सुख कम हैं, दुःख हज़ार
शायरी | ग़ज़ल चेतन आनन्द15 May 2014
सुख कम हैं, दुःख हज़ार बुजुर्गों के वास्ते।
कैसी समय की मार बुजुर्गों के वास्ते।
जो फूल थे, औलादें उठा करके ले गईं,
बाकी बचे जो खार बुजुर्गों के वास्ते।
गैरों को करें रोज़ ही ईमेल, एसमएस,
चिठ्ठी न कोई तार बुजुर्गों के वास्ते।
बेटा गया विदेश तो बेटी न पास है,
बस यादें बेशुमार बुजुर्गों के वास्ते।
बेटों ने जो ज़मीन थी आपस में बाँट ली,
जो था बचा उधार बुजुर्गों के वास्ते।
सेवा करेगा इनकी तो आशीष मिलेंगे,
चेतन तू हो तैयार बुजुर्गो के वास्ते।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं