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सुनयना

शादी के पूरे आठ साल बाद सायना और विनय के घर में किलकारी गूँजी, तो जैसे उन्हें एक नई दुनिया मिल गई थी। क़स्बे के हर एक व्यक्ति को पता चल चुका था कि सायना और विनय के घर में लम्बे इंतज़ार के बाद कोई मेहमान आया है। दोनों ने कितनी मिन्नतें माँगी थीं। कितने देवी-देवताओं के यहाँ सिर ढोका था। शादी के तीसरे साल बाद जब डॉक्टर ने सायना को कहा कि मातृत्व सुख तुम्हारे नसीब में नहीं है, तो उस रात रो रोकर दोनों की आँखें सूज गई थीं। फिर वर्षों यही सोचकर ही शायद हमारे नसीब में बच्चे है ही नहीं, उन्होंने क़िस्मत को स्वीकार लिया था। मगर दोनों की प्रार्थना काम आई। 

बच्ची का नाम रखा सुनयना। मोटी-मोटी आँखों वाली सुनयना अपने पिता विनय की जान थी। एक पल भी वह ख़ुद को उससे दूर नहीं रखता। सायना की साँसें तो उसे देखे बिना चलती ही नहीं थी। अब हर हफ़्ते सुनयना के लिए नए कपड़े, खिलौने लाना दोनों का रूटीन बन चुका था। सायना सुनयना की पैदाइश के बाद कभी पीहर नहीं गई। विनय अब तक कई सरकारी टूर रद्द करवा चुका था। सुनयना तीन साल की हो चुकी थी। वह चलने लगी। पड़ोस के बच्चे नज़दीक ही स्थित मोंटेसरी स्कूल में पढ़ने जाते, तो वह भी उनके साथ हो लेती। सायना उसे अभी स्कूल नहीं भेजना चाहती थी। लेकिन विनय के समझाने पर उसे स्कूल भेजा जाने लगा। 

तीन सदस्यों के छोटे से परिवार की गृहस्थी के आँगन में खिलखिलाहट अभी शुरू ही हुई थी। मगर जो नियत होता है, वह कभी नहीं टाला जा सकता। 

एक दिन अचानक स्कूल की बाई सुनयना को गोदी में उठाकर घर की ओर दौड़ी आ रही थी। सुनयना की चिल्लाने की आवाज़ सुन सायना घर से बाहर निकलकर आई। 

”क्या हुआ?” सायना किसी अनजाने डर से ज़ोर से चिल्लाई। सुनयना की चिल्लाने की आवाज़ ने उसे भीतर से घबरा दिया था। 

“सुबह से पेट को पकड़ कर बैठी थी। मगर जब ज़्यादा दर्द हुआ, तो भागकर आना पड़ा। शायद पेट में दर्द हो रहा है.” बाई ने सायना की ओर देखते हुए कहा। सुनयना ने बाई की गोद से सुनयना को खींचकर गले से लगा लिया। सुनयना को लेकर सायना क़स्बे के लोकप्रिय डॉक्टर असीम के पास पहुँची। उधर विनय भी तब तक पहुँच चुका था। काफ़ी देर तक जाँच करने के बाद डॉक्टर बाहर आया, उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। डॉक्टर के चेहरे को देखकर विनय और सायना को किसी बुरे की आशंका होने लगी। दोनों की आँखें डॉक्टर की आँखों पर टिकी थी। पता नहीं डॉक्टर क्या बता दें। 

“लगता है सुनयना का प्यार आप लोगों की क़िस्मत में नहीं है,” काफ़ी देर बाद विनय के कंधे पर हाथ रखते हुए डॉक्टर ने कहा। 

“ये क्या कह रहे हैं डॉक्टर साहब? सालों की मिन्नतों से हमें एक बेटी मिली है और आप कह रहे हैं कि . . .” इतना कह कर सायना सुबकने लगीं। 

“मैं ठीक कह रहा हूँ विनय साहब,” डॉक्टर ने कहा। 

सायना रोते हुए चिल्लाई, “आप सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते डॉक्टर साहब कि आख़िर बात क्या है?” 

“विनय साहब . . .” डॉक्टर की ज़ुबान फिर लड़खड़ाई, “विनय साहब . . . आपकी बेटी के भीतर टेस्टोस्टेरोन ग्रंथी विकसित हो रही है। उसके भीतर पुरुषों के लक्षण तेज़ी से विकसित हो रहे हैं,” इतना कहक़र डॉक्टर ने लम्बी चुप्पी ली। 

यह सुन सायना तेज़ी से क्लिनिक के भीतर दौड़ी और वहाँ आधी नींद में सो रही सुनयना को गोद में उठाकर ज़ोर-ज़ोर से सुबकने लगी। सुनयना ने सायना के आँसुओं से भीगे चेहरे को हाथों में लेकर मासूमियत से कहा, “माँ क्यों रो रही हो?”

