करोना काल की चुनौतियों को संभावनाओं में बदलती हिंदी
आलेख | साहित्यिक आलेख आशा बर्मन15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
पिछले तीन 3 वर्षों से 2020 से 2023 तक सारा विश्व करोना से पीड़ित था और बहुत लोगों ने अपनों को सदा-सदा के लिए खो दिया। इसके साथ लोगों के लिए यह भी कष्टप्रद रहा कि सबका घर से निकलना ही बंद हो गया। यह एक ऐसा समय था कि हमारी जीवन प्रणाली परिवर्तित हो गयी थी। करोनाकाल में एक ओर जीवन की गतिविधियाँ सीमित हो गईं थीं पर साथ ही साथ ऐसे कठिन समय में आशीर्वाद के रूप में हमें मिला ‘ज़ूम तथा गूगल मीट’ आदि जिसके द्वारा हम घर में भी रहकर सारे विश्व से, कई देशों के हिंदी के विद्वानों से जुड़ सके। एक प्रकार से हमारे लिए यह था ‘ब्लेसिंग इन डिसगाइज़।’
जहाँ तक हिंदी का प्रश्न है, हमारी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में करोना कॉल की चुनौतियों को हिंदी प्रेमियों ने संभावनाओं में बदला इसमें कोई भी संदेह नहीं है। ज़ूम तथा गूगल मीट आदि इन तकनीकी साधनों से बहुत लाभ हुआ। कई ऐसी गतिविधियाँ हुई जिनसे हमारी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में वृद्धि हुई।
हिंदी के विद्वान हरीश नवल जी के अनुसार “करोना काल हिंदी के लिए एक अत्यंत उत्पादक समय रहा है”। जिसमें विभिन्न प्रकार से कई देश मिलकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में अनायास ही सहयोगी हो गए थे। ऐसा लग लग रहा था कि वैश्विक मंच में वसुधैव कुटुंबकम की भावना चारों दिशाओं में व्याप्त हो गई थी। हिंदी राइटर्स गिल्ड ने, हिंदी साहित्य के लिए बहुत कुछ किया।
भारतवर्ष के केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी जी ने वैश्विक हिंदी परिवार की परिकल्पना की और इसे कार्यान्वित किया। उनकी प्रेरणा से वैश्विक हिंदी परिवार की स्थापना हुई, जिसमें प्रत्येक रविवार को लगभग 2 घंटे तक सारे विश्व के हिंदी साहित्य से संबंधित कई विद्वान लोग इस में जुड़ जाते हैं और कहानी, कविता, लघु कथा इत्यादि कई विषयों पर हिंदी प्रेमियों से विचार-विमर्श किया जाता है। इस संस्था के कार्यक्रम 150 से भी अधिक की संख्या में हर रविवार को नियमित रूप से प्रसारित हुए जिसमें विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों ने हिंदी के विद्वानों ने भाग लिया। सबसे बड़ी विशेषता ऐसे कार्यक्रम की यह थी कि इसमें सभी हिंदी प्रेमियों का स्वागत किया गया। इन्होंने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं को लिया और भिन्न भिन्न दृष्टियों से वार्ताएँ की गयीं। ये कार्यक्रम सार्थक व् उद्देश्यपरक होते थे।
अनिल जोशी जी ने एक मीटिंग में यह कहा कि करोना कष्ट का समय अवश्य था पर उससे लोगों ने अच्छा लाभ उठाया है। जैसे हरीश नवल जी ने उपन्यास लिखा इत्यादि। साहित्य के लिए यही एक उर्वर ज़मीन के रूप में सिद्ध हुई जिसमें बहुत सारे लेख लिखे गए। कई पुस्तकों का प्रकाशन विमोचन हुआ। प्रकाशित नयी पुस्तकों की भी चर्चा की गयी। भारतवर्ष में प्रकाशन के क्षेत्र में वास्तविकता क्या है, इससे भी सभी परिचित हो सके। वैश्विक परिवार में कई सहयोगी संस्थाओं को भी जोड़ा गया उससे उनका परिवार और बढ़ा।
इस आभासी मंच पर एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय पर विशद रूप से बातचीत की गयी कि विदेशों में हिंदी का शिक्षण कैसे किया जाए। विदेश में पढ़ाने वाले कई शिक्षक किस प्रकार हिंदी पढ़ाते हैं इसके बारे में बातचीत हुई, इस प्रकार के कार्यक्रमों से हमारी अगली पीढ़ी के हिंदी शिक्षण को भी नई दिशा मिली।
वैश्विक हिंदी परिवार में ‘विदेशों में प्रवासी साहित्य’ की विशद चर्चा की गयी। सबसे बड़ी बात यह हुई सारे संसार को यह पता चला कि प्रवासी साहित्यकार भी अच्छा लिखते हैं वे किसी भी दृष्टि से भारत के लेखकों से कम नहीं है। यद्यपि उनकी रचनाएँ भारत के लेखकों से कुछ अलग हैं, देश परिवेश अलग है तो यह तो स्वाभाविक है। अनिलजी ने एक स्थान पर यह कहा कि प्रवासी साहित्य में जो एक प्रकार की मुक्तता है, ‘सिक्रेसी’ नहीं है, इसके साथ-साथ भारतीय मूल्य भी हैं, वह भारत के लेखकों में नहीं मिलता। सत्येंद्र जी के अनुसार प्रवासी लेखकों में सच कहने की हिम्मत है, साथ ही साथ उनमें भारत की संवेदनशीलता तो है ही। अनिल जी ने यह भी कहा कि एक प्रवासी साहित्यकार विदेश में रहकर जो अनुभव करता है वह एक भारतवासी लेखक नहीं कर सकता। इस दृष्टि से कैनेडा, अमेरिका या आस्ट्रेलिया के हिंदी लेखन में भी भिन्नता रहेगी। अतः अभी लेखन का समुचित आकलन होना चाहिए।
वैश्विक हिंदी परिवार में न केवल साहित्य चर्चा होती है, वरन् भारत में माइक्रोसॉफ़्ट में कार्यरत हिंदी के विद्वान बालेंदु जी ने आभासी मंच पर बहुत सुंदर प्रस्तुति द्वारा लोगों को हिंदी में कंप्यूटर की शिक्षा दी। माइक्रोसॉफ़्ट के एक्सेल वर्ल्ड इत्यादि की भी चर्चा हिंदी में की। हिंदी के विद्वान श्री राजेश कुमार जी ने प्रौद्योगिक शिक्षा भी दी, जिसके माध्यम से लोग पॉवर पॉइंट में अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियाँ कर सकें। इसके साथ ही ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस’ के विषय में भी भी काफ़ी बातचीत हुई। इन कार्यक्रमों से यह भी ज्ञात हुआ कि हमारी हिंदी में तकनीकी शब्द भी पर्याप्त मात्रा में हैं, इस दृष्टि से हिंदी का प्रचार प्रसार हुआ और लोगों को हिंदी भाषा के सामर्थ्य का भी ज्ञान हुआ।
इन आभासी मंचों के द्वारा हिंदी के महान साहित्यकारों को जिनको हम बचपन से पढ़ते सुनते आ रहे थे उनसे हमारा साक्षात्कार इन कार्यक्रमों के द्वारा हुआ, जैसे मालती जोशी जी, कमल किशोर गोयनका जी, नरेंद्र कोहली जी, ज्ञान चतुर्वेदी जी, सूर्यबालाजी, चित्रा मुग्दल जी, हरीश नवल जी, इत्यादि।
यह भी ज्ञात हुआ कि विदेशी लोग भी हिंदी के कार्यक्रमों में, हिंदी के पठन-पाठन में, इतनी रुचि रखते हैं। जापान से मीजोकामी जी प्रत्येक रविवार को हमारे वैश्विक परिवार से जुड़ते हैं। वे हिंदी, बँगला, पंजाबी कई भारतीय भाषाओं के विद्वान हैं। हमारे भारतवासियों के लिए बहुत गर्व की बात है कि जिस हिंदी को भारतवर्ष में कई लोग नहीं बोलना चाहते हैं विदेशों में हिंदी की कितनी इज़्ज़त है।
हिंदी का एक दूसरा आभासी अंतरराष्ट्रीय मंच है ‘वातायन’ जो यूके से प्रसारित किया जाता है और इसकी संचालिका हैं दिव्या माथुर जी। वातायन ने गत वर्ष से एक नया कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। यह कार्यक्रम यूके के वातायन तथा कैनेडा के हिंदी राइटर्स गिल्ड के सहयोग से आभासी मंच पर किया जाता “दो देश दो कहानियाँ”। इसमें 2 देशों के दो कहानीकार अपनी कहानी प्रस्तुत करते हैं और उसी विधा के विद्वान कहानियों की समीक्षा भी करते हैं। इससे न केवल हम लोग नयी कहानी सुनते हैं कहानी के तत्त्व क्या है उससे भी परिचित होते हैं, यह शिक्षाप्रद भी है। इस कार्यक्रम में सुमन घई जी तथा विद्याभूषण धर जी ने अपनी कहानियाँ प्रस्तुत की हैं।
इस करोना काल में हिंदी राइटर्स गिल्ड ने कई ऑनलाइन कवि गोष्ठियाँ कीं, उदाहरण के लिए 10 दिसंबर 2021 की शाम को हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की गोष्ठी संपन्न हुई। इस करोना काल में ज़ूम संगोष्ठी का होना एक बड़ी उपलब्धि है। इससे दूर-दूर स्थानों से हिंन्दी-प्रेमी परस्पर जुड़ सके तथा परस्पर एक दूसरे की रचनाओं का आनंद ले सके। इस प्रकार हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के सभी सदस्यों के सहयोग से एक सुंदर कार्यक्रम का आयोजन आभासी मंच पर किया गया।
करोना काल की एक और उपलब्धि रही फ़ेसबुक लाइव गोष्ठियाँ। इस करोना काल में हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने कई फ़ेसबुक लाइव गोष्ठियाँ कीं जैसे 11 सितंबर 2021 शनिवार को ने एक अत्यंत प्रभावशाली फ़ेसबुक का आयोजन किया, जिसका विषय था ‘भक्ति काल की प्रासंगिकता’। हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन साहित्य का आज के आधुनिक युग में क्या महत्त्व है? इसके सम्बन्ध में एक अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक चर्चा की गई। इसके अलावा लघुकथा-संस्मरण आदि विधाओं पर भी फ़ेसबुक लाइव के कार्यक्रम हुए। यह उल्लेखनीय है कि इन सारे कार्यक्रमों के पीछे डॉ. शैलजा सक्सेना जी का ही बहुत प्रयास, अनुभव तथा निर्देशन सदैव रहा।
इस प्रकार के कार्यक्रम न केवल कैनेडा में वरन् सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया कई देशों में इस प्रकार के कार्यक्रम हुए और जिससे हिंदी का प्रचार प्रसार बढ़ता ही गया सिंगापुर से संध्या सिंह जी इस कार्य में निरन्तर लगी रहीं।
सितम्बर 2021में भारत में आभासी मंच के द्वारा काव्य का महायज्ञ आरंभ किया गया था। जिसमें अनवरत 14 दिनों तक काव्य पाठ हुआ, विश्व के सभी हिंदी भाषी देशों ने भाग लिया।
कैनेडा ने भी भाग लिया। कैनेडा के लोग भी इस महायज्ञ में आहुति दे सकें इसके लिए डॉ. शैलजा सक्सेना ने कैनेडा का प्रतिनिधित्व किया, सब लोगों सबको निर्देशित किया कि कब क्या करना है। हम आभारी हैं कि हमें एक ऐसा मंच प्रदान किया गया कि हम सभी ने न केवल अपनी कविताएँ सुनायीं, हम लोगों ने मंच भी संचालित किए। यह विश्व में किसी भी भाषा में किया गया प्रथम आयोजन था, जिसको विश्व कीर्तिमान के रूप में ‘वर्ल्ड बुक ऑफ़ रेकार्ड्स’ में दर्ज़ किया गया।
कैनेडा के हिंदीप्रेमियों के लिए 7 नवम्बर 2020 एक अविस्मरणीय दिन रहेगा। इसी दिन पहली बार कैनेडा में विश्वरंग कैनेडा 2020 का हिंदी उत्सव आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के लिए हम लोग आभारी हैं ‘रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय’ और उसके चांसलर डॉ. संतोष चौबे जी के। इस आयोजन में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बातचीत तथा प्रवासी भारतवंशियों द्वारा अन्यान्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये। ‘विश्वरंग’ ने विश्व के सभी साहित्यकारों तथा कलाकारों को अपनी कला को अभिव्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया, भारतवर्ष से कैनेडा के हर कार्यक्रम की परिकल्पना संयोजन तथा निर्देशन सब कुछ हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की शैलजा जी ने ही किया।
प्रसन्नता की बात है कि विभिन्न देशों के इन कार्यक्रमों में 25,000 से अधिक दर्शक जुड़े।
इस कार्यक्रम में कैनेडा के रचनाकारों की दो पुस्तकों का विमोचन किया गया, गद्य की जिसका नाम था ‘संभावनाओं की धरती’ दूसरी पुस्तक का काव्य संग्रह था जिसका नाम था ‘सपनों का आकाश’। बाद में विश्व हिंदी संस्थान के द्वारा इस पुस्तक की 5000 प्रतियाँ प्रकाशित भी की गईं।
यह शैलजा जी की ही दूरदर्शिता है कि उसने कैनेडा के रचनाकारों की पहचान विश्व में हो, इस कारण 2 ई-पुस्तकें सम्पादित कर उसे प्रकाशित करवाईं, इनकी गुणवत्ता तो भविष्य में और भी समझ में आएगी, जब भविष्य में यदि कोई कैनेडा साहित्य के बारे में जानना चाहेगा तो उसको एक साथ सारे कवियों का परिचय तथा उनकी रचनाएँ पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएँगे। इसके द्वारा कैनेडा के साहित्यकारों से सारा विश्व परिचित हुआ तथा हिंदी राइटर्स गिल्ड को शैलजा के प्रयास के द्वारा एक नई पहचान मिली।
मेरा सौभाग्य रहा है कि मैं इस हिंदी वैश्विक परिवार के साथ जुड़ी हूँ। गत तीन वर्षों में अनेक ऑनलाइन वेब संगोष्ठी में देश, विदेश के हिंदी विद्वानों का मार्गदर्शन मिला। प्रांतीय भाषाओं के साथ हिंदी का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
अंत में मैं यह कहना चाहूँगी कि सचमुच ही करोना की चुनौतियों में हिंदी भाषा पहले से कहीं अधिक समर्थ हुई है और विदेशों में रहने वाले हिंदी के लेखकों की स्थिति भारतवर्ष में भी सम्मानित हुई है। उन्हें फिजी में सम्मान दिया गया है जैसे शैलजा जी को, दिव्या जी को। हैं। यहाँ के लेखकों की रचनाएँ भारतवर्ष के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई हैं। शैलजा और सुमन जी की कहानियाँ भारतवर्ष के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गयी हैं, यहाँ के लेखकों पर शोध हो रहे हैं यह गर्व की बात है। हमारी हिंदी निस्संदेह ही हर प्रकार से करोनाकाल के समय आभासी मंचों के द्वारा पहले से अधिक समृद्ध हुई है।
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