बच्चे की दूरदर्शिता
संस्मरण | बच्चों के मुख से आशा बर्मन1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
उन दिनों हमारा छः वर्षीय बेटा अनुज डेकेयर जाया करता था। तभी हमारे एक मित्र सपरिवार कुछ दिनों के लिए हमारे घर ठहरे। उनके समवयसी बेटे के साथ अनुज की अच्छी दोस्ती हो गयी थी। जिस दिन वे लोग टोरोंटो का वंडरलैंड देखने जा रहे थे उन्होंने कहा कि वे अनुज को भी अपने साथ ले जाना चाहते हैं। हमारी सम्मति पाकर दोनों बच्चे बहुत ख़ुश हुये। काम पर जाते समय घर की चाभी देकर उन्हें हमने समझा दिया कि कौन सा दरवाज़ा कैसे लॉक करना है।
शाम को लौटने पर घोष दादा ने मेरे पति से कहा कि "आपने तो अपने बेटे को बड़ी अच्छी ट्रेनिंग दी है।” पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि जब वे वंडरलैंड देखने जा रहे थे, तो अनुज ने उन्हें रोक कर कहा कि “जाने से पहले मुझे ख़ुद ही दरवाज़ों को चेक करना है” और उसने ऐसा किया भी। पूछे जाने पर कि उसने दरवाज़े दुबारा क्यों चेक किये, उसने उत्तर दिया, "डैडी का तो सारा पैसा बैंक में रहता है, मेरा तो सब घर में ही है।” उसकी इस बात से सबका बड़ा मनोरंजन हुआ।
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