सायना के इस भोले सवाल पर फिर से सायना फूट पड़ी। विनय धीमे क़दमों से भीतर आया। मगर एकदम जड़वत। 

सुनयना के चेहरे और सायना के आँसुओं से भीगी आँखों को देखकर विनय को लगा जैसे उसकी पूरी दुनिया ही उजड़ गई। उसका मन जड़ हो चुका था। उसकी आँखों से भी आँसू टपक पड़े। 

इस बात को कई दिनों तक दोनों ने छिपाए रखा। लेकिन धीरे-धीरे क़स्बे में बात बनने लगी। इस बात की किसी को भी भनक न लगे, इसलिए सुनयना का स्कूल जाना भी बंद करवा दिया। सुनयना के तो जैसे मज़े हो गए। घर में उसकी उछल-कूद के बावजूद सायना और विनय तिल-तिल कर मर रहे थे। सायना ने अब आस-पास के किसी भी कार्यक्रम में जाना बंद कर दिया था। वह सुनयना को एक पल भी ख़ुद से दूर नहीं होने देती। विनय भी दफ़्तर से लम्बी छुट्टियाँ लेकर घर बैठ गए। जब कभी सुनयना पापा के ऑफ़िस नहीं जाने के बारे में पूछती, तो विनय बड़े प्यार से उसे समझाता—बेटा अब हम आपके साथ घर में खेला करेंगे। और वह ख़ुशी से उछल पड़ती। सुनयना के इस ख़ुशी पर दोनों बाहर से ख़ूब हँसते, मगर रातों-रात घुटते रहते। 

क्लिनिक से आने से लेकर अब तक उन्हें जिस बात का डर सता रहा था। वह आज सामने था। धीरे-धीरे फैलती हुई यह ख़बर पड़ोस से वहाँ तक पहुँच गई, जिससे बचने के लिए दोनों ने सुनयना को पूरी दुनिया से छिपाए रखा था। क़स्बे से पच्चीस मील दूर मिन्नत बाई, जो इलाक़े के हिजड़ा समुदाय की प्रमुख थी तक यह बात पहुँच चुकी थी। और आज वह अपने पाँच-छह साथियों और क्रियाविधि के साथ सायना और विनय के घर की चौकठ पर थी। 

“ला बाई . . . हमारा माल हमें दे दे। यह हमारे लिए ही है,” ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ पीटते हुए मिन्नत बाई ने पुकारा, तो आसपास के लोग भी इकट्ठे हो गए। 

मिन्नत बाई ने सायना की गोद में चिपकी सुनयना को छीनने की कोशिश की। 

सायना ने पूरे ज़ोर से सुनयना को अपनी छाती से चिपका लिया और दहाड़ मारकर रोने लगी, “मेरी सुनयना को बचा लो . . . मेरी सुनयना को बचा लो। हे भगवान ये कैसा न्याय है तेरा?” वह बेसुध सी इकट्ठे हुए लोगों से मदद की गुहार करने लगी। 

विनय जड़वत बेबस सा खड़ा था। वहाँ खड़े कई लोगों की रुलाई फूट गई। कई लोगों ने सायना को दिलासा देने की कोशिश की। सुनयना को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। माँ को रोते देख, वह भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। 

“ला बाई अब इस पर तेरा कोई हक़ नहीं है। यह हमारी जमात की है,” मिन्नत बाई ने फिर ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ पीटते हुए कहा। मिन्नत बाई ने पूरा ज़ोर लगाकर सायना से सुनयना को छीनकर अपने साथियों को पकड़ा दिया। 

“बाई यह तेरे लिए नहीं बनी है। इसकी क़िस्मत हमारे यहाँ ही है,” मिन्नत बाई ने दरवाज़े से बाहर निकलते हुए उसे समझाने की ग़रज़ से कहा। 

सुनयना मिन्नत बाई की साथियों की गोद से छूटने के लिए मचलती रही, “मम्मा–मम्मा मुझे आपके पास रहना है . . .” मगर उन्होंने उसे कसकर पकड़ लिया। 

सायना गला फाड़-फाड़ कर इतने ज़ोर से दहाड़ने लगी . . . ”सुनयना . . . मेरे बेटे . . . मेरी सुनयना को छोड़ दो।”

“मम्मा मुझे कहाँ ले जा रहे ये लोग. . .” सुनयना की रोती हुई धीरे-धीरे धीमी होती जा रही आवाज़ सुन आधी बेहोश सायना अचेत हो गई। 

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