संकल्प (महर्षि त्रिपाठी)
कथा साहित्य | लघुकथा महर्षि त्रिपाठी24 May 2016
रवि हर रोज़ की तरह आज भी कॉलोनी के बच्चों को पार्क में खेलता हुआ, अपनी खिड़की से देख रहा था। वह हमेशा से इन बच्चों के साथ खेलना चाहता था, उनसे दोस्ती करना चाहता था परंतु वह भगवान के अभिशाप का शिकार था। रवि के दाहिने पैर में बचपन से ही विकार था, जिससे वह आम बच्चों की जमात में शामिल नहीं किया जाता था। आज वह काफ़ी अशांत था, शायद आज वह कई दिनों की ख़ामोशी तोड़ना चाहता था। आख़िरकार उसने अपनी ख़ामोशी तोड़ी और एक बच्चे से उसने कहा - "भैया मुझे भी लुका-छिपी वाला खेल खेलना है।" "चुप कर लंगड़े, ठीक से खड़ा होना भी नहीं आता और तू खेलने चला है, इडियट," बच्चे ने कहा। तभी उन्हीं बच्चों की टोली से एक और बच्चे ने व्यंग्य कसा, "जब तू हमारे लेवल का हो जायेगा तब आकर खेलना।" "तू लंगड़ा है, तू कुछ नहीं कर सकता है, लंगड़े!" सभी ने उसकी चुटकी ली। "तू लंगड़ा है, तू कुछ नहीं कर सकता है, लंगड़े!"- ये बात मानो रवि के मन में घर कर गयी। उसने लज्जा से अपना सिर अन्दर कर लिया। रवि को अपने संकल्प पर पूरा भरोसा है उसे पता है, वह क्या कर सकता है। कुछ दिनों पहले ही जिले स्तर का सामान्य ज्ञान का कॉम्पटीशन था, उसमें रवि सहित कॉलोनी के भी बच्चे थे। रवि ने बड़े ही उत्साहपूर्वक परीक्षा पूर्ण की थी। शाम को ही कॉम्पटीशन का परिणाम आ गया, कॉलोनी के बच्चे जो शारीरिक रूप से स्वस्थ थे किसी का भी नाम शीर्ष १० में नहीं था, मगर दृढ़ संकल्पी रवि ने जिले में तीसरा स्थान प्राप्त किया। कॉम्पटीशन के साक्षात्कार में जब उससे ये पूछा गया कि आपने ये कैसे किया; तो उसने मात्र इतना कहा - "मेरा संकल्प मेरे साथ है"। रवि के इस वाक्य से पूरे सदन में तालियाँ गूँज उठीं। रवि ने कॉलोनी के बच्चों को यह संकल्प लेने पर मजबूर कर दिया था कि वे किसी भी शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति का मज़ाक नहीं उड़ायेंगे। |
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