आस्था का प्रतीक:अवाह देवी माता मंदिर
आलेख | सांस्कृतिक आलेख विनय कुमार1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
अवाह देवी माता मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी और हमीरपुर ज़िले की सीमा पर स्थित एक प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थल है। अवाह देवी क़स्बा आधा मंडी और आधा हमीरपुर ज़िले में पड़ता है। अवाह देवी हमीरपुर ज़िले की सबसे ऊँची चोटी है यहाँ से जनेत्री धार, मुराह देवी और रिवालसर का नैणा देवी मंदिर दिखाई देते हैं। मान्यता है कि अगर मुराह की पहाड़ियों पर बर्फ़ गिरती है तो अवाह देवी में भी बर्फ़ गिरती है। अवाह देवी में पिछला हिमपात सन् 1992 ई. में हुआ था।
अवाह देवी माता मंदिर अपने ख़ूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ देवी जालपा के रूप में माँ अवाह देवी की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के आस-पास की सुंदरता और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण गंतव्य बनाती है। यह मंदिर हमीरपुर शहर से लगभग चौबीस और सरकाघाट शहर से चौदह किलोमीटर दूर एक पहाड़ी की चोटी पर है। अवाह देवी मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है और यह देवी जालपा के रूप में माँ अवाह देवी को समर्पित है। मंदिर के ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से आस-पास के मनोरम दृश्यों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, जिसमें झरने और हरे-भरे जंगल शामिल हैं। मंदिर का मुख्य द्वार मंडी ज़िले की तरफ़ है। मंदिर के सामने वाली चोटी पर पिरामिड शैली में बना बाबा बालक नाथ का सुंदर मंदिर है। मंदिर के बाईं तरफ़ को कमलाह और अनंतपुर के क़िले दिखाई देते हैं। इन क़िलों का हिमाचल प्रदेश के इतिहास में विशेष स्थान है। इन्हीं क़िलों की पहाड़ियों पर बाबा कमलाहिया और माता कंचना के मंदिर स्थित हैं। मंदिर के दाईं ओर को लदरौर में माता संतोषी देवी का मंदिर दिखाई देता है। मंदिर के सामने धौलाधार पर्वत शृंखला अपनी मनोरम छटा बिखेरती है।
सन् 1966 ई. से पहले अवाह देवी क़स्बा और साथ में बहती बाकर खड्ड पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा बनाती थी। वर्तमान में यह हमीरपुर और मंडी की सीमा बनाती है। श्रद्धालु माता रानी का आशीर्वाद लेने के लिए नवरात्रों के दौरान विशेष रूप से बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। श्रद्धालु पैदल यात्रा, प्रकृति की सैर का आनंद ले सकते हैं और शांत वातावरण में समय बिता सकते हैं। दिव्यांग और बुज़ुर्ग श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में लिफ़्ट का निर्माण भी किया जा रहा है जो जल्दी ही पूरा हो जाएगा। शानदार पृष्ठभूमि इस जगह की सुंदरता को और बढ़ा देती है। माँ जालपा को स्थानीय लोगों द्वारा कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। माँ जालपा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की कुल देवी हैं।
मंडी और हमीरपुर की सीमा पर स्थित होने के कारण अवाह देवी क़स्बा सदा से ही प्रशासन की अनदेखी का शिकार रहा है। श्रद्धा और पर्यटन का इतना बड़ा स्थल होने के बावजूद यहाँ पर टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है।
देवी का आशीर्वाद पाने और अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते हैं। अवाह देवी क़स्बा एक प्रसिद्ध जंक्शन के रूप में कार्य करता है क्योंकि बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा और ऊना से आने वाली सड़कें इस स्थान से होकर गुज़रती हैं। मंदिर पहुँचने पर भक्तों का स्वागत इसकी उत्कृष्ट वास्तुकला और जटिल नक़्क़ाशी से होता है जो बीते युग की कुशल कारीगरी का प्रदर्शन करती है। मंदिर की सीढ़ियों व मुख्यद्वार का निर्माण अपने माता पिता के सम्मान में रणधीर ठाकुर निवासी सधोट, सरकाघाट ने करवाया है। मंदिर के साथ लगती बाबा गोरखनाथ की कुटिया का निर्माण ग्रयोह ज़िला परिषद वार्ड की ज़िला परिषद सदस्य वंदना गुलेरिया ने करवाया है। मंदिर के सामने वाली चोटी पर स्थित बाबा बालकनाथ के मंदिर का निर्माण मंदिर प्रबंधन समिति ने श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ावे में चढ़ाए गए पैसों से करवाया गया है। मंदिर का प्रबंधन एक स्थानीय समिति द्वारा किया जाता है। जिसका चयन स्थानीय लोगों, जो मंदिर समिति के सदस्य होते हैं द्वारा चुनाव से किया जाता है। मंदिर की पूर्व समिति द्वारा माता के गहने गिरवी रखने और अन्य कई गड़बड़ियाँ सामने आईं। जिसके बाद आस-पास की पंचायतों द्वारा सर्वमत से प्रबंधन समिति के लिए चुनाव बंद कर दिए गए और समिति के सदस्यों को पंचायतों द्वारा मनोनीत किया जाने लगा।
