श्यामला
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा विनय कुमार1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
श्यामला सोकर सुबह उठी तो उसे पक्षियों की चहचहाहट बहुत मधुर लग रही थी। श्यामला की सास उसे कुछ दिन के लिए मायके भेजने के लिए मान गई थी।
श्यामला की शादी हुए दस वर्ष से अधिक का समय हो गया था। शादी के बाद वह एकबार भी अपने मायके नहीं गई थी। उसकी सास बड़े क्रूर स्वभाव की थी। वह बात-बात पर श्यामला को ताने मारती रहती थी। वह श्यामला के प्रत्येक काम में कोई न कोई कमी निकालती रहती थी। शांत स्वभाव वाली श्यामला बड़े संयम के साथ जीवन की डगर पर आगे बढ़ रही थी। बार-बार मन्नतें करने के बाद अब उसकी सास उसे मायके भेजने के लिए मान गई थी।
सास ने श्यामला से कहा, “बहु, मायके जाने से पहले इन सफ़ेद चादरों को धो देना। इनको चितरे (सबसे सफ़ेद फूल) के फूल की तरह साफ़ करना।”
मायके जाने की ख़ुशी में उत्साहित श्यामला बोली, “जी, माँ जी।” श्यामला चादरों को धोने के लिए उन्हें गठरी में बाँध कर बावड़ी की तरफ़ चल दी।
श्यामला की सास बहुत चालाक थी। उसने चादरों को रात भर गंदे तेल में भीगो रखा था। श्यामला बावड़ी पर पहुँच कर चादरों को धोने लगी। वह उन्हें बार-बार साबुन लगाकर धोती रही लेकिन चादरें साफ़ ही नहीं हो रहीं थी। मायके जाने की ख़ुशी में उत्साहित श्यामला उन्हें बार-बार धोती रही।
इस तरह से वर्षों बीतते रहे। ऋतुएँ आती रहीं और जाती रहीं। श्यामला के सिर पर शैवाल उग आया।
एक दोपहर को सूर्य और चंद्र बावड़ी पर पानी पीने आए। वे दोनों श्यामला को चुड़ैल समझकर डर गए। शैवाल जमा श्यामला का शरीर चुड़ैलों की तरह भयानक लग रहा था। सूर्य ने हिम्मत जुटा कर श्यामला से कहा, “हे! चुड़ैलों की रानी, मैं सूर्य और यह मेरा छोटा भाई चंद्र है। हम प्यासे हैं। कृपा करके हमें बावड़ी से पानी पीने दें।”
कपड़े धोने में मग्न श्यामला ने उनसे कहा, “मैं कोई चुड़ैलों की रानी नहीं हूँ। मैं सूर्य और चंद्र की छोटी बहन श्यामला हूँ। मैं इन चादरों को धो रही हूँ ताकि ये चादरें चितरे के फूल की तरह सफ़ेद हो सकें और फिर मेरी सास मुझे मेरे मायके जाने दे सके।”
ये सुनकर सूर्य और चंद्र चौंक गए। उन्होंने श्यामला के शरीर पर जमे शैवाल को साफ़ कर दिया और वे अपनी छोटी बहन को अपने साथ ले गए।
जब यह बात श्यामला की सास को पता चली तो वह क्रोधित हो उठी। उसने श्यामला को वापस ससुराल लाने अपने बेटे को भेज दिया। ससुराल जाने से बचने के लिए श्यामला दिन में सूर्य के पीछे और रात में चंद्र के पीछे छिप जाती है।
जब वह दिन में सूर्य के पीछे छिपती है तो सूर्य ग्रहण और जब रात में चंद्र के पीछे छिपती है तो चंद्र ग्रहण लगता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सांस्कृतिक कथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं