाँ।’ हरिशंकर शर्मा को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने पंडित जी के उस सृजन को भी प्रकाशित कर दिया है जो हस्तलिखित ही रह गया था। शर्मा जी को फ़िल्म ‘श्रीसत्यनारायण’ की हस्तलिखित पाण्डुलिपि भी प्राप्त हो गई। इसका लाभ यह हुआ कि इस फ़िल्म की पटकथा के साथ-साथ इसके अर्थपूर्ण गीत भी पाठकों को इस पुस्तक में प्राप्त हो गए हैं जो कि पूर्णतया विस्मृत हो गए थे। 

पिछली सदी में पं. राधेश्याम कथावाचक की रचनाओं पर जो ग्रामोफोन रिकॉर्ड तैयार किए गए थे उनके बारे में पुस्तक में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। ये रिकॉर्ड एच.एम.वी. ग्रामोफोन, बी.एल. फोन, कोलम्बिया ग्रामोफोन तथा ट्यून ग्रामोफोन कम्पनी ने तैयार करवाए थे। इनमें स्वर दिया था—नारायण गोस्वामी, मिस दुलारी, जानकी बाई, रामकृष्ण चौबे, गिरिजाशंकर चतुर्वेदी, भरत लाल एवं मिस शांता एण्ड पार्टी ने। कथावाचक जी द्वारा लिखित ‘राधेश्याम रामायण’ को भी कई लोगों ने गाया था तथा उसके रिकॉर्ड तैयार हुए थे। एच.एम.वी. कम्पनी के अधिकांश रिकॉर्डों में नारायण गोस्वामी का गायन है। सन् 1945 में नारायण गोस्वामी को प्रति रिकॉर्ड 100 रुपये भुगतान मिलता था जो कि उस समय बड़ा पारिश्रमिक था। पंडित जी के ‘वीर अभिमन्यु’ नाटक को कोलम्बिया कम्पनी ने आठ खण्डों में रिकॉर्ड किया था। ट्यून ग्रामोफोन कम्पनी ने ‘शकुन्तला’ नाटक तैयार किया था जो छह खण्डों में था। 

पुस्तक के अंत में एक अध्याय पं. राधेश्याम कथावाचक के शिष्य मास्टर फ़िदा हुसैन ‘नरसी’ पर है जिन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक हिंदी रंगमंच और सिनेमा में अभिनेता और गायक के रूप में अपना योगदान दिया था। सवाक फ़िल्मों के आरम्भिक दौर की एक दर्जन से अधिक फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया था। अपनी सफलताओं के लिए उनके मन में सदैव अपने गुरु पं. राधेश्याम के प्रति कृतज्ञता-भाव रहा। फ़िदा हुसैन बीस वर्षों तक प्रसिद्ध ग्रामोफोन रिकॉर्ड कम्पनी हिज़ मास्टर्स वॉयस (एच.एम.वी.) के डायरेक्टर रहे थे और उन्होंने भजन, गीत, ग़ज़ल, व नाटकों के 200 ग्रामोफोन रिकॉर्ड अपने निर्देशन में तैयार कराए थे। उन्होंने ‘राधेश्याम रामायण’ के ‘केवट प्रसंग’ का भी 1936 में रिकॉर्ड तैयार करवाया था। 

हरिशंकर शर्मा पं. राधेश्याम कथावाचक पर अब तक इतनी पुस्तकें लिख चुके हैं कि भविष्य में कथावाचक जी पर शोध करने वालों को शर्मा जी की इन पुस्तकों से अनिवार्य रूप से गुज़रना होगा। 

–रणजीत पांचाले
 

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टिप्पणियाँ

रमेश गौतम 2023/06/05 09:39 PM

राधेश्याम कथावाचक:फिल्मी सफर की समीक्षा पढ़कर पं राधेश्याम जी के बहुत से अपरिचित पक्षों का प्रमाणिक परिचय प्राप्त हुआ। इस महत्वपूर्ण कृति के रचयिता हरिशंकर शर्मा जी को इस हेतु बधाई। पांचाले जी ने समीक्षा में उन सभी बिन्दुओं पर समीक्षा को केन्द्रित किया है जो पंडित जी के रचनाकर्म को सम्पूर्ण करते हैं ।एक रचनाकार को उसकी सम्रगता के साथ समझने के प्रस्तुत समीक्षा सार्थक प्रयास है।

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