स्वीमिंग पूल
संस्मरण | बच्चों के मुख से सुनीता सिंह1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
स्थानांतरण वाली नौकरी थी सो सिंह दम्पती ने सेवानिवृत्ति के बाद राज्य की राजधानी वाले शहर में बिल्डर से एक डुप्लेक्स ख़रीदा।
इस डुप्लेक्स में कुछ दिनों तक मि. सिंह ने अकेले रहकर वुड-वर्क कराया फिर परिवार को ले गए।
मकान में प्रवेश द्वार के पास दायीं ओर गेराज था जबकि बायीं ओर लगभग 12 बाई 12 फीट का लॉन था। गार्डनिंग में रुचि होने से पहुँचते ही श्रीमती सिंह ने लॉन देखा वअगले दिन से उसमें तरह-तरह के पौधे लगाने शुरू कर दिए। उनकी 4 वर्षीय छोटी पोती पीहू रोज़ ग़ौर से देखती रहती।
एक दिन दादी-पोती सवेरे-सवेरे बाहर निकले तो पीहू ने देखा कि लॉन ग़ायब; लॉन वाली पूरी जगह में लगभग 6 फ़ीट गहरा गड्ढा।
पीहू हैरानी से बोली, "दादी, दादी! आपकी खेती कहाँ गई, मुझे लगता है कोई चुरा ले गया है दादी!!"
"अरे पीहू! मुझे लगता है कि बब्बा जी स्विमिंग पूल बनवा रहे हैं," यह पीहू की बड़ी बहिन 8 वर्षीय मिट्ठू जी के बोल थे, जो न जाने कब आकर पीछे खड़े हो गई थी।
मिट्ठू की बात सुनकर दादी की हँसी छूट पड़ी।
वास्तव में हुआ यह था कि लॉन में पौधे रोपते समय श्रीमती सिंह ने देखा कि मिट्टी में गिट्टी, टाइल्स के टुकड़े आदि बहुतायत में होने से पौधे लगाने में कठिनाई तो होती ही है। पौधे ठीक से पनप भी नहीं पा रहे हैं, सो उन्होंने मिट्टी बदलवाने के लिए लॉन की पूरी मिट्टी निकलवा दी थी। नई मिट्टी आज डाली जानी थी। दोनों पोतियाँ इस बात से अनजान थीं।
श्रीमती सिंह ने नाश्ते के समय दोनों पोतियों की उपस्थिति में ही यह घटना मि. सिंह को बताई तो वह कहते हैं- "ओह, अनुमान लगाने की ग़ज़ब की शक्ति ! शाबाश बेटियो!" ....फिर हँसते हुए बोले, "आख़िर पोतियाँ किसकी हैं!"
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