माता अवाह देवी का आशीर्वाद लेने से सौभाग्य, सुरक्षा और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इसीलिए यह मंदिर दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है जो अपनी श्रद्धा प्रकट करने और ईश्वरीय कृपा पाने के लिए तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं। मंदिर के गर्भगृह में दो पुजारी बैठते हैं। एक मंडी ज़िले का और दूसरा हमीरपुर ज़िले का। जब मंडी के लोग माता के दर्शन करते हैं तो मंडी का पुजारी टीका लगाता है और जब हमीरपुर के लोग माता के दर्शन करते हैं तो हमीरपुर का पुजारी टीका लगाता है। मंदिर के पुजारी राजपूत जाति के हैं।
अवाह देवी मंदिर की यात्रा मंदिर की तरह ही मनमोहक है। जैसे ही पर्यटक पहाड़ी की चोटी तक घुमावदार रास्तों से आगे बढ़ते हैं उन्हें हरी-भरी घाटियों और राजसी पहाड़ों के मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं। यहाँ का शांत और सुकून भरा वातावरण एक आध्यात्मिक वातावरण बनाता है जो तुरंत आत्मा को आनंदित कर देता है। मंदिर का निर्माण शिखर शैली में किया गया है वहीं सामने वाली चोटी पर स्थित बाबा बालकनाथ के मंदिर का निर्माण पिरामिड शैली में किया गया है। मुख्य मंदिर के साथ भगवान शिव का मंदिर, बाबा श्रवणनाथ का मंदिर, बाबा जोतनाथ का मंदिर और गोरखनाथ का अखाड़ा भी है।
अपने धार्मिक महत्त्व के अलावा अवाह देवी मंदिर एक सांस्कृतिक स्थल भी है जो इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत को सँजोए हुए है। यह मंदिर इतिहासकारों, वास्तुकला प्रेमियों और जिज्ञासु यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है जो इसकी प्राचीन दीवारों के भीतर छिपे रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। स्थानीय समुदाय अपने सदियों पुराने मंदिर पर बहुत गर्व करता है और आगंतुकों का गर्मजोशी से स्वागत करता है, मंदिर से जुड़ी लोककथाओं और किंवदंतियों को साझा करता है। मंदिर से जुड़ी कई लोककथाएँ और किंवदंतियाँ हैं।
एक लोककथा के अनुसार हमीरपुर के कुछ लोग माँ जालपा की मूर्ति को चुराकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। वे रात को मूर्ति को चुराकर अपने साथ ले गए। तब मंडी ज़िले के पुजारी जालपू को माँ ने स्वप्न में दर्शन दिए और चोरों से मूर्ति वापस लाने को कहा। माँ ने जालपू को उड़ने की शक्ति प्रदान की। जालपू उड़ता हुआ चोरों के ठिकाने पर जा पहुँचा और चोरों को बाँधकर वहाँ से मूर्ति को वापस मंदिर ले आया। मूर्ति चोरी से रुष्ट माँ जालपा ने वापस अवाह देवी में विराजमान होने से मना कर दिया। तब पुजारियों ने माँ की स्तुति की। माँ जालपा दोबारा अवाह देवी में इस शर्त पर विराजमान होने के लिए तैयार हो गई कि उनका मुख मंडी ज़िले की ओर और पीठ हमीरपुर ज़िले की तरफ़ रहेगी। पुजारियों ने माँ जालपा की यह शर्त मान ली। तब से माँ की मूर्ति का मुख मंडी ज़िले की तरफ़ और पीठ हमीरपुर की तरफ़ है।
बीस बर्ष पूर्व मंदिर में निर्माण कार्य के दौरान खुदाई के समय प्राचीन मंदिर के अवशेष और कुछ सिक्के मिले। मंदिर के अवशेषों के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस प्राचीन मंदिर का निर्माण कमलाह क़िले के राणा ने करवाया था। राणा माँ का अनन्य भक्त था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार मंदिर का निर्माण मंडी के राजा ने करवाया था। वक़्त के साथ यह मंदिर ज़मीन में दफ़न हो गया। वर्तमान मंदिर के निर्माण का श्रेय बाबा श्रवणनाथ को जाता है। बाबा श्रवणनाथ पंजाब के रहने वाले थे। वे मणिमहेश की तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। अवाह देवी से गुज़रते समय यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता ने उनका मन मोह लिया। वे यहीं पहाड़ी की चोटी पर एक कुटिया बनाकर रहने लगे। उन्होंने ने ही यहाँ माँ जालपा के मंदिर की स्थापना की। वे नित्य प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर माँ की पूजा किया करते थे। बाबा श्रवणनाथ एक तेजस्वी पुरुष थे। स्थानीय लोग माता के दर्शन करने के बाद उनके सत्संग में बैठा करते थे। धीरे-धीरे लोगों में उनकी मान्यता बढ़ने लगी। इलाक़े का ज़मींदार सपरिवार माता के दर्शन के लिए आया। माता के दर्शन करने के बाद वह बाबा की कुटिया में गया। ज़मींदार को अपने धन के ऊपर बहुत अहंकार था। उसने बाबा को प्रणाम नहीं किया। अपितु वह बाबा से अभिवादन की अपेक्षा रखता था। बाबा ने उसके साथ सामान्य लोगों की तरह ही बर्ताव किया। ज़मींदार इससे रुष्ट हो गया। उसने बाबा को सबक़ सीखाने की सोची। उसने रात को मंदिर से मूर्ति चोरी करने के लिए चोरों को भेजा। चोर मंदिर से मूर्ति चुरा ले आए। लेकिन सुबह होते ही मूर्ति अपने आप मंदिर में वापस पहुँच गई। ज़मींदार की आँखों की रोशनी चली गई। उसने कई वैद्यों को दिखाया। कई तांत्रिकों से टोने-टोटके करवाए। लेकिन उसकी आँखों की रोशनी वापस नहीं आई। अंत में वह हारकर बाबा श्रवणनाथ के पास माफ़ी माँगने पहुँचा। बाबा ने उसे माफ़ कर दिया। ज़मींदार की आँखों की रोशनी वापस आ गई। ज़मींदार ने वहाँ काठकुनी शैली में मंदिर का निर्माण करवाया। बाबा श्रवणनाथ ने पूरी उम्र माता की सेवा की और अंत में समाधि ले ली। माता के मंदिर के साथ उनके मंदिर का निर्माण किया गया है। उनकी पुण्यतिथि के दिन प्रतिवर्ष मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। उनके मंदिर के साथ उनके चेले जोतनाथ का मंदिर भी बनाया गया है। बाबा जोतनाथ ने भी बाबा श्रवणनाथ की तरह समाधि ली थी।
वर्तमान समय में मंदिर प्रबंधन समिति में हुई गड़बड़ियों के चलते मंदिर के सरकारीकरण की माँग ज़ोर पकड़ रही है। स्थानीय लोगों द्वारा इस संदर्भ में उप-मंडलाधिकारी को ज्ञापन सौंपे गए हैं। लोगों को निकट भविष्य में मंदिर के सरकारीकरण की आशा है। अवाह देवी मंदिर के दर्शन न केवल एक धार्मिक अनुभव है बल्कि मंडी और हमीरपुर की प्राकृतिक सुंदरता को निहारने का एक अवसर भी है। इस क्षेत्र के मनोरम दृश्य जिनमें झरनों, हरे-भरे जंगलों और कल-कल करती नदियों का संगम शामिल है, प्रकृति प्रेमियों और साहसिक प्रेमियों, दोनों के लिए एक आदर्श विश्राम स्थल है। पर्यटक प्राकृतिक दृश्यों के साथ पैदल यात्रा, प्रकृति की सैर कर सकते हैं या बस आसपास के शांत वातावरण का आनंद ले सकते हैं जिससे मंदिर की शान्ति उनके मन में समा जाए। अवाह देवी मंदिर मंडी और हमीरपुर की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है। इसका सदियों पुराना इतिहास, मनमोहक स्थान और एक पूजनीय तीर्थस्थल के रूप में इसका महत्त्व इसे दिव्यता से गहरा जुड़ाव चाहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक दर्शनीय स्थल बनाता है। चाहे आप भक्त हों, इतिहास प्रेमी हों या प्रकृति प्रेमी; अवाह देवी मंदिर एक ऐसा अद्भुत और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करता है जो एक अमिट छाप छोड़ देता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अक्षय तृतीया: भगवान परशुराम का अवतरण दिवस
सांस्कृतिक आलेख | सोनल मंजू श्री ओमरवैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया का…
अष्ट स्वरूपा लक्ष्मी: एक ज्योतिषीय विवेचना
सांस्कृतिक आलेख | डॉ. सुकृति घोषगृहस्थ जीवन और सामाजिक जीवन में माँ…
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
सांस्कृतिक आलेख | डॉ. सुकृति घोषजपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं। …
अहं के आगे आस्था, श्रद्धा और निष्ठा की विजय यानी होलिका-दहन
सांस्कृतिक आलेख | वीरेन्द्र बहादुर सिंहफाल्गुन महीने की पूर्णिमा…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सांस्कृतिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं