परामर्श
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता आशा बर्मन1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
सब ओर एक ही शोर,
महँगाई का सब ओर ज़ोर।
एक ही वस्तु रह गयी सस्ती
परामर्श दे दूजों को
स्वयं करो मस्ती।
न कोई ख़र्च, न कोई श्रम
अपनी जानकारी का
सेलफोन द्वारा या मेल से
सलाहकार बेबाक चले आते हैं,
कभी स्वयं लिखते, कभी
दूसरों द्वारा भेजा गया
संदेसा ही भिजवाते हैं |
ज्ञान की करते रहते हैं बरसात,
ऐसा ज्ञान, जिसका मर्म
उन्हें स्वयं ही नहीं ज्ञात।
ज्ञान देना तो है सहज,
अब कौन मारे मगज,
कॉमेंट्स लिखने-लिखाने में,
‘लाइक’ आदि का बटन दबाने में,
कुछ समय तो जाता ही है बीत ,
अनमोल पल हो जाते हैं व्यतीत।
मेल पढ़नेवाला भी या तो
सरसरी निगाह से उसे देख
कर देता है डिलीट, अथवा
बिन पढ़े ही, उसे फारवार्ड कर
दूसरों के सर दे मारता है।
अपनी समस्या को
दूसरों से सर लादकर,
चैन की साँस लेकर
निश्चिन्त हो जाता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
स्मृति लेख
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
साहित्यिक आलेख
कार्यक्रम रिपोर्ट
कविता - हाइकु
गीत-नवगीत
व्यक्ति चित्र
बच्चों के मुख से
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं