ज़ूम
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता आशा बर्मन1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सारी दुनिया कर रही ज़ूम का व्यवहार,
ज़ूम द्वारा ही हो रहा संबंधों का विस्तार।
संबंधों का विस्तार, भूले हम खाना पीना,
इसने ही किया संचालित, अपना जीना।
ज़ूम करते ही बीता जाता है दिन सारा,
व्यस्त हो गया है हर मानव बेचारा।
सुबह है योगा क्लास, शाम कवि सम्मलेन,
दोपहर को संगीत-सभा का है आयोजन।
पुरानी दिनचर्या का हुआ काम तमाम,
समयानुसार खाना पीना, सभी हुआ हराम।
कम्प्यूटर पर होती बच्चों की पढ़ाई,
दफ्तर के कार्य सभी इसीसे होते भाई।
बदली जा रही है कार्य- प्रणाली सारी,
ऑनलाइन हो रही सारी ख़रीदारी।
कम्प्यूटर के सामने बैठा सारा परिवार ,
ऐसा लगता यही हमारे जीवन का आधार।
इसकी महिमा से हम प्रभावित भैया,
यही हमें नचा रहा है ता-ता थैया।